तेल अवीव । इजरायल-हमास युद्ध में शांति के संकेत दिखाई देने लगे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मिस्र में पूर्ण युद्धविराम सुनिश्चित करने के लिए शांति सम्मेलन आयोजित करने की योजना बनाई है। हालांकि, इस समय दुनिया के दूसरे हिस्से में तनाव चरम सीमा पर है। ताइवान के रक्षा मंत्रालय ने सोमवार को खुलासा किया कि चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने ताइवान के आसपास गतिविधियां तेज कर दी हैं।
ताइवान के रक्षा मंत्रालय के अनुसार, पीएलए के 13 लड़ाकू विमान और 6 नौसेना जहाज ताइवान के आस-पास देखे गए। इनमें से आठ विमानों ने ताइवान जलडमरूमध्य की मध्य रेखा पार करते हुए ताइवान के उत्तर, दक्षिण-पश्चिम और दक्षिण-पूर्वी हवाई रक्षा क्षेत्रों (एडीआईजेड) में घुसपैठ की। मंत्रालय ने कहा कि ताइवान की सेनाएं पूरी तरह सतर्क हैं और सभी आवश्यक कदम उठा रही हैं। मंत्रालय ने सोशल मीडिया पर साझा करते हुए बताया कि यह घटना चीन की ताइवान पर लगातार जारी ‘सैन्य दबाव रणनीति’ का नया उदाहरण है।
चीन ताइवान को अपना ‘विशेष प्रशासनिक क्षेत्र’ मानता है और इसके आसपास हवाई और समुद्री गश्त को लगातार तेज कर रहा है। रविवार को भी ताइवान ने 16 चीनी विमानों, 8 नौसेना जहाजों और एक सरकारी पोत के सीमा के निकट आने की सूचना दी थी, जिसमें 13 विमानों ने एडीआईजेड में प्रवेश किया था। यह लगातार दूसरी रात थी जब चीन ने हवाई घुसपैठ और नौसैनिक दबाव की रणनीति दोहराई।
इस बीच विशेषज्ञों ने सवाल उठाए हैं कि क्या चीन धीरे-धीरे ताइवान की चारों ओर सैन्य घेराबंदी की योजना बना रहा है। ताइवान के वरिष्ठ रक्षा विशेषज्ञों ने इसे अव्यावहारिक और असंभव करार दिया है। तामकांग विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अलेक्जेंडर हुआंग ने कहा कि चीन केवल चार-पांच पनडुब्बियों से ताइवान को घेर नहीं सकता। उनका कहना था कि यह रणनीति रणनीतिक रूप से टिकाऊ नहीं है, क्योंकि परमाणु-संचालित पनडुब्बियों को चालक दल, भोजन और आराम की आवश्यकता होती है। कोई भी जहाज स्थायी रूप से एक ही स्थान पर नहीं रह सकता।
हुआंग ने चेतावनी दी कि अगर चीन ऐसी कोशिश करता है तो उसे भारी जोखिम उठाने होंगे। घेराबंदी बनाए रखना ही नहीं, बल्कि पनडुब्बियों को सुरक्षित वापस लाना भी चुनौतीपूर्ण होगा। उन्होंने कहा कि अन्य देशों की नौसेनाएं उनके रास्ते में बाधा बन सकती हैं, जिससे यह योजना और अधिक जोखिम भरी हो जाती है।
इस घटना ने क्षेत्रीय तनाव को और बढ़ा दिया है और यह स्पष्ट किया है कि ताइवान और चीन के बीच हालात अब भी संवेदनशील बने हुए हैं। ताइवान की सेना सतर्क है और सीमाओं की निगरानी लगातार जारी है। वहीं अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजरें इस बात पर हैं कि चीन की इस रणनीति का आगे क्या असर पड़ सकता है और क्षेत्रीय सुरक्षा पर इसका क्या प्रभाव होगा।
कुल मिलाकर, जबकि इजरायल-हमास संघर्ष में शांति की संभावना दिख रही है, ताइवान और चीन के बीच स्थिति अब भी तनावपूर्ण बनी हुई है। विशेषज्ञों के अनुसार चीन की सैन्य गतिविधियां रणनीतिक रूप से सीमित और जोखिम भरी हैं, लेकिन क्षेत्रीय सतर्कता को बनाए रखना आवश्यक है।
