नर्मदापुरम 23,अक्टूबर, जिले में कृषि विभाग द्वारा किसानों को नरवाई/पराली (फसल अवशेष) जलाने के दुष्प्रभावों एवं उसके वैकल्पिक वैज्ञानिक प्रबंधन के उपायों से जागरूक किया जा रहा है जिसमें नरवाई जलाने से भूमि की उर्वरता नष्ट होने व पर्यावरण के दूषित होने से मानव स्वास्थ्य तथा जलवायु पर भी गंभीर प्रभाव होने के बाबजूद अगर किसान नरवाई जलाता है तो उसपर वैधानिक कार्यवाही की जावेगी।
कृषि विशेषज्ञों ने बताया कि फसल कटाई के बाद खेतों में बची नरवाई जलाने से मिट्टी में पाए जाने वाले लाभकारी सूक्ष्मजीव एवं परजीवी नष्ट हो जाते हैं। इससे मिट्टी की जैविक संरचना, नमी और उर्वरता कम होती है। नरवाई जलाने से वातावरण में कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसी जहरीली गैसें उत्सर्जित होती हैं, जो वायु प्रदूषण बढ़ाती हैं और श्वसन संबंधी बीमारियों का कारण बनती हैं। इसके अतिरिक्त, नरवाई जलाने से मिट्टी की ऊपरी सतह कठोर हो जाती है, जिससे अगली फसल की बुवाई में कठिनाई आती है तथा सिंचाई के लिए अधिक पानी की आवश्यकता होती है।
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) द्वारा नरवाई जलाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है। किसी भी किसान द्वारा फसल अवशेष जलाना पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत दंडनीय अपराध है। नरवाई/पराली जलाने के मामलों में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 163 के तहत एफआईआर भी दर्ज की जा सकती है। जिले में भी नरवाई/पराली जलाना प्रतिबंधित किया गया है, एवं ऐसा करते पाए जाने पर संबंधित के विरुद्ध कार्यवाही की जायेगी एवं शासन की विभिन्न योजनाओं का लाभ भी प्राप्त नहीं होगा।
कृषि विभाग द्वारा किसानों को कृषि के आधुनिक यंत्रों की जानकारी भी दी जा रही है, जिनका उपयोग कर नरवाई का वैज्ञानिक प्रबंधन किया जा सकता है। जिनमे प्रमुख रूप से हैप्पी सीडर यंत्र है। यह यंत्र नरवाई को हटाए बिना सीधे बुवाई करने में सक्षम है। साथ ही स्ट्रॉ रीपर नरवाई को काटकर एकत्र करता है, जिसे पशु चारे या जैविक खाद में प्रयोग किया जा सकता है। साथ ही रोटावेटर यंत्र फसल अवशेष को मिट्टी में मिलाकर भूमि की उर्वरता बढ़ाने में सहायक होता है। सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम कंबाइन हार्वेस्टर से जुड़कर नरवाई को समान रूप से फैलाता है जिससे भूमि की नमी बनी रहती है।मल्चर एवं बेलर मशीनें फसल अवशेषों को काटकर गट्ठों में बदल देती हैं, जिनका उपयोग पशु चारे, ईंधन या कम्पोस्ट के रूप में किया जा सकता है।
कृषि वैज्ञानिकों द्वारा बताया गया कि नरवाई को जलाने की बजाय इसे कम्पोस्ट, बायोगैस उत्पादन, पशु चारे या मल्चिंग सामग्री के रूप में उपयोग किया जा सकता है। इससे पर्यावरण की रक्षा होती है और किसानों को आर्थिक लाभ भी प्राप्त होता है।
