नई दिल्ली । बिहार चुनावी सरगर्मी के बीच आरजेडी के पूर्व सदस्य और लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने राजनीति में एक बार फिर हलचल मचा दी है। उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) में वापसी के सवाल पर चौंकाने वाला बयान दिया और कहा कि “मैं आरजेडी में लौटने से बेहतर मौत को चुनूंगा। मैं सत्ता का भूखा नहीं हूं, मेरे लिए सिद्धांत और आत्मसम्मान सर्वोपरि हैं।” इस बयान ने बिहार की सियासी हवा में नई चर्चाओं को जन्म दे दिया है।
तेज प्रताप यादव ने आरजेडी से निष्कासन के बाद अपनी नई राजनीतिक पार्टी ‘जनशक्ति जनता दल’ (जेजेडी) का गठन किया है और महुआ विधानसभा सीट से चुनावी मुकाबले में उतरे हैं। यह वही सीट है जहां से उन्होंने 2015 में अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। इस मौके पर उन्होंने महुआ की जनता के साथ अपने पुराने संबंधों और विधायक रहते हुए जनता की समस्याओं पर ध्यान देने का दावा किया।
अपने छोटे भाई और महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव पर उन्होंने अप्रत्यक्ष हमला करते हुए कहा कि “सत्ता उसी को मिलती है जिसे जनता का आशीर्वाद प्राप्त हो।” हालांकि, उन्होंने परिवारिक रिश्तों को लेकर साफ किया कि तेजस्वी उनके छोटे भाई हैं और उनका आशीर्वाद हमेशा उनके साथ रहेगा।
तेज प्रताप ने नामांकन के दौरान अपनी दिवंगत दादी मरिचिया देवी की तस्वीर अपने साथ रखी और कहा कि उनके पिता को भी राजनीति में आगे बढ़ने का आशीर्वाद दादी से ही मिला था। उन्होंने इस दौरान यह भी जोर दिया कि उनका उद्देश्य जनता की सेवा करना है और लोग उन पर भरोसा करते हैं।
सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) और बीजेपी-आरएसएस पर निशाना साधते हुए तेज प्रताप यादव ने कहा कि अब जनता उनकी साजिशों में नहीं फंसेगी। साथ ही उन्होंने अपनी पार्टी का चुनाव चिन्ह ‘ब्लैकबोर्ड’ भी जनता के बीच प्रस्तुत किया। उन्होंने महात्मा गांधी से प्रेरणा लेने वाले बुजुर्ग स्वतंत्रता सेनानी का उदाहरण देकर अपने राजनीतिक सफर की प्रेरणा को भी साझा किया।
तेज प्रताप ने जनसुराज के प्रमुख प्रशांत किशोर पर टिप्पणी करते हुए कहा कि वे मूल रूप से व्यापारी हैं और पार्टियों के प्रचार अभियान के लिए संसाधन जुटाते हैं। उनका कहना है कि यह काम वे अब भी कर रहे हैं। महुआ में अपने चुनाव अभियान के साथ तेज प्रताप यादव ने स्पष्ट कर दिया है कि उनका संघर्ष केवल सत्ता के लिए नहीं, बल्कि जनता की सेवा और सिद्धांतों के लिए है।
इस प्रकार बिहार की राजनीति में तेज प्रताप यादव के कदम ने महागठबंधन और राज्य की सियासी स्थिरता दोनों पर नया असर डाला है और आगामी चुनावी समीकरणों को चुनौती दी है।
