तिरुवनंतपुरम। केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महिला की तलाक की अर्जी को मंजूरी देते हुए कहा है कि पति द्वारा लगातार शक करना, पत्नी की हर गतिविधि पर नजर रखना और नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर करना “गंभीर मानसिक क्रूरता” के अंतर्गत आता है। यह निर्णय जस्टिस देवन रामचंद्रन और जस्टिस एमबी स्नेहलता की पीठ ने सुनाया।
मामले की पृष्ठभूमि:
दंपति की शादी 2013 में हुई थी और उनकी एक बेटी भी है।
पत्नी ने अदालत में बताया कि शादी के शुरुआती दिनों से ही उसका पति उस पर शक करने लगा।
पति ने उसकी हर गतिविधि पर नजर रखी, उसे विदेश में रहने के लिए नर्सिंग की नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर किया और कई बार मारपीट भी की।
फैमिली कोर्ट का फैसला पलटा गया:
महिला ने फैमिली कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की। हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट की राय से असहमति जताते हुए कहा कि महिला की गवाही विश्वसनीय है और उसके अनुभव मानसिक क्रूरता को स्पष्ट रूप से साबित करते हैं। अदालत ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में दस्तावेजी सबूत की अपेक्षा करना जरूरी नहीं है और मानसिक क्रूरता का प्रभाव व्यक्ति-दर-व्यक्ति अलग हो सकता है।
कोर्ट का निष्कर्ष:
पति का निरंतर अविश्वास और नियंत्रण पत्नी को भावनात्मक पीड़ा, अपमान और भय पहुंचाता है।
लगातार शक शादी की नींव को ज़हरीला बना देता है।
अदालत ने कहा, “एक शक्की पति वैवाहिक जीवन को नर्क बना सकता है। आपसी विश्वास ही शादी की आत्मा है। जब इसके स्थान पर शक आता है, तो रिश्ता अपना पूरा अर्थ खो देता है।”
महत्वपूर्ण बिंदु:
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि मानसिक और शारीरिक क्रूरता दोनों तलाक के लिए आधार बन सकते हैं।
पत्नी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आत्म-सम्मान पर किसी भी प्रकार के अत्यधिक नियंत्रण और संदेह को गंभीर माना गया।
यह फैसला शादी में लगातार शक और नियंत्रण को गंभीर मानसिक क्रूरता मानने वाला एक महत्वपूर्ण न्यायिक उदाहरण है और विवाह संबंधों में भरोसा और सम्मान के महत्व को रेखांकित करता है।
