कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागृत होकर सृष्टि संचालन का कार्य पुनः संभालते हैं। इसी के साथ चातुर्मास का भी समापन होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन किया गया दान और पूजा व्यक्ति के जीवन से दरिद्रता, कष्ट और ग्रहदोषों को दूर करता है।
देवउठनी एकादशी का महत्व
शास्त्रों में उल्लेख है कि देवउठनी एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा का विशेष फल मिलता है। जो भक्त इस दिन नियमपूर्वक व्रत रखकर पूजा करते हैं, उनके जीवन में सौभाग्य, समृद्धि और शांति का वास होता है।
बाधाओं से मुक्ति के लिए करें यह उपाय
इस पावन अवसर पर यदि आप अपने अटके हुए कार्यों को सिद्ध करना चाहते हैं, तो संध्या के समय तुलसी और पीपल के वृक्ष के नीचे पांच घी के दीपक जलाएं। दीप जलाते समय ‘ॐ नमो भगवते नारायणाय’ मंत्र का 21 बार जाप करें और वृक्ष की सात बार परिक्रमा करें।मान्यता है कि, ऐसा करने से रुके हुए कार्यों में गति आती है और जीवन की रुकावटें दूर होने लगती हैं। ध्यान रखें, देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी के पत्ते तोड़ना वर्जित है। ऐसा करने से शुभ फल की प्राप्ति नहीं होती।
दान का विशेष महत्व
देवउठनी एकादशी पर तिल, गुड़, कपड़ा, दक्षिणा, कंबल और अन्न का दान अत्यंत शुभ माना गया है। मान्यता है कि इस दिन किया गया दान अक्षय पुण्य प्रदान करता है और विष्णुजी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।जो लोग आर्थिक तंगी या व्यवसायिक संकट से गुजर रहे हैं, उन्हें इस दिन ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को वस्त्र और भोजन अवश्य दान करना चाहिए।
देवउठनी एकादशी का पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि ज्योतिषीय दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। यह दिन भक्तों को नकारात्मक ऊर्जा से मुक्त करता है और जीवन में नये अवसरों के द्वार खोलता है।शास्त्र कहते हैं एकादश्यां समायुक्तं यः करोति व्रतं नरः, सर्वपापविनिर्मुक्तः विष्णुलोके महीयते।
