संजीव दे रॉयवन विभाग के गलियारों में इन दिनों एक यक्ष प्रश्न गूंज रहा है — छिपी खापा बीट के चार करोड़ रुपये मूल्य के “स्वर्ण सागौन” आखिर कब, किस अफसर के कार्यकाल में धराशायी हो गए?
फाइलों में सन्नाटा है, पर जंगल में अभी भी कटे तनों की गंध ताज़ा है।
सूत्र बताते हैं कि जब DFO मयंक गुर्जर और CCF नर्मदापुरम चुरना में वन्य प्राणी सम्मेलन के तथास्तु-अध्याय में व्यस्त थे, उसी दौरान विभाग के भीतर जवाबदेही की कलम से खेला जा रहा था।
नवंबर 2024 में उड़ान दस्ता दल ने छिपी खापा क्षेत्र में 356 सागौन वृक्षों की कटाई पकड़ी — कीमत करीब 1.55 करोड़ रुपये बताई गई।
पर यह रिपोर्ट ऊपर तक पहुंचने से पहले ही “उपरिलेखन” में बदल गई।
एक रिपोर्ट को चार हिस्सों में बांट दिया गया ताकि जिम्मेदारी भी चार टुकड़ों में बिखर जाए।
नियम साफ हैं —
25 वृक्ष कटे तो रेंजर जिम्मेदार,
50 कटे तो SDO,
100 कटे तो DFO।
लेकिन जब 1300 वृक्षों की हानि सामने आए तो सवाल उठता है — क्या मुख्य वन संरक्षक अछूते रह सकते हैं?
मुख्य वन संरक्षक के 18 फरवरी और 5 मई 2025 के पत्र खुद यह स्वीकार करते हैं कि DFO ने न तो समय पर सूचना दी और न ही मौके पर पहुंचने की ज़हमत उठाई।
गुर्रा थाने में रात 3 बजे रेंजर ने सागौन पकड़ा, लेकिन साहब सोते रहे — शायद जंगल की नहीं, पद की नींद गहरी थी।
राज्य स्तरीय जांच दल की रिपोर्ट ने तो कहानी पूरी खोल दी —
गिने गए ठूंठों पर नंबर फर्जी, कटाई की तारीखें झूठी, और पूरे मामले को “नया” दिखाने की कोशिश।
अब निगाहें अपर मुख्य सचिव (वन) और वनबल प्रमुख पर हैं — क्या वही न्याय इस बार ऊपर तक पहुंचेगा?
दो वनरक्षक — राजेश यादव और संयम — तो रातोंरात निलंबित कर दिए गए थे।
तो क्या “बड़े अपराध” पर भी “बड़ी सजा” होगी?
या फिर सागौन की तरह यह मामला भी किसी फाइल में दबा रहेगा, जब तक अगला जंगल नहीं कट जाता।
सवाल यह नहीं कि किसने काटा — सवाल यह है कि किसने छिपाया।
क्योंकि जब जंगल मौन हो जाता है, तब लकड़ी नहीं, व्यवस्था चरमराती है।
बाक्स बनाकर लगाएं…
मुख्य बिंदु : सागौन घोटाले का हरा सच
रिपोर्ट कार्ड : जिम्मेदारी की श्रेणी
वृक्ष कटाई की संख्या जिम्मेदार अधिकारी का स्तर
25 वृक्ष तक रेंजर
50 वृक्ष तक SDO
100 वृक्ष तक DFO
100+ वृक्ष मुख्य वन संरक्षक सहित वरिष्ठ अधिकारी
शहरनामा की टिप्पणी
“फाइलें बोलती नहीं, पर ठूंठ गवाही देते हैं। जंगल काटने वालों से ज़्यादा खतरनाक वे हैं, जो उसकी खबर काट देते हैं।”
संजीव दे रॉय
वन विभाग के गलियारों में इन दिनों एक यक्ष प्रश्न गूंज रहा है — छिपी खापा बीट के चार करोड़ रुपये मूल्य के “स्वर्ण सागौन” आखिर कब, किस अफसर के कार्यकाल में धराशायी हो गए?
फाइलों में सन्नाटा है, पर जंगल में अभी भी कटे तनों की गंध ताज़ा है।
सूत्र बताते हैं कि जब DFO मयंक गुर्जर और CCF नर्मदापुरम चुरना में वन्य प्राणी सम्मेलन के तथास्तु-अध्याय में व्यस्त थे, उसी दौरान विभाग के भीतर जवाबदेही की कलम से खेला जा रहा था।
नवंबर 2024 में उड़ान दस्ता दल ने छिपी खापा क्षेत्र में 356 सागौन वृक्षों की कटाई पकड़ी — कीमत करीब 1.55 करोड़ रुपये बताई गई।
पर यह रिपोर्ट ऊपर तक पहुंचने से पहले ही “उपरिलेखन” में बदल गई।
एक रिपोर्ट को चार हिस्सों में बांट दिया गया ताकि जिम्मेदारी भी चार टुकड़ों में बिखर जाए।
नियम साफ हैं —
25 वृक्ष कटे तो रेंजर जिम्मेदार,
50 कटे तो SDO,
100 कटे तो DFO।
लेकिन जब 1300 वृक्षों की हानि सामने आए तो सवाल उठता है — क्या मुख्य वन संरक्षक अछूते रह सकते हैं?
मुख्य वन संरक्षक के 18 फरवरी और 5 मई 2025 के पत्र खुद यह स्वीकार करते हैं कि DFO ने न तो समय पर सूचना दी और न ही मौके पर पहुंचने की ज़हमत उठाई।
गुर्रा थाने में रात 3 बजे रेंजर ने सागौन पकड़ा, लेकिन साहब सोते रहे — शायद जंगल की नहीं, पद की नींद गहरी थी।
राज्य स्तरीय जांच दल की रिपोर्ट ने तो कहानी पूरी खोल दी —
गिने गए ठूंठों पर नंबर फर्जी, कटाई की तारीखें झूठी, और पूरे मामले को “नया” दिखाने की कोशिश।
अब निगाहें अपर मुख्य सचिव (वन) और वनबल प्रमुख पर हैं — क्या वही न्याय इस बार ऊपर तक पहुंचेगा?
दो वनरक्षक — राजेश यादव और संयम — तो रातोंरात निलंबित कर दिए गए थे।
तो क्या “बड़े अपराध” पर भी “बड़ी सजा” होगी?
या फिर सागौन की तरह यह मामला भी किसी फाइल में दबा रहेगा, जब तक अगला जंगल नहीं कट जाता।
सवाल यह नहीं कि किसने काटा — सवाल यह है कि किसने छिपाया।
क्योंकि जब जंगल मौन हो जाता है, तब लकड़ी नहीं, व्यवस्था चरमराती है।
बाक्स बनाकर लगाएं…
मुख्य बिंदु : सागौन घोटाले का हरा सच
रिपोर्ट कार्ड : जिम्मेदारी की श्रेणी
वृक्ष कटाई की संख्या जिम्मेदार अधिकारी का स्तर
25 वृक्ष तक रेंजर
50 वृक्ष तक SDO
100 वृक्ष तक DFO
100+ वृक्ष मुख्य वन संरक्षक सहित वरिष्ठ अधिकारी
शहरनामा की टिप्पणी
“फाइलें बोलती नहीं, पर ठूंठ गवाही देते हैं। जंगल काटने वालों से ज़्यादा खतरनाक वे हैं, जो उसकी खबर काट देते हैं।”
