बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में मतदान के बीच बहुजन समाज पार्टी (BSP) की मुखिया मायावती भी चुनावी मैदान में उतर आई हैं। यूपी की तरह बिहार में भी दलित वोट बैंक अहम भूमिका निभाता है, लेकिन दोनों राज्यों में इसका सियासी रुझान अलग है। यूपी में कांशीराम और मायावती के नेतृत्व में बसपा सत्ता तक पहुंची, जबकि बिहार में अब तक बसपा अपना प्रभाव जमाने में असफल रही थी।
कैमूर में मायावती की पहली बड़ी रैली
मायावती गुरुवार को कैमूर जिले के भभुआ में विशाल जनसभा को संबोधित करेंगी। यह रैली बिहार चुनाव के दूसरे चरण (11 नवंबर) से पहले आयोजित की जा रही है, जिसका उद्देश्य बसपा के लिए सियासी माहौल बनाना है। रैली में मायावती रामगढ़ से सतीश उर्फ पिंटू यादव और कैमूर (भभुआ) से विकास सिंह उर्फ लल्लू पटेल के समर्थन में प्रचार करेंगी। बसपा का लक्ष्य कैमूर जिले की चारों सीटों — भभुआ, मोहनियां, रामगढ़ और चैनपुर — पर पकड़ मजबूत करना है।
यूपी बॉर्डर की सीटों पर नजर
बसपा की रणनीति इस बार उत्तर प्रदेश से सटी बिहार की 36 विधानसभा सीटों पर केंद्रित है। यूपी के महाराजगंज, देवरिया, बलिया, गाजीपुर, चंदौली और सोनभद्र जिले बिहार के कैमूर, रोहतास, बक्सर, भोजपुर, पश्चिम चंपारण, सारण और सीवान जिलों से लगते हैं।
इन इलाकों की भाषा, संस्कृति और जातीय समीकरण काफी समान हैं। यही कारण है कि बसपा का पारंपरिक आधार भी इन्हीं सीमावर्ती क्षेत्रों में मजबूत है। पार्टी इन सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला बनाने की रणनीति पर काम कर रही है, ताकि दलित वोटों के एकजुट होने पर उसके प्रत्याशी को सीधा लाभ मिल सके।
बसपा की नई रणनीति और उम्मीदवार
बसपा ने कैमूर जिले की चारों सीटों पर अपने प्रत्याशियों की घोषणा की है — भभुआ से विकास उर्फ लल्लू पटेल, मोहनियां से ओमप्रकाश दीवाना, रामगढ़ से सतीश उर्फ पिंटू यादव, और चैनपुर से धीरज उर्फ भान सिंह। इतिहास में बसपा ने भभुआ (2005) और चैनपुर (2020) सीटों पर जीत दर्ज की है, जिससे इस क्षेत्र में पार्टी की जड़ें पहले से मौजूद हैं।
मायावती की रैली से कार्यकर्ताओं में जोश और मतदाताओं में उत्साह का माहौल बन रहा है। वहीं, आकाश आनंद के नेतृत्व में चल रही “सर्वजन हिताय यात्रा” दलित, ओबीसी और मुस्लिम वोटरों के गठजोड़ को मजबूत करने की दिशा में काम कर रही है।
बसपा की चुनावी ताकत और असर
बिहार में बसपा इस बार लगभग 15 सीटों पर पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ रही है। इनमें गोपालगंज, कैमूर, चंपारण, सिवान और बक्सर प्रमुख जिले हैं। चैनपुर सीट 2020 में बसपा के खाते में रही थी, जबकि बक्सर की रामगढ़ सीट पर बसपा प्रत्याशी ने पिछली बार उपचुनाव में मजबूत प्रदर्शन किया था।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर दलित वोट बैंक इस बार महागठबंधन से दूरी बनाता है, तो इसका फायदा बसपा और एनडीए दोनों को मिल सकता है। मायावती ने बिहार में अपने प्रत्याशियों के चयन में यूपी की “सोशल इंजीनियरिंग” रणनीति अपनाई है, जो दलित-पिछड़ा-मुस्लिम गठजोड़ पर केंद्रित है।
क्या दोहराएगी बसपा 2005 और 2020 की सफलता?
कैमूर में मायावती की रैली को बसपा के लिए टर्निंग पॉइंट माना जा रहा है। पार्टी इस बार न केवल दलित मतदाताओं बल्कि पिछड़े वर्गों को भी जोड़ने की कोशिश में है।
अब सवाल यही है — क्या मायावती की यह रणनीति बिहार में यूपी जैसा प्रभाव दिखा पाएगी और क्या कैमूर में बसपा 2005 और 2020 जैसी सफलता दोहरा सकेगी?
चुनावी नतीजे आने के बाद ही इस सवाल का जवाब मिलेगा, लेकिन इतना तय है कि बिहार में मायावती की एंट्री से मुकाबला और दिलचस्प हो गया है।
