( व्यंग्य )
आत्माराम यादव पीव
जब दुनिया बनी तब परमात्मा ने सभी जीव जंतु, पशु पक्षी और आदमी के बीच संवाद के लिए बातचीत का खुला विकल्प रखा और सभी वर्ग के जीवो से आदमी बातचीत कर लिया करते था जिसमे देवता भी शामिल थे| देवताओ ने अमृतपान कर लिया था इसलिए उनके मरने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता, जन्म मरण के चक्कर में आदमी, दैत्य, असुर, नाग किन्नर सहित शेष जीव जंतु, जानवर पेड़ पौधे और वनस्पति थे| पुराणों के अनुसार एक बार देवताओं के द्वारा किया जाने वाला यज्ञ निर्विघ्न सम्पन्न हो इसके लिए देवताओं के आग्रह पर कामधेनु गाय ने अपनी पौत्र पौत्रियारूपी गायों को आवश्यकता अनुसार दूध, दही, घी आदि की आपूर्ति हेतु देवताओं को सौपा| सभी देवता यज्ञ में लग गए तब गायों की सुरक्षा के लिए यमराज ने अपनी परम शक्तिशाली और वायु की गति से तेज दौड़ने वाली यमलोक की प्रिय कुतिया सरमा और उसके दोनों पुत्र अक्ष और चतुर नामक कुत्तों को लगाया, जिन्होंने असुरों के भोज्य को ग्रहण कर यज्ञ खंडित कर दिया तब इन देवराज इंद्र ने सरमा सहित उसके बेटे कुत्तों को श्राप दिया की अब तुम्हारा जन्म मृत्युलोक में हो और कभी भी भरपेट भोजन न मिले, यातनाये सहते कुत्ते की योनि में ही जन्म मिले | अग्निदेव ने कुपित होकर असुरों का झूठा और मांसमिला यज्ञ कुंड की आहुति का भोग लगाने के लिए श्राप दिया की किसी भी पशु को वाणी न मिले और वे अपने सुख दुःख पीड़ा को व्यक्त न कर सके तभी से इस नश्वर संसार में कुत्ते श्रापित जीवन जीने को विवश है| कुत्तों की यह दशा क्यों और कैसे हुई इससे अनभिज्ञ आदमी, आदमियत से उब गया है और खुद को कुत्ता बनाने की होड़ में लग गया है|
सच तो यह है कि आदमी, आदमी होने के लिए पैदा हुआ है और “जियो और जीने दो‘ का सूत्र अपनाकर ‘वसुधैव कुटुम्बकम‘, ‘अहिंसा परमो धर्म ‘सादा जीवन उच्व विचार‘, जैसे ‘भारतीय दर्शन‘ का अनुसरण करता है। आदमी सामाजिक प्राणी होने से सभी के प्रति संवेदनशील होता है और हर असुंदर का विरोध कर हर सुंदर को और अधिक सुंदर बनाने के लिये उसे सजाता सँवारता रहता है। आदमी के भीतर समाज को स्वस्थ, सुंदर एव नूतन बनाये रखने की असाधारण शक्ति छिपी है। दानव का भी हृदय परिवर्तन कर आदमी बनाने की अनुपम कला उसके पास है वहीं इसके विपरीत आदमियत को त्यागकर अपने को सामाजिक प्राणी की परिधि से बाहर निकाल पशुवत शक्ति का प्रयोग कर वह पलक झपकते पशु भी हो जाता है| आज आप अपने आसपास जहाँ देखते हो वहा तुम्हे आदमी नही मिलते, जो दिखाई देते है वे आदमी होने का ढोंग कर रहे आधे-अधूरे आदमी होते है | आदमी को आदमी बनाये रखना विश्व कल्याण की भावना को जिन्दा रखने के लिए आवश्यक है ताकि आदमी अप संस्कृति के विरुद्ध लड़ाई लड़ सके, लेकिन मुढ़तावश जब आदमी खुद पशु होने को राजी हो जाए, तब उसके पशु हो जाने पर पशुओं के स्वभावगत हिंसात्मक आचरण से वह खुद को बचा नही सकता है| आदमी की उँगलियों से निकलने वाले नाख़ून हिंसा के प्रतीक है वही पशुओं के पैर उनके खुर और पंजे होते है, उनके द्वारा आत्मरक्षार्थ हिंसा,हिंसा नही होती किन्तु आदमी पशुता का आवरण धारण कर ले तो तो उसका हर कदम हिंसात्मक ही होगा|
आज आदमी का पशु बनना उसकी पशुवत संकृति और संस्कारों का हिस्सा बनता जा रहा है और ये ही विकार अधिकांश आदमियों के लिए हिंसात्मक हो रहे है, दुर्भाग्य यह है कि आदमी पूरी सावधानी से अपनी पशुता को छिपा कर भरपूर ताकत दिखाकर खुद के आदमी होने की घोषणा कर रहा है | बात यही नही रूकती आगे भी बढ़ती है जिसमें आदमी खुद के आदमी होने से बढ़कर सभी के समक्ष देवता या अतिविशिष्ट आदमी होने के साक्ष्य भी प्रस्तुत करने से बाज नहीं आता है | पारखी नजरे और आदमियत को जीने वाले सभी आदमी समझ जाते है की यह घोषणा और साक्ष्य खुदं को महिमामंडित करने भर के है जबकि पशुता को ग्रहण करने वाला यह आदमी रेंगने वाला सांप, रंग बदलने वाला गिरगिट, दुम हिलाने वाला या गुर्राने वाला कुत्ता बनकर रह गया है | उसके अन्दर का कुत्ता सबको दिखाई देता है जो अफवाह फैलाकर/ भड़का कर, स्वार्थ अहंकार से परिपूर्ण सिर्फ अपना स्वार्थ सिद्ध करना भर है, जिसके लिए वह कुत्ता बना आदमी अपने अहकार , अराजकता या आतंक फैलाने के लिये खतरनाक हिंसा को जन्म देता है। खुद ही आदमियत छोड़ कुत्ता बन सभी पर गुर्राने वाला यह आदमी सनातन काल से आज तक जिस प्रकार देवताओं और असुरों के बीच वैमनस्यता का अंत नही हुआ उसी प्रकार आदमी से कुत्ता बना आदमी भी अपने सभी हितेषियों, सगे सम्बन्धी रिश्तेदारों और समाज से बैर रखते हुए उनपर गुर्राना जारी रखता है| अच्छाभला आदमी अपनी मर्जी से कुत्ता बन जाए तो कुत्ता अपनी ताकत दिखायेगा और कुत्तों द्वारा सड़कों पर किये जाने वाला प्रदर्शन और कुत्ताई करतब दिखाकर वह सकल कुत्ता समाज का दिल जीतकर अपने कुत्ते होने की धाक और धौंस दिखाते समय भूल जाएगा की वह आदमी है और आदमियों के समाज पर उसकी कुत्ताई क्या गुल खिला रही है |
आज आदमी को कोई भी विचारा आदमी नही कहता परन्तु कुत्ते को विचारा कुत्ता अवश्य मानता है| कुत्ते विचारे है, जिनपर सभी तरस खाते है क्योकि कुत्ता कुत्ता ही पैदा होता है और कुत्ता कुत्ते की मौत मरने के बाद भी कभी कुत्ता आदमी नही हो सकता है? कुत्ते में आदमी जैसे कुत्ताई नहीं होती, हां आदमी जैसी आदमियत उसमें कूट कूट भरी होती है| कुत्ता अगर कुत्ता है तो आदमी के लिए है, उसके परिवार के लिए, उनकी सेवा के लिए कुत्ता है ताकि कुत्ते को मिला वफ़ादारी का फर्ज पूरी ईमानदारी से निभा सके | जबसे आदमी कुत्ता होने लगा तब से कुत्तों को आदमी के कुत्ता होने पर अपनी कुत्ताई खतरे में दिखने लगी है कि कही कुत्ता बना आदमी कुत्ते से नीचे गिर गया तो दुनियाभर के कुत्तों को शर्म से आत्महत्या न करनी पड़े , जो आज तक किसी कुत्ते ने आत्महत्या नहीं की है| कुत्ता बना आदमी बिना दुम के अर्थात बिना पुंछ के शक्तिशाली होता है तब वह अपने चहेते के सामने दुम हिलाकर अपनापन दिखायेगा, बिना दुम का आदमी तब ठीक वैसा ही दिखाई देता है जैसे बिना दुम का कुत्ता होता है। इनका अपना मार्गदर्शक मंडल होता है जो इनके मार्ग में आने वालों को येन केन प्रकारेण गिरगिट की तरह रंग बदलकर अपनी कुत्तई का लोहा मनवा सके,उनके बैनर पोस्टर चिपकवा सके और बिना दुमवालों के सामने अपनी दुम हिला गुर्राकर अपनी ताकत दिखा सके| जब बिना दुम का कुत्ता बिना चव्हनपलास खाए अपने मार्ग में आने वाली बाधाओं से निपटने के लिए मौत से जूझ कर लक्ष्य पाकर दम लेता है तब आदमी से कुत्ता बना कुत्ता अपने स्वार्थसिद्धि के लिए बस मौका मिलते ही सारे संबंधों को सुरसा के मुख की तरह निगल लेता है| तब यह सब देख सारे कुत्ते लताड़ लगाते है, आखिर आदमी जो ठहरा, कुछ भी कर लो चाहे कुत्ता बनो या नाग, रहोगे तो आदमी ही, कोई कुत्ते से पैदा थोड़े ही है जो कुत्ता हो जायोगे?
