आत्माराम यादव चीफ एडिटर हिन्द संतरी
एक घाँस का तिनका आपका क्या अहित कर सकता है यह सोचकर आप उस घास के तिनके की ताकत को नजरअंदाज कर घास का तिनका भर रहने की भूल कर सकते हो। जैसे एक फिल्म का डायलाग लोगो की जुबान पर था की साला एक मच्छर आदमी को हिजड़ा बना देता है, वास्तव में आदमी हिजड़ा नही बन जाता बल्कि व्यावहारिक क्रिया के कारण बदनाम हो जाता है। यह सोलह आने सच है की अगर इरादे बुलंद हो या कोई ठान ले तो वह कार्य जो दुनिया के लिए असंभव है, उसे करना ठानने वाले के लिए संभव है। अफवाह भी घास के तिनके जैसी होती है और उसे फैलाना चाहे हो वह घास के तिनके सी बात पलक झपकते ही पूरी दुनिया में उथल पुथल ला सकती है। अफवाह की शक्ल सच से मिलती है इसलिए जब अफवाह की शक्ल में देश दुनिया के लोग देखते है तो वे उसके दीवाने हो जाते है इसलिए दुनिया ने यह बात स्वीकार कर ली है कि अफवाह ब्रह्मास्त्र सी ताकत रखती है।
एक जरा सी अफवाह कैसे लोगों के प्राण ले लेती है इसका साक्षी रहा हूँ। 1984 में हुये भोपाल गैस कांड कि घटना में मिक गैस के चपेट में आने वाले लोग कीड़े मकोड़ों के तरह मर रहे थे, प्रशासन को सूझ नहीं रहा था कि लोगों को कहा भेजा जाए ताकि वे खुद को बचा सके। अधिकारियों ओर पुलिस कि हार्न बजाते गाड़ियों के काफिले गुजरते तो लोग उम्मीद में थे कि उन्हे सुरक्षित स्थान पर पहुचाने कि मदद मिलेगी पर वे सुरक्षित स्थानों पर जाने का कहकर गुजर जाते। जो लोग इब्राहिमपुरा ,लोको शेड यार्ड में थे वे गैस कि जद में थे ओर वही अधिक मौते हुई अगर उन्हे जहांगीराबाद रोशनपुरा आदि जगह भेजा जाता तो वे बच सकते थे। लोग भीड़ कि शक्ल में जिसने जो कहा उसका अनुसरण कर उल्टे गैस रिसाव क्षैत्र में जाकर मरते गए। इस घटना के एक महीने बाद कुछ लोग वापिस घरों को लौटे लेकिन तब वह आइसक्रीम कि फेकटरी से गैस लीकेज होने पर लोगो में भगदड़ मच गई ओर यह अफवाह चार महीने तक लोगो ने भुगती तब में छोला रोड पर पुट्ठा मिल के सामने रहते हुये इस भीषण कष्टों को आसपास के मोहल्लेवालों कि तरह झेलता रहा हूँ ओर बस स्टेड स्थित पुलिस थाने में भीड़ रात रात भर सच्चाई जानने को खड़ी रहती, पुलिस उन्हे घर जाने का कहती लेकिन अफवाह उन्हे रोकती रही।
भोपाल गैस कांड के बाद पुलिस ओर सुरक्षाबलों का घेरा पीड़ित क्षैत्र में जायजा लेने निकलता तो लोगों मे अफवाह से उनकी साँसे थम जाती। लोगों ने अपने मोहल्ले- बस्ती को मौत के सन्नाटे में घिरी लाशों के अंबर देखे थे जो धधकते दिलों की तपिस शांत करने कि बजाय बढ़ाते थे। मजे कि बात तब मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ओर उनके मंत्रियो का कारवा सुरक्षित वाहनो से गुजरता ओर कृतिम शांति कि बात कर समाचार पत्रों में उनके परोपकार कि प्रशंसा होती। अफवाह को लाशों के ढेर पर तबाह हुये शहर भोपाल के बिगड़े हालातों पर भी स्थित नियंत्रण में बताते गर्व होता था। शांत हुई जिन्दगियों को आत्मशांति हेतु ये सत्तालोलुप राजनीतिज्ञ श्रन्दाजली के पेशवर कटोरे में दो मिनिट मौन रहकर घडियाली ऑसू टपकाने का अवसर तब भी भुनाते थे ओर आज भी भुना रहे है। ऑसुओं का एक भाग मृतक के स्वजन को मिलता है और दूसरा भाग वह खुद गटक जाता है मृतात्मा शांति हेतु ओपचारिकता में शांति को तरसती रह जाती है। समाचार पत्र ओर चेनलों मे प्रमुखता के साथ चालवाज नेता महिमामंडित होता है ओर नेताजी कि समवेदनाओं से आँसू बहती तस्वीर को देखकर पीड़ित खुद ही रात भर आँसू बहाता खुद ही खुद के आँसू पोंछता है ।
पुराणों में उल्लेख मिलता है कि असुर जाति ब्रम्हाजी ओर शिवजी कि घोर तपस्या कर उनसे ऐसे वरदान मांगते थे जो देव मनुज के लिए अहितकर ओर अमंगलकारी हुआ करते थे। पर आज असुर नहीं है किन्तु उनकी संतति के रूप में कई असुर मनुष्य समाज में छिपे बैठे है ओर वे आए दिन पूरी मनुष्यता के लिए खतरा पैदा करने के उपायो को अफवाह के रूप में प्रयोग कर मौज कर रहे है। सरकारे सब जानती है ओर जब मामला उनके वश में नहीं होता, उनकी पूरी मशीनरी ओर पूरा सिस्टम फ़ेल हो जाता है तब वह अफवाहों से सावधान का नारा देकर अपने कर्तव्य का इतिश्री कर लेती है। अफवाह फैलाने वाले इतने शातिर होते है कि उन्हे पकड़ पाना मुश्किल होता है, या यूं कहिए कि कानून उन्हे तब तक नहीं पकड़ता जब तक उनकी बेइज्जती उन्हे शर्मसार न करे, वरना किसी में ताकत नहीं है कि वह अफवाह फैला सके । अफवाह कि शुरुआत किस युग में हुई इसे जानने के पचड़े में पड़ना ठीक नही, लेकिन रामराज्य में सीता को लेकर प्रजा में जो चर्चाए हुई उसे अयोध्या के तत्कालीन राजा राम ने अफवाह नही मानकर चर्चा को सच मान सीता को निर्वासित कर दिया। फिर कोई ऐसी चर्चा न सुनने को मिली ओर न ही पढ़ने को मिली, स्पष्ट है तब अफवाह नही थी। इसी तरह कलिकाल का दूसरा नाम कलयुग है और कलयुग को कलपुर्जे का युग स्वीकार कर लिया गया। कलपुर्जे यानी मशीन का युग, जिसमें आदमी कुछ नहीं करेगा सारा काम मशीन करेगी। तरक्की के इस युग में सारी प्रकृति को चिढाते हुये अप्राकृतिक रूप में मशीनों से बच्चे पैदा होने के आश्चर्य ने बिना ट्यूब बेबी बच्चा पैदा किए माँ बाप बनने कि क्रिया भी देखी है जो अफवाह नही है। अफवाह का भी उद्देश्य होता है, फिर उसके लिए लक्ष्य तय किया जाता है, लक्ष्य के बाद उसकी सफलता कि तैयारी शुरू होती है, फिर अफवाह एक तिनके के रूप में शिशु के रूप में जन्म लेकर रक्तबीज असुर की शक्ल में असर दिखाकर अफवाह रूपी महाझूठ एक स्थापित सत्य के रूप में अधिष्ठित हो जाता है।
देखा जाये तो अफवाह तृण से भी कृशकाय है किन्तु तीर के रूप में यह कृशकाय तृण ब्राम्हास्त्र की ताकत रखता है ओर आज सोसल मीडिया ओर आधुनिक संसाधनों के प्रयोग से विश्वव्यापी हो गया है। आज देश में राजनीति अफवाह की गोद का सुख प्राप्त कर रही है ओर अधिकांश दलों के प्रमुख राजनेता से लेकर पूरे दल नाजुक स्थिति पैदा कर अफवाह की शरण में है। मजे की बात यह भी है की वे अफवाह से सावधान रहे यह मूलमंत्र बोलकर कब किसके द्वारा किसके पक्ष में ओर किसके विरुद्ध चारित्रिक दोष लगाकर उसे अफवाह के अणुबम से विस्फोट कर उसके धवलस्वेत व्यक्तित्व ओर चरित्र को मिट्टी मे मिला दे ओर जो मिट्टी मे मिल चुका हो कब उसके बुत खड़े कर उसे महिमामंडित कर सौदेवजी होने पर सफाई दे कि विरोधियों ने उनके चरित्र को दागदार बनाने मैं कोई कसर नहीं छोड़ी, ये तो हम है जो इन्हे जानते समझते है इसलिए इन्हे अपना लिया। जनता सभी के चरित्र और कथनी करनी को जानती है पर खामोश है। अफवाह की चिंगारी कब देश की अमन शांति भंग कर जनता को अशांति की आग में झोंक दे और कब अफवाह के ही मलहम से सब कुछ शांत कर दे। अफवाह देश में साम्प्रदायिक माहौल को कब खूनी मूसलाधार बरसात में बदल दे और कब मायूसी के बादलों का सहारा लेकर हमदर्दी जता अपना ले। जनता में अस्थिरता पैदा कर हर नागरिक को निस्तेज करने कि ताकत अफवाह मे है जिसे राजनेता अपनी राजनीति कि दिशा में करवट देकर जनता का दिल जीतना जानते है।
किसी अल्प बुद्धि, अपढ़ , या भयभीत के समक्ष अगर कोई जरा सी मज़ाक करे तो वह भी अज्ञानता के कारण किस तरह विकराल अफवाह का रूप ले लेता है इसका जिक्र करना चाहूँगा। वर्ष 1980 की बात याद आती है जब मैं पढ़ता था तब पहली अफवाह का जन्म अपनी आँखों के सामने मेरे एक सहपाठी के मुख से उत्पन्न मामूली अर्थहीन शब्द किसी के लिए उच्चरित किए तो वे शब्द किस तरह प्रदेशव्यापी सच के रूप में उजागर किए गए यह झूठ आज भी विचित्र अफवाह कि शक्ल लेने के कारण मुझे आश्चर्यचकित करती है। पढ़ाई के साथ-साथ तब हम एक नोटंकी मंडली में रूपबसंत, चंद्रहास, राजा हरिश्चंद्र, राजा मोरध्वज का मंचन बतौर कलाकार करते थे। हम जहां रहते है वहाँ रेलवेस्टेशन के पास ही पन्नालाल कुली का मकान था जिसकी पत्नी गरीबी में दिन काटते हुये अक्सर प्याज/कांदा रोटी खाती दिखती ओर सब्जी के अभाव में प्याज को सिलबट्टे पर मिर्च के साथ पीसकर खाना उनकी मजबूरी थी। नवरात्रि के समय एक सर्द रात को हम रूपबसंत नाटक खेलकर रेलवेस्टेशन पर चाय पीकर निकले की हमारे एक कलाकार मित्र भूपेन्द्र मालवीय को मज़ाक सुझा ओर उसने पन्नालाल कुली के घर के सामने आवाज बदल कर उनकी झुग्गी की कुंडी बजाकर कहा मुझे कांदा दो, रोटी दो, मुझे जमकर भूख लगी है, मैं चंपपतिया हूँ … आवाज सुनकर उसकी पत्नी जाग गई और भागते हुए हम बच्चों को देख चंपतिया चंपतिया चिल्लाई। अगले दिन पन्नालाल कुली के घर चंपतिया का आकार प्याज दो कांदा दो रोटी दो मुझे भूख लगी है मैं खाऊँगी जैसे अफवाह शुरू हुई ओर एक दो समाचार पत्र की सिंगल न्यूज से प्रमुख हेडिंग के रूप में प्रदेश भर में चर्चा होने लगी। हर शहर में चंपतिया के प्याज दो कांदा दो रोटी दो, की मांग के साथ दरवाजा खटखटाने की खबरे छपना एक ट्रेड बन गया ओर लोग घरो में डरे सहमे जागते हुये चंपपतिया को देखे जाने, उसके पैर पीछे होने के दिलचस्प खबरे छापने लगे। अफवाह कि यह चंपपतिया तीन चार साल तक समाचार पत्रों में प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में देखे जाने के दावे के साथ जिंदा रही, पर असल चंपपतिया कभी पकड़ाई नहीं।
एक जरा सी न कुछ मज़ाक प्रदेश में चर्चित होना ओर उसमें अगर कही कोई बच्चा गायब हो जाये तो इस झूठ से जोड़कर की प्याज कांदा ओर रोटी न मिलने पर चंपतिया बच्चों को उठा ले गई। जिस प्रकार उस समय न चंपपतिया सच था न कांदा दो प्याज दो रोटी तो सच था, सिर्फ अफवाह थी जिसने समाज की व्यवस्था ओर लोगों के जीने के ताने वाने को चोपट कर दिया था आज भी उसी प्रकार एक से एक अफवाह रोज सोसलमीडिया पर फ़ेल रही आई। यह अफवाह अब असुरों का अस्त्र नही बल्कि नेताओं का शस्त्र बन गई है। कुछ नेता इस अफवाह रूपी शस्त्र का प्रयोग नाजुक स्थिति में सावधानी से करते है तो कुछ बेशर्मी से अपना उल्लू सीधा करने के लिए करते है । अफवाह का न कोई नियम होता है ओर न ही कोई कानून। अफवाह को सुनी सुनाई बातों में शामिल कर कानून कभी भी इन बातों को सबूत के बतौर स्वीकृति नहीं देता है। सुनी सुनाई बातों का जन्म एक अपवाद है ओर आज तक किसी भी ऐसे अपवाद कि जो अफवाह कि शक्ल में खड़ा होता है उसकी सत्यपरकता जाँची परखी नहीं जा सकती है।
