नई दिल्ली। देश को हिला देने वाले 2006 के निठारी सीरियल किलिंग केस में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। अदालत ने मुख्य आरोपी सुरेंद्र कोली को सबूतों की कमी और जांच में गंभीर खामियों के आधार पर सभी आरोपों से बरी कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि जब तक कोली किसी अन्य मामले में वांछित नहीं हैं, उन्हें तुरंत रिहा किया जाए।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की तीन सदस्यीय पीठ ने यह फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि जांच एजेंसियों द्वारा पेश किए गए सबूत दोष सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा निर्णय
सुरेंद्र कोली ने अपनी दोषसिद्धि के खिलाफ सुधारात्मक याचिका (Curative Petition) दायर की थी, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने स्वीकार कर लिया। कोर्ट ने यह माना कि जांच और साक्ष्यों के विश्लेषण में कई खामियाँ थीं। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ ने फैसला सुनाते हुए कहा, “याचिकाकर्ता को सभी आरोपों से बरी किया जाता है। यदि वह किसी अन्य मामले में वांछित नहीं है, तो उसे तत्काल रिहा किया जाए।”
यह फैसला निठारी हत्याकांड से जुड़े लंबे कानूनी संघर्ष में एक बड़ा मोड़ लेकर आया है। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के साथ कोली की लगभग 18 साल पुरानी कानूनी लड़ाई समाप्त हो गई है।
क्यों आया मामला फिर सुर्खियों में?
साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने 15 वर्षीय लड़की की हत्या के एक मामले में कोली की दोषसिद्धि बरकरार रखी थी, जबकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उसके खिलाफ दर्ज 12 अन्य मामलों में बरी कर दिया था। इसी विरोधाभास को देखते हुए कोली ने 2024 में सुधारात्मक याचिका दाखिल कर पुनर्विचार की मांग की थी।
7 अक्टूबर को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि कोली की सजा सिर्फ एक बयान और रसोई के चाकू की बरामदगी पर आधारित थी। अदालत ने कहा था कि बाकी मामलों में बरी होने के बावजूद एक केस में दोषसिद्धि रहना “असामान्य स्थिति” पैदा करता है, जिस पर पुनर्विचार जरूरी है।
क्या है निठारी हत्याकांड?
निठारी कांड 2005–2006 के बीच घटित हुआ था। दिसंबर 2006 में नोएडा के निठारी गांव में एक घर के पास नाले से कई मानव कंकाल बरामद हुए थे। जांच में पता चला कि यह घर व्यापारी मोनिंदर सिंह पंढेर का था और सुरेंद्र कोली वहाँ घरेलू नौकर के रूप में काम करता था। इस खुलासे के बाद देशभर में सनसनी फैल गई थी।
सीबीआई की जांच में दोनों पर बच्चों के अपहरण, हत्या और यौन शोषण के आरोप लगे। अदालतों में कई साल तक मुकदमे चले और कोली को कई मामलों में दोषी ठहराया गया। अब सुप्रीम कोर्ट ने सभी मामलों की समीक्षा के बाद कोली को साक्ष्यों की कमी के चलते बरी कर दिया है।
फैसले का असर
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने एक बार फिर भारत की जांच एजेंसियों और न्यायिक प्रक्रिया पर कई सवाल खड़े किए हैं। 17 साल से जेल में बंद सुरेंद्र कोली की रिहाई न केवल इस मामले को नया मोड़ देती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि साक्ष्यों की पुख्तता के बिना सजा नहीं दी जा सकती।
