नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव का यह जनादेश सिर्फ सत्ता तय करने का माध्यम नहीं है बल्कि भाजपा और जदयू के बीच बड़े और छोटे भाई की भूमिका पर भी निर्णायक प्रभाव डालेगा। मंगलवार को दूसरे और अंतिम चरण के मतदान के बाद सभी की निगाहें जनादेश पर टिकी हैं साथ ही यह देखना भी अहम है कि भाजपा और जदयू में किसको अधिक सीटें मिलती हैं।
बिहार की सियासत में जदयू के छोटे भाई के रूप में शुरू हुई भाजपा की यात्रा अब बदल चुकी है। बीते विधानसभा चुनाव में जदयू तीसरे नंबर पर खिसक गई थी जिससे भाजपा को टिकट बंटवारे में अधिक हिस्सेदारी मिली और दोनों दलों के बीच जुड़वा भाई का समीकरण बन गया। उस चुनाव में जदयू और नीतीश कुमार की साख को बड़ा झटका लगा लेकिन नीतीश का मुख्यमंत्री पद बरकरार रहा। सरकार गठन में जदयू का एकाधिकार खत्म हो गया और पहली बार भाजपा कोटे के दो डिप्टी सीएम बनाए गए। हालांकि कार्यकाल के बीच बढ़ी खटास के बावजूद नीतीश ने पहले भाजपा से नाता तोड़ राजद के साथ समझौता किया मगर कुछ महीनों बाद राजग में वापसी की।
इस बार एग्जिट पोल्स के अनुमान बताते हैं कि जदयू की सीटों में बढ़ोतरी होगी। मैट्रिज ने जदयू को 67-75 और भाजपा को 65-73 सीटें मिलने का अनुमान लगाया है। दोनों दलों के बीच सीटों का अंतर कम रहने की संभावना है। बीते चुनाव में जदयू की सीटें 71 से घटकर 43 और भाजपा की 53 से बढ़कर 74 हो गई थीं।
इस सदी में भाजपा और जदयू ने चार बार साथ चुनाव लड़ा। हर बार जदयू के हिस्से अधिक सीटें आईं। फरवरी 2005 में जदयू 138 और भाजपा 103 अक्टूबर 2005 में जदयू 139 और भाजपा 102 2010 में जदयू 141 और भाजपा 102 बीते चुनाव में जदयू 115 और भाजपा 110। इस बार दोनों दलों के बीच लगभग समान सीटें आने का अनुमान है।
जदयू सूत्रों का मानना है कि इस चुनाव में पार्टी फिर से बड़े भाई की भूमिका में आएगी। इसका कारण जदयू के मूल वोट बैंक का वापस आना लोजपा आर राजग में शामिल होने से हुए नुकसान की भरपाई और भाजपा के वोट बैंक का जदयू में सफल स्थानांतरण है।
सियासत की निगाहें चिराग पासवान और उनकी पार्टी लोजपा आर पर भी टिकी हैं। बीते चुनाव में अपने दम पर मैदान में उतरे चिराग ने जदयू की लहर को धीमा किया था। इस बार हालांकि उनकी पार्टी को 29 सीटें मिलने की संभावना है जिनमें 15 सीटें ऐसी हैं जहां राजग ने पहले कभी जीत दर्ज नहीं की थी।
