हैदराबाद का एक साधारण-सा दिखने वाला डॉक्टर… शांत स्वभाव, परिवार में सबसे छोटा, पढ़ाई में तेज़ और हमेशा मदद के लिए तैयार। लेकिन गुजरात एटीएस की हालिया कार्रवाई ने यह दिखा दिया कि कभी-कभी सबसे खतरनाक चेहरे सामान्य लगने वाले लोगों के पीछे छिपे होते हैं। डॉ. अहमद सईद का असली चेहरा सामने आते ही पूरे देश में हलचल मच गई, वह एक ऐसी साजिश रच रहा था, जो अगर कामयाब हो जाती, तो देश में लाखों लोग एक साथ मौत के मुंह में जा सकते थे।
अरंडी के तेल से मौत की खुराक तैयार हो रही थी
एटीएस की गिरफ्त में आए डॉ. सईद और उसके दो साथी आज़ाद शेख और मोहम्मद सलीम लंबे समय से भारत में सक्रिय थे। तीनों को जोड़ता था एक नाम: ISKP, यानी इस्लामिक स्टेट ऑफ खुरासान प्रोविंस। पाकिस्तान और अफगानिस्तान से संचालित यह संगठन दुनिया के कई हिस्सों में आतंक फैलाने की कोशिश करता रहा है, और अब उसका जाल भारत तक पहुंच गया था। डॉ. सईद की भूमिका इसमें सबसे भयावह थी। वह राइसिन नामक बेहद घातक ज़हर तैयार कर रहा था। यह जहर अरंडी के तेल से निकाला जाता है और इसकी कुछ ही बूंदें इंसान की जान लेने के लिए काफी होती हैं। इससे भी अधिक खतरनाक यह कि इसे खाने-पीने की चीज़ों में हवा में यहां तक कि मंदिरों के प्रसाद में भी मिलाया जा सकता है। यही वह तरीका था जिसे सईद आज़माने वाला था।
मंदिरों में प्रसाद और पानी को निशाना बनाने की योजना
जांच में सामने आया कि डॉक्टर की योजना किसी एक व्यक्ति या छोटे समूह को निशाना बनाने की नहीं थी। उसका इरादा था मंदिरों में वितरित होने वाले प्रसाद और पानी को जहर से संक्रमित कर दिया जाए। धार्मिक स्थलों पर रोज़ाना भारी संख्या में लोग पहुंचते हैं अगर यह साजिश सफल होती, तो घटना का पैमाना अकल्पनीय होता। गुजरात एटीएस के अनुसार यह plotting किसी फिल्मी कहानी नहीं बल्कि ठोस तैयारी थी। सईद राइसिन को तैयार भी कर चुका था और इसे फैलाने की विस्तृत रणनीति पर काम कर रहा था।
परिवार अंधेरे में, डॉक्टर अपने ही खेल में व्यस्त
एमबीबीएस की पढ़ाई के बाद सईद ने परिवार को बताया था कि वह गुजरात में एक व्यापार कर रहा है। परिवार वालों को लगा कि डॉक्टर साहब ने नौकरी के रास्ते से हटकर बिज़नेस की दुनिया चुन ली है, लेकिन सईद जिस रास्ते पर था, वह सीधे मौत के सौदागरों की पंक्ति में जाता था। छह भाई-बहनों में सबसे छोटा होने के बावजूद वह सबसे गंभीर अपराध की तैयारी में लगा था। उसके मोबाइल रिकॉर्ड, वित्तीय लेन-देन और सोशल मीडिया गतिविधियों ने यह साफ कर दिया कि वह भारत में रहते हुए देश के ही खिलाफ जाल बिछाने वालों से जुड़ा हुआ था।
सरहद पार से मिला कनेक्शन अबू खलीजा से लगातार संपर्क
एटीएस जांच ने सबसे बड़ा खुलासा तब किया, जब पता चला कि डॉ. सईद पाकिस्तान स्थित ISKP के हैंडलर अबू खलीजा के सीधे संपर्क में था। दोनों के बीच फोन और इंटरनेट के जरिए नियमित बातचीत हो रही थी। खलीजा न सिर्फ सईद को निर्देश दे रहा था, बल्कि उसे हथियार और उपकरण भी भेज रहा था। जांच में यह भी सामने आया कि पाकिस्तान से ड्रोन के जरिए राजस्थान की सीमा पर तीन पिस्तौल और 30 कारतूस भेजे गए थे। इन्हें लेने के लिए ही एक दिन सईद निकला था, लेकिन यहीं उसकी किस्मत पलट गई। उसी समय गुजरात एटीएस को गुप्त सूचना मिली और टीम सीधे उसके निशान पर पहुंच गई।
गिरफ्तारी से उजागर हुई पूरी साजिश
जब सईद हथियार लेकर लौट रहा था तभी पुलिस ने उसे दबोच लिया। पूछताछ में जब प्रमाण एक-एक कर सामने रखे गए तो आखिरकार उसने अपना अपराध स्वीकार कर ही लिया। उसके कबूलनामे में वह सारी बातें निकलकर सामने आईं जिन्होंने पूरे ऑपरेशन को आतंक के नए स्वरूप की ओर इशारा किया। दिलचस्प बात यह है कि राइसिन का इस्तेमाल दुनिया में पहले भी बड़े पैमाने पर हमले के लिए किया गया था। जर्मनी में ऐसा ही एक प्रयास पकड़ा गया था, जिसमें लाखों लोगों की जान का खतरा मंडरा रहा था। भारत में यह पहली बार था, जब कोई आतंकी गिरोह इतनी बड़ी संख्या में लोगों को निशाना बनाने की योजना बना रहा था।
अगर एटीएस देर कर देती तो…यह सिर्फ एक गिरफ्तारी नहीं, बल्कि संभावित राष्ट्रीय त्रासदी से बचाव था। विशेषज्ञ मानते हैं कि राइसिन को रोक पाने के लिए किसी बड़े हमले के बाद समय बेहद कम होता है। इसलिए एटीएस का यह ऑपरेशन देश के लिए एक बड़ी सफलता माना जा रहा है। इस पूरी घटना ने सुरक्षा एजेंसियों को यह भी संकेत दिया है कि आतंकवाद अब केवल बंदूकों और बमों तक सीमित नहीं है। यह विज्ञान, रसायन और टेक्नोलॉजी के सहारे और ज्यादा खतरनाक रूप ले रहा है।
