नई दिल्ली। सनातन धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाने वाली उत्पन्ना एकादशी का व्रत इस बार 15 नवंबर 2025 को रखा जाएगा। पंचांग के अनुसार, यह व्रत मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को आता है। धार्मिक मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु के शरीर से देवी एकादशी की उत्पत्ति हुई थी, इसलिए यह तिथि पूजा-पाठ और दान-दक्षिणा के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है।मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखा जाता है। यह दिन स्वयं देवी एकादशी के अवतरण का दिन माना जाता है, जिनकी उत्पत्ति भगवान विष्णु के शरीर से हुई थी। इस व्रत को करने से जाने-अनजाने में हुए सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। मार्गशीर्ष माह की कृष्ण एकादशी पर रखा जाएगा व्रत, इस दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र का बन रहा है विशेष संयोग
उत्पन्ना एकादशी 2025: समय और राहुकाल
तिथि 15 नवंबर 2025, शनिवार
एकादशी तिथि प्रारंभ 15 नवंबर, अर्धरात्रि 12 बजकर 49 मिनट पर
एकादशी तिथि समापन 16 नवंबर, मध्यरात्रि 2 बजकर 37 मिनट पर
राहु काल (अशुभ समय) सुबह 9 बजकर 25 मिनट से सुबह 10 बजकर 45 मिनट तक। (इस अवधि में पूजा या शुभ कार्य न करें)
पारण (व्रत खोलने) का समय 16 नवंबर 2025, दोपहर 1 बजकर 10 मिनट से लेकर 3 बजकर 18 मिनट तक।
राहुकाल का अशुभ संयोग
ज्योतिषियों के अनुसार, उत्पन्ना एकादशी के शुभ दिन पर राहु काल का अशुभ साया भी पड़ने वाला है।सुबह 9 बजकर 25 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 45 मिनट तक।चूंकि राहु काल में कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित माना जाता है, इसलिए कोशिश करें कि इस अवधि के दौरान श्रीहरि और मां लक्ष्मी की पूजा न की जाए।
पूजन विधि और शुभ संयोग
इस बार उत्पन्ना एकादशी पर उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र का विशेष संयोग बन रहा है, जो इस दिन के महत्व को और बढ़ा रहा है। प्रातःकाल स्नान के बाद साफ, सफेद वस्त्र पहनकर शुद्ध मन से व्रत का संकल्प लें। इसके बाद, एक चौकी पर पीला या लाल वस्त्र बिछाकर भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। फिर दीपक जलाकर, अक्षत, तुलसी दल, धूप, फल, पंचामृत और पीले फूल अर्पित करें। इन पूजन के बाद विष्णु सहस्रनाम या ऊं नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करें।इस दिन दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। गरीबों या जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र या दक्षिणा दान करें।
उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा
प्राचीन कथा के अनुसार, सतयुग में मुर नाम का एक अत्यंत बलशाली और दुष्ट दैत्य था। उसने अपनी शक्ति के बल पर स्वर्गलोक पर आक्रमण कर दिया और इंद्र सहित सभी देवताओं को पराजित कर दिया। भयभीत देवता मदद के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंचे। देवताओं की पुकार पर भगवान विष्णु ने दैत्य मुर से हजारों वर्षों तक युद्ध किया। युद्ध करते-करते जब भगवान विष्णु थक गए, तो वे विश्राम करने के लिए बदरीकाश्रम के पास स्थित एक अत्यंत सुंदर गुफा हेमवतीमें चले गए। दैत्य मुर भगवान विष्णु का पीछा करते हुए गुफा तक पहुँच गया और उन्हें विश्राम करते देखकर उन पर हमला करने का प्रयास किया। ठीक उसी क्षण, भगवान विष्णु के शरीर से एक दिव्य कन्या उत्पन्न हुई, जो शस्त्रों से सुसज्जित थी।उस दिव्य कन्या ने दैत्य मुर को युद्ध के लिए ललकारा और अपनी युद्ध कला से उसे पराजित कर दिया। जब वह दैत्य मूर्छित हो गया, तो देवी ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया और उसे मार डाला।
नींद से जागने पर, भगवान विष्णु ने उस कन्या को देखकर प्रसन्न हुए। उन्होंने पूछा कि तुम कौन हो? कन्या ने उत्तर दिया कि वह उनके शरीर से उत्पन्न हुई है। प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उस कन्या को वरदान दिया कि चूंकि तुम मेरे शरीर (एकादश इन्द्रियों) से मार्गशीर्ष माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को उत्पन्न हुई हो, इसलिए तुम्हारा नाम ‘एकादशी’ होगा।भगवान ने यह भी वरदान दिया कि जो कोई भी इस तिथि पर तुम्हारी पूजा करेगा और एकादशी का व्रत रखेगा, उसे सभी पापों से मुक्ति मिलेगी और वह मोक्ष को प्राप्त होगा।
