रायपुर। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित सुकमा जिले में सुरक्षा बलों को एक और बड़ी सफलता मिली है। तुमलपाड़ा गांव के घने जंगलों में शुक्रवार सुबह हुई मुठभेड़ में सुरक्षा बलों ने 5-5 लाख के इनामी तीन कुख्यात नक्सलियों को ढेर कर दिया। यह मुठभेड़ 2025 के अभियान में अब तक की 15वीं बड़ी सफलता मानी जा रही है। बस्तर रेंज के आईजी पी. सुंदरराज ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि मारे गए तीनों हार्डकोर नक्सली लंबे समय से बस्तर और सुकमा में हिंसक गतिविधियों में शामिल थे।
कैसे मिली सफलता खुफिया इनपुट से शुरू हुआ ऑपरेशन
बस्तर का सुकमा जिला वर्षों से माओवादी गतिविधियों का केंद्र रहा है। 15 नवंबर की सुबह लगभग छह बजे DRG डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड और कोबरा कमांडो की 50 सदस्यीय संयुक्त टीम तुमलपाड़ा के जंगलों में सर्च ऑपरेशन पर थी। खुफिया विभाग को सूचना मिली थी कि कोंटा और किस्टाराम एरिया कमिटी के करीब 10-12 नक्सली हाल ही में बीजापुर मुठभेड़ से बचकर इसी क्षेत्र में छिपे हुए हैं।
जैसे ही टीम जंगल में आगे बढ़ी, नक्सलियों ने अचानक AK-47, SLB राइफलों और IED के साथ हमला बोल दिया। दोनों ओर से लगभग दो घंटे तक भीषण गोलीबारी चली। सुरक्षा बलों की सटीक रणनीति और पोजिशनिंग के सामने नक्सली टिक नहीं पाए और तीन बड़े माओवादी कमांडर मारे गए।आईजी सुंदरराज ने बताया कि मारे गए नक्सलियों के नाम हिड़मा कमांडर मलती, महिला कमांडर और सोमरू कैडरहैं। तीनों पर पाँच-पाँच लाख रुपये का इनाम था। घटनास्थल से एक राइफल, दो ग्रेनेड और कई I बरामद किए गए। बाकी नक्सली मौके से भाग निकले जिनकी तलाश जारी है। राहत की बात यह रही कि सुरक्षा बलों का कोई जवान घायल नहीं हुआ।
2025 का सबसे बड़ा साल 207 नक्सली ढेर 45 जवान शहीद
सुकमा और इसके आसपास के बीजापुर दंतेवाड़ा जिलों में इस वर्ष सुरक्षा बलों ने अब तक 207 नक्सलियों को मार गिराया है। हालांकि इस संघर्ष में 45 जवानों ने भी अपनी जान गंवाई है। यह आँकड़ा बताता है कि लड़ाई अभी भी खत्म होने से दूर है। तुमलपाड़ा की यह सफलता इस वर्ष की प्रमुख कार्रवाइयों में शामिल हो गई है।
नक्सलवाद की पृष्ठभूमि क्यों इतनी गहरी जड़ें
भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे लंबी चुनौती नक्सलवाद है, जिसकी शुरुआत 1967 के नक्सलबाड़ी पश्चिम बंगाल विद्रोह से हुई थी। यह विचारधारा माओवादी सिद्धांतों पर आधारित है, जिसमें सशस्त्र संघर्ष के जरिए व्यवस्था बदलने का दावा किया जाता है।जड़ें गहरी होने के कारणआर्थिक असमानता बस्तर जैसे खनिज संपदा वाले इलाकों में खनन तो हुआ, लेकिन आदिवासी गरीबी में ही रहे।
भूमि अधिकार संघर्ष भूमि अधिग्रहण और वनाधिकार संबंधी विवादों ने असंतोष बढ़ाया।
सरकारी परियोजनाओं से दूरी सड़क पानी स्कूल अस्पताल जैसी बुनियादी सुविधाओं का लंबे समय तक अभाव रहा।भर्ती का नया तरीका: नक्सली सोशल मीडिया, शहरी नेटवर्क और युवा बेरोजगार आबादी को निशाना बनाते हैं इतिहास का बोझ वर्षों से चली हिंसा ने दोनों पक्षों पर अविश्वास बढ़ाया। छत्तीसगढ़ के बस्तर में नक्सली घटनाएँ केंद्रित हैं और 2025 में ही 150 से अधिक हमले दर्ज किए गए। इनमें 100 से ज्यादा नागरिक मारे गए।
सरकार की रणनीति समर्पण सुरक्षा विकास का त्रिशूल
केंद्र सरकार ने 31 मार्च 2026 तक ‘नक्सल-मुक्त भारत का लक्ष्य निर्धारित किया है। गृहमंत्री अमित शाह ने नक्सलवाद को विकास का सबसे बड़ा दुश्मन बताते हुए बस्तर को स्थायी शांति देने की बात कही है।
सरकार की मुख्य रणनीतियाँ
सुरक्षा अभियान और कोबरा की संयुक्त टीमें गहरे जंगलों में कैंप बढ़ा रही हैं। 2025 में 200 से अधिक कैंप स्थापित किए गए हैं।विकास का दांव10,000 करोड़ रुपए का बस्तर विकास पैकेज सड़कें पानी शिक्षा स्वास्थ्य पर फोकस। सरेंडर नीति नक्सलियों के आत्मसमर्पण पर 2.5 लाख रुपये और नौकरी की सुविधा। इस वर्ष अब तक 800 नक्सलियों ने सरेंडर किया। तकनीक का उपयोग ड्रोन नाइट विजन और सैटेलाइट मॉनिटरिंग से जंगलों में नक्सली ठिकानों पर निगरानी।सरकार की ये रणनीतियाँ नक्सल गतिविधियों पर दबाव बना रही हैं, लेकिन चुनौतियाँ अभी भी भारी हैं।आगे की राह चुनौतियाँ अभी भी बरकरार हालिया सफलता के बावजूद ये सवाल कायम है कि क्या नक्सलवाद पूरी तरह समाप्त हो पाएगा।
मुख्य चुनौतियाँ इस प्रकार हैं
मानवाधिकार के आरोप कई अभियानों में सुरक्षा बलों पर अधिक बल प्रयोग के आरोप लगते हैं।विकास की असमानता बस्तर में अभी भी 70% आबादी गरीबी रेखा के नीचे है।नक्सलियों की जवाबी रणनीति IED ब्लास्ट और एम्बुश हमले अभी भी सबसे बड़ा खतरा हैं। स्थानीय भरोसा आदिवासी आबादी में सुरक्षा बलों और प्रशासन के प्रति भरोसा बढ़ाना अहम है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कहाबस्तर शांति की ओर बढ़ रहा है। सुरक्षा बलों की बहादुरी को सलाम। गृहमंत्री अमित शाह ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा यह नक्सल उन्मूलन अभियान की दिशा में निर्णायक कदम है। वर्ष 2026 तक नक्सलवाद समाप्त होगा।वहीं कांग्रेस नेता भूपेश बघेल का कहना है नक्सलवाद खत्म करने के प्रयास स्वागत योग्य हैं लेकिन आदिवासियों की सुरक्षा और अधिकार सुनिश्चित करते हुए ही सफलता स्थायी होगी।
