अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि भाषण के बाद किसी तरह की हिंसा या तनाव की स्थिति पैदा नहीं हुई थी। कानून के मुताबिक जब तक कोई भाषण दो समूहों के बीच नफरत फैलाने की मंशा नहीं रखता हो, ऐसे में उसे नफरत फैलाने वाला भाषण नहीं माना जा सकता। अदालत ने कहा कि आईपीसी की धारा 500 के तहत भी मामला नहीं बनता, क्योंकि शिकायत प्रधानमंत्री की ओर से नहीं बल्कि किसी तीसरे व्यक्ति आरएसएस सदस्य ने की है। ऐसे में कानूनी रूप से संज्ञान लेना संभव नहीं है।
पहले भी खारिज हुई प्राथमिकी की मांग
इसी मामले में पिछले साल दिसंबर में भी कोर्ट ने खरगे के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देने से इनकार कर दिया था। तब अदालत ने कहा था कि शिकायतकर्ता चाहें तो अपने सबूत खुद पेश कर सकते हैं और जांच की जरूरत होने पर सीआरपीसी की धारा 202 के तहत कदम उठाया जा सकता है।
