भोपाल में आशा कार्यकर्ताओं ने वेतन भुगतान न होने के विरोध में रातभर CMHO ऑफिस के बाहर धरना देकर सरकार को चेतावनी दी. वेतन की मांग को लेकर ये महिलाएं पूरी तरह अडिग रहीं और कार्यालय के सामने लगातार अपनी आवाज उठाती रहीं. यह धरना सुबह से शुरू हुआ था और पूरी रात जारी रहा. आशा कार्यकर्ताओं का कहना है कि लंबे समय से उनका वेतन देय है लेकिन प्रशासन की उदासीनता के कारण उन्हें मजबूरी में विरोध करना पड़ा.
धरने में शामिल आशा कार्यकर्ताओं ने बताया कि वे पिछले कई महीनों से स्वास्थ्य विभाग के साथ जुड़ी सेवाओं में काम कर रही हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं को पहुंचाने में अहम भूमिका निभा रही हैं. बावजूद इसके उन्हें वेतन का भुगतान समय पर नहीं किया गया. इससे उनका जीवन और परिवार पर भारी असर पड़ा है.
रात भर चलने वाले धरने में कार्यकर्ताओं ने विभिन्न बैनर और पोस्टर लगाकर सरकार और प्रशासन से वेतन भुगतान की मांग की. उन्होंने जोर देकर कहा कि यदि उनकी मांग जल्द पूरी नहीं हुई तो वे आंदोलन को और तेज करेंगे. इस दौरान आसपास के लोग और अन्य स्वास्थ्य कर्मी भी उनके समर्थन में खड़े नजर आए.
धरने के दौरान कार्यकर्ताओं ने बताया कि उनका वेतन न मिलने की समस्या पिछले कई महीनों से है और लगातार विभागीय अधिकारियों से संपर्क करने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई. उन्होंने आरोप लगाया कि कई बार उन्हें आश्वासन तो दिया गया लेकिन वचन सिर्फ कागजों तक सीमित रहे. इससे उनकी नाराजगी और बढ़ गई.
स्थानीय अधिकारियों ने कहा कि वे मामले की जांच कर रहे हैं और जल्द ही उचित कदम उठाया जाएगा. उन्होंने आशा कार्यकर्ताओं से धैर्य बनाए रखने की अपील की लेकिन धरने पर मौजूद कार्यकर्ता शांत होने के मूड में नहीं थे. उन्होंने कहा कि उनका संघर्ष सिर्फ वेतन के लिए नहीं बल्कि उनके अधिकार और मेहनत के सम्मान के लिए भी है.
धरने के दौरान आशा कार्यकर्ताओं ने रातभर गाने और नारे लगाते हुए सरकार पर दबाव बनाए रखा. उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य सेवाओं में उनकी भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने में उनका योगदान अहम है और उन्हें समय पर वेतन मिलना चाहिए.
विशेषज्ञों का कहना है कि आशा कार्यकर्ताओं का यह धरना राज्य में स्वास्थ्य कर्मियों की स्थिति को उजागर करने वाला एक महत्वपूर्ण संकेत है. उनका वेतन समय पर न मिलने से स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है और ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है.
धरने के बाद आशा कार्यकर्ताओं ने प्रशासन को चेतावनी दी कि यदि उनकी मांग जल्द पूरी नहीं हुई तो वे बड़े पैमाने पर आंदोलन की तैयारी करेंगे. उनका कहना था कि अब उन्हें और इंतजार नहीं किया जा सकता.
इस धरने ने पूरे शहर में चर्चा का विषय बना दिया है. स्थानीय मीडिया और सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे को लेकर बहस शुरू हो गई है. लोग आशा कार्यकर्ताओं के समर्थन में खड़े हैं और सरकार से जल्द समाधान की मांग कर रहे हैं.
अंततः यह धरना सिर्फ वेतन की मांग नहीं बल्कि कार्यकर्ताओं के अधिकारों की लड़ाई बनकर उभरा है. राज्य सरकार पर अब दबाव बढ़ गया है कि वह इस मामले में त्वरित और ठोस कदम उठाए ताकि आशा कार्यकर्ताओं का हक सुनिश्चित हो और ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता प्रभावित न हो.
