नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला के ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor) पर दिए गए बयान के बाद राजनीति गरमा गई है। केंद्रीय मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने सोमवार को फारुख अब्दुल्ला की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि वह राष्ट्रीय हित की अनदेखी कर रहे हैं और स्वार्थी राजनीति कर रहे हैं।
कीर्ति वर्धन सिंह ने मीडिया से बातचीत करते हुए फारुख अब्दुल्ला पर तंज कसा और कहा कि, “कुछ लोग सिर्फ अपनी स्वार्थी राजनीति में उलझे हुए हैं और राष्ट्रीय हित को नजरअंदाज कर रहे हैं। जनता अब इस तरह के नेताओं को पहचान चुकी है और ऐसे नेताओं से दूर हो चुकी है। बिहार चुनाव में यह साफ हो गया है कि लोग देश की मजबूती और उज्जवल भविष्य के लिए वोट करेंगे, न कि स्वार्थी राजनीति करने वालों के लिए।”
क्या था फारुख अब्दुल्ला का बयान?
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला ने हाल ही में नौगाम पुलिस थाने में हुए ब्लास्ट के बाद मीडिया से बात करते हुए “ऑपरेशन सिंदूर” का जिक्र किया था। उन्होंने कहा कि इस ऑपरेशन से कश्मीर को कोई फायदा नहीं हुआ, बल्कि कई लोगों की जान चली गई। उनका कहना था, “ऑपरेशन सिंदूर से हमें कुछ भी हासिल नहीं हुआ। हमारी सीमाएं प्रभावित हुईं और कई निर्दोष लोगों की जान चली गई। मुझे उम्मीद है कि अब ऐसा नहीं होगा। हमें शांति चाहिए और दोनों देशों के संबंधों में सुधार होना चाहिए। जैसा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था, ‘मित्र बदले जा सकते हैं, लेकिन पड़ोसी नहीं’।”
ऑपरेशन सिंदूर का संदर्भ
ऑपरेशन सिंदूर जम्मू-कश्मीर में 1990 के दशक में सेना द्वारा चलाया गया एक सैन्य ऑपरेशन था, जिसका उद्देश्य सीमा पार से आतंकवादियों की घुसपैठ को रोकना था। यह ऑपरेशन विवादास्पद रहा है, और कई आलोचकों का कहना है कि इसके दौरान कई निर्दोष लोग प्रभावित हुए और यह कश्मीर में और अधिक अस्थिरता का कारण बना। फारुख अब्दुल्ला ने इस ऑपरेशन पर टिप्पणी करते हुए यह कहा कि यह कश्मीर के लिए कोई सकारात्मक परिणाम लेकर नहीं आया, और उन्होंने भविष्य में इस तरह के ऑपरेशनों से बचने की बात की।
राजनीति पर असर
फारुख अब्दुल्ला का यह बयान जम्मू-कश्मीर के मौजूदा राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में महत्वपूर्ण है, खासकर जब जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित राज्य बनने के बाद से कई मुद्दों पर राजनीतिक दलों के बीच तीखी बहसें चल रही हैं। फारुख अब्दुल्ला का यह बयान केंद्र सरकार और उनके समर्थक दलों के लिए चिंता का विषय बन गया है, जो पहले से ही अलगाववाद और आतंकवाद के खिलाफ सख्त कदम उठाने का पक्षधर रहे हैं।
केंद्रीय मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने फारुख अब्दुल्ला के बयान को न केवल राजनीतिक स्वार्थ की राजनीति करार दिया, बल्कि यह भी कहा कि ऐसे बयानों से कश्मीर की जनता और पूरे देश के बीच शांति और समृद्धि की दिशा में रुकावट आती है।
यह स्थिति आगे चलकर जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक गतिशीलता और केंद्र सरकार की नीति को प्रभावित कर सकती है, खासकर जब अगले कुछ सालों में कश्मीर में विधानसभा चुनाव होने हैं और वहां की राजनीतिक स्थिरता की दिशा महत्वपूर्ण होगी।
