नई दिल्ली। कर्नाटक सरकार ने राज्य में लगातार बढ़ रही डॉग बाइट घटनाओं को गंभीरता से लेते हुए एक नई मुआवजा व्यवस्था लागू की है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब सुप्रीम कोर्ट ने पूरे देश में आवारा कुत्तों के कारण पैदा हो रहे खतरे को गंभीर सार्वजनिक सुरक्षा संकट बताते हुए सभी राज्यों को तुरंत प्रभावी कदम उठाने का आदेश दिया है। कर्नाटक का यह निर्णय आम लोगों को राहत देने वाला माना जा रहा है क्योंकि हाल के महीनों में कुत्तों के हमले से अनेक लोग घायल हुए हैं और कई मौतों की खबरें भी सामने आई हैं।
कर्नाटक सरकार की नई मुआवजा नीति
सरकार ने स्पष्ट किया है कि यदि किसी व्यक्ति की आवारा कुत्ते के हमले से मौत होती है तो उसके परिवार को पांच लाख रुपये की सहायता दी जाएगी। वहीं गंभीर चोट या गहरे जख्म के मामलों में पांच हजार रुपये की राहत राशि प्रदान की जाएगी जिसमें साढ़े तीन हजार रुपये सीधे पीड़ित को दिए जाएंगे और डेढ़ हजार रुपये उपचार के लिए सुवर्ण आरोग्य सुरक्षा ट्रस्ट को भेजे जाएंगे। यह व्यवस्था त्वरित राहत के उद्देश्य से बनाई गई है ताकि पीड़ितों का प्रारंभिक इलाज बिना देरी के हो सके।
सुप्रीम कोर्ट का सख्त आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या और हमलों की घटनाओं पर गहरी चिंता व्यक्त की है। अदालत ने कहा है कि स्कूल कॉलेज अस्पताल खेल परिसर बस स्टैंड रेलवे स्टेशन और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर किसी भी हालत में आवारा कुत्ते नहीं होने चाहिए। कोर्ट ने साफ किया है कि इन जगहों पर कुत्तों की उपस्थिति नागरिकों के लिए गंभीर खतरा है और संबंधित अधिकारियों को तत्काल कार्रवाई करनी होगी।
कुत्तों को सड़क पर वापस नहीं छोड़ा जाएगा
कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया है कि पकड़े गए कुत्तों को नसबंदी और टीकाकरण के बाद दोबारा उसी स्थान पर नहीं छोड़ा जाएगा। उन्हें निर्धारित डॉग शेल्टर में रखा जाएगा जहां उचित देखभाल की व्यवस्था होगी। इसके लिए मजबूत घेरेबंदी आवश्यक होगी ताकि कुत्ते फिर से सार्वजनिक स्थानों में प्रवेश न कर सकें। कोर्ट ने चेतावनी दी है कि आदेश का पालन न करने पर अधिकारियों पर व्यक्तिगत जिम्मेदारी तय की जाएगी।
तमिलनाडु के आंकड़ों ने बढ़ाई चिंता
कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने भी डॉग बाइट मामलों को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने जानकारी दी कि तमिलनाडु में इस वर्ष पांच लाख पच्चीस हजार से अधिक कुत्ते के काटने के मामले दर्ज हुए और रेबीज से अट्ठाईस लोगों की मौत हो चुकी है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश मानव सुरक्षा की दृष्टि से आवश्यक है और इसमें कहीं भी कुत्तों को नुकसान पहुंचाने की बात नहीं है बल्कि यह संतुलित और मानवीय दृष्टिकोण है।
आवारा कुत्तों की आबादी पर नियंत्रण की चुनौती
कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करने के लिए एनिमल बर्थ कंट्रोल यानी एबीसी कार्यक्रम को मानवीय और वैज्ञानिक तरीका माना जाता है। इसमें नसबंदी और एंटी रेबीज टीकाकरण दोनों शामिल होते हैं। पर विशेषज्ञों का कहना है कि एबीसी तभी सफल होता है जब इसे बड़े पैमाने पर तेज गति से लागू किया जाए। किसी क्षेत्र में प्रभावी नियंत्रण के लिए कम से कम सत्तर से अस्सी प्रतिशत कुत्तों की नसबंदी आवश्यक है और यह लक्ष्य तीन से पांच वर्षों में पूरा होना चाहिए। यदि नसबंदी की गति धीमी होती है तो कुत्तों की प्रजनन क्षमता कार्यक्रम की रफ्तार से अधिक हो जाती है जिससे परिणाम कमजोर पड़ जाते हैं।
एबीसी कार्यक्रम की सफलता और चुनौतियाँ
जहां एबीसी अच्छी योजना के साथ लागू किया गया वहां डॉग पॉपुलेशन और डॉग बाइट मामलों में स्पष्ट कमी देखी गई। लेकिन कई जगह यह कार्यक्रम विफल भी हुआ जिसकी वजह है कम संसाधन प्रशिक्षित वेटरनरी स्टाफ की कमी धीमी कार्यप्रणाली प्रवासी कुत्तों की समस्या और सही डेटा का अभाव। कई शहरों में नसबंदी दर पचास प्रतिशत से भी कम रहती है जिससे कुत्तों की आबादी पर कोई असर नहीं पड़ता कर्नाटक सरकार की नई मुआवजा नीति और सुप्रीम कोर्ट के कड़े निर्देशों के बाद उम्मीद की जा रही है कि आने वाले समय में आवारा कुत्तों से जुड़ी घटनाओं पर नियंत्रण होगा। यह कदम आम नागरिकों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है खासकर बच्चों महिलाओं और बुजुर्गों के लिए जो ऐसे हमलों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। यदि एबीसी कार्यक्रम को वैज्ञानिक ढंग से तेजी से और पर्याप्त संसाधनों के साथ लागू किया जाए तो यह समस्या काफी हद तक नियंत्रित हो सकती है।
