नई दिल्ली। त्रेतायुग में मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी के शुभ दिन भगवान श्रीराम और माता सीता का पावन विवाह संपन्न हुआ था। तभी से हर वर्ष इस तिथि को विवाह पंचमी के रूप में अत्यंत हर्ष और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष यह पावन उत्सव 25 नवंबर को मनाया जा रहा है। यह केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि भगवान राम–सीता के पवित्र दांपत्य आदर्शों का उत्सव है जिसे कई परंपराओं और अनुष्ठानों के साथ मनाया जाता है।
अयोध्या में निकलेगी दिव्य बारात
विवाह पंचमी के दिन प्रभु श्रीराम की नगरी अयोध्या पूरी तरह भक्ति के रंग में डूब जाती है। परंपरा के अनुसार वधू पक्ष और वर पक्ष का प्रतीकात्मक गठन किया जाता है। सुबह से ही सड़कों पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है, और पूरे शहर में भगवान श्रीराम की भव्य बारात निकाली जाती है। हाथी, घोड़े, शोभायात्रा, सुगंधित पुष्पवृष्टि और बैंड-बाजों के साथ यह बारात अयोध्या के हर कोने को दिव्यता से भर देती है। हजारों श्रद्धालु जयघोष करते हुए बारात के मार्ग पर शामिल होते हैं।
राम कलेवा—56 भोग की मनोहारी परंपरा
भगवान श्रीराम और माता सीता के विवाह के उपरांत अयोध्या के प्रमुख मठ-मंदिरों में राम कलेवा का भव्य आयोजन किया जाता है। इस दौरान उन्हें 56 प्रकार के विविध व्यंजनों का भोग अर्पित किया जाता है, जिसे शुभता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। समारोह के अंत में माता सीता की प्रतीकात्मक विदाई की परंपरा भी निभाई जाती है, जो भक्तों के मन को भावविभोर कर देती है। इस दिव्य क्षण को देखने के लिए देशभर से हजारों श्रद्धालु अयोध्या पहुंचते हैं, जिससे पूरा शहर उत्साह, भक्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा से आलोकित हो उठता है।
पूजा, व्रत और विशेष अनुष्ठानों का महत्व
विवाह पंचमी के अवसर पर सीता-राम मंदिरों में विशेष पूजा, यज्ञ, अनुष्ठान और रामचरितमानस का अखंड पाठ आयोजित किया जाता है। भक्तजन इस दिन व्रत रखते हैं और विधिपूर्वक माता सीता तथा प्रभु श्रीराम का पूजन करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन श्रद्धापूर्वक की गई उपासना से विवाह में आ रही बाधाएँ दूर होती हैं और परिवार में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। अस्वीकरण इस लेख में दी गई धार्मिक मान्यताएँ और परंपराएँ केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से प्रस्तुत की गई हैं। इनका उद्देश्य किसी भी विशेष आस्था या विचार का समर्थन करना नहीं है।
