53 हजार से अधिक लोगों की उपस्थिति का दावा
यह आयोजन ओटावा के मैकनैब कम्युनिटी सेंटर में 23 नवंबर को सुबह 10 बजे से शाम 3 बजे तक चला। आयोजक SFJ के अनुसार, कनाडा के विभिन्न प्रांतों—ओन्टारियो, अल्बर्टा, ब्रिटिश कोलंबिया और क्यूबेक—से 53,000 से अधिक समर्थक यहां पहुँचे। संगठन का दावा है कि छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक लोग सुबह से ही कतार में थे, और तीन बजे आधिकारिक समय समाप्त होने के बाद भी हजारों लोग मतदान के लिए लाइन में खड़े थे, जिसके चलते वोटिंग को बढ़ाना पड़ा।
वीडियो में ‘घेरो-काटो’ जैसे उग्र नारे
अल्बर्टा स्थित डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म मीडिया बेजिर्गन द्वारा साझा किए गए वीडियो में मतदान स्थल पर भारी भीड़ दिखाई देती है। कुछ वीडियो में खालिस्तानी समर्थक कथित तौर पर भारतीय नेताओं और सरकारी अधिकारियों के खिलाफ उग्र और हिंसक नारे लगाते नज़र आ रहे हैं। रिपोर्टों के अनुसार पुलिस के लायजन अधिकारी मौके पर मौजूद थे, जिन्होंने सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने में सीमित सहयोग तो किया, लेकिन हस्तक्षेप नहीं किया।
भारतीय तिरंगे का अपमान – वीडियो हुआ वायरल
वोटिंग समाप्त होने के बाद कुछ खालिस्तानी समर्थकों द्वारा भारतीय तिरंगे के साथ अभद्र व्यवहार किए जाने की घटनाएँ सामने आईं, जिनके वीडियो ऑनलाइन प्रसारित हैं। भारत में प्रतिबंधित संगठन SFJ द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में तिरंगे के अपमान को भारतीय समुदाय और सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं ने कड़ी आलोचना की है।
गुरपतवंत पन्नून का ‘सैटेलाइट संदेश’
भारत में यूएपीए (UAPA) के तहत प्रतिबंधित SFJ के जनरल काउंसल गुरपतवंत सिंह पन्नून, जिन्हें भारत ने आतंकवादी घोषित किया है, ने इस कार्यक्रम में सैटेलाइट संदेश के माध्यम से भीड़ को संबोधित किया। उन्होंने अपनी गतिविधियों को “जनमत की अभिव्यक्ति” बताया, जबकि भारत सरकार ऐसे किसी भी आयोजन को देश की संप्रभुता पर हमला मानती है।
कनाडाई प्रधानमंत्री की मोदी से मुलाकात पर सवाल
जनमत संग्रह के दिन ही दक्षिण अफ्रीका में हो रहे G20 नेताओं के सम्मेलन के इतर कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात हुई थी। SFJ ने इस मुलाकात पर सवाल उठाते हुए संकेत दिया कि कनाडाई सिख समुदाय की “बढ़ती सक्रियता” के बीच ऐसी बैठक “संदिग्ध” है। हालांकि कनाडाई सरकार ने पहले भी कहा है कि वह अपने देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सुरक्षा के बीच संतुलन बनाए रखने को प्रतिबद्ध है।
भारत-कनाडा संबंध फिर तनाव की ओर?
खालिस्तानी समर्थक कार्रवाइयों को लेकर भारत पहले भी कनाडा को कई बार चेतावनी दे चुका है। नई दिल्ली का कहना है कि हिंसक, अलगाववादी गतिविधियों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार नहीं दिया जा सकता। ओटावा की इस घटना के बाद दोनों देशों के संबंधों पर फिर से तनाव की छाया पड़ सकती है, खासकर जब हाल ही में दोनों देशों के बीच कुछ सकारात्मक संकेत दिखने लगे थे।
अतीत में भी कई बार हुआ तिरंगे का अपमान
कनाडा में इससे पहले भी तिरंगे के अपमान और खालिस्तानी उग्र नारेबाजी की कई घटनाएँ दर्ज की जा चुकी हैं।
मार्च 2024 में कॅलगरी में प्रदर्शनकारियों ने तलवारों और भालों से तिरंगा फाड़ने की कोशिश की थी।
अप्रैल 2025 की वैसाखी परेड (सरे, कनाडा) में ध्वज को जमीन पर घसीटने की घटना सामने आई थी।
नवंबर 2025 की शुरुआत में मॉन्ट्रियल की एक रैली में 500 से अधिक वाहन शामिल थे, जहां ‘खालिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगे।
15 नवंबर 2025 को ओटावा में भारतीय उच्चायुक्त के घर के बाहर रैली निकाली गई, जिसमें एयर इंडिया Kanishka बमकांड से जुड़े दोषियों में शामिल संतोक सिंह खेला को भी देखा गया।
नतीजा: कूटनीति की नई चुनौती
ओटावा की यह घटना भारत–कनाडा संबंधों को एक बार फिर तनावपूर्ण मोड़ पर ले जाने की क्षमता रखती है। जहां भारत ऐसे आयोजनों को अपनी संप्रभुता के खिलाफ मानता है, वहीं कनाडा के भीतर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उग्रवाद विरोधी नीतियों के बीच संतुलन एक जटिल चुनौती बन गया है। आने वाले महीनों में दोनों देशों की कूटनीतिक प्रतिक्रिया इस विषय को किस दिशा में ले जाएगी, यह देखना महत्वपूर्ण होगा।
