नई दिल्ली। बिहार की सियासत फिर से जाति, आरक्षण और सामाजिक न्याय के मुद्दे पर गरमाने लगी है। यह हलचल उस समय शुरू हुई जब जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने जातिगत व्यवस्था समाप्त करने की अपील की। उनका संदेश समाज में समानता और एकता का था जिसमें उन्होंने कहा कि धर्म और जाति से ऊपर उठकर सभी को एक-दूसरे के प्रति सम्मान और प्रेम रखना चाहिए। उनका मानना है कि जब तक समाज जाति के नाम पर बंटा रहेगा, तब तक राष्ट्र पूरी तरह मजबूत नहीं हो सकता।
हालांकि इस अपील को बिहार के राजनीतिक दलों ने आरक्षण खत्म करने की योजना के रूप में देखा। जन अधिकार पार्टी JAP के सांसद पप्पू यादव ने बयान जारी करते हुए कहा, रामभद्राचार्य कौन हैं, हम नहीं जानते। ये अंधा काना बहरा, गूंगा जैसे लोगों का इलाज केवल अंबेडकरवादी विचारों में है। बाबा साहब ने पहले ही स्पष्ट किया था कि हम वसुधैव कुटुम्बकम वाले लोग हैं संकीर्ण धार्मिक सोच वाले नहीं।
राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएँ
भाजपा ने रामभद्राचार्य के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि जातिगत विभाजन राष्ट्र को कमजोर करता है। भाजपा मंत्री लखेंद्र कुमार ने इस विचार का स्वागत किया, लेकिन कांग्रेस ने पलटवार किया। कांग्रेस नेता प्रेमचंद मिश्रा ने कहा कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को स्पष्ट करना चाहिए कि वे इस बयान के समर्थन में हैं या नहीं। उन्होंने आरोप लगाया कि ऐसे बयानों के जरिए RSS और भाजपा की मंशा साफ दिखाई देती है।
जेडीयू ने भी सख्त रुख अपनाया। प्रवक्ता अरविंद निषाद ने कहा, कौन क्या कहता है उससे हमें मतलब नहीं। आरक्षण को कोई छू नहीं सकता। यह देश संविधान और बाबा साहब के मार्ग पर चलेगा। वहीं आरजेडी के प्रवक्ता एजाज अहमद ने आरोप लगाया कि इस तरह के बयान दलितों, पिछड़ों और वंचितों के खिलाफ हैं। उनका कहना था कि SC-ST एक्ट और आरक्षण ने अत्याचारों को कम किया है और इसे कमजोर करने की कोशिश संविधान और सामाजिक न्याय के खिलाफ है।
पप्पू यादव का तर्क
पप्पू यादव ने जोर देकर कहा कि बाबासाहेब अंबेडकर का संघर्ष केवल धार्मिक सुधार तक सीमित नहीं था, बल्कि संवैधानिक और समतावादी समाज की स्थापना का था। उनका आरोप है कि रामभद्राचार्य का बयान, भले ही जाति समाप्त करने की अपील के रूप में पेश किया गया, संकीर्ण धार्मिक सोच से प्रेरित है, जो संविधान द्वारा प्रदत्त सामाजिक सुरक्षा यानी आरक्षण को नजरअंदाज करता है। यादव का मानना है कि जातिगत विभाजन का समाधान केवल धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि संवैधानिक और सामाजिक उपायों से किया जाना चाहिए।
संदेश और राजनीतिक परिदृश्य
रामभद्राचार्य ने अपने बयान में समाज को विभाजन से ऊपर उठकर एकजुट होने का आह्वान किया। लेकिन बिहार की राजनीति में इसे जाति, आरक्षण और सामाजिक न्याय के मुद्दे के रूप में पढ़ा जा रहा है। राजनीतिक दलों के बीच बहस ने राज्य में सामाजिक और संवैधानिक सुरक्षा की अहमियत को फिर से उजागर कर दिया है। इस घटनाक्रम ने यह स्पष्ट किया कि जाति और आरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दे बिहार की राजनीति में हमेशा गर्म रहते हैं और किसी भी बयान को लेकर सियासी तूफ़ान उठना सामान्य है।
