नई दिल्ली। मध्य प्रदेश के सिंगरौली ज़िले में धीरौली कोयला खदान को लेकर कांग्रेस और राज्य सरकार के बीच टकराव लगातार बढ़ता जा रहा है। कांग्रेस ने दावा किया है कि खदान संचालित करने वाली कंपनी ने नियमों को नज़रअंदाज़ करते हुए बड़े पैमाने पर वन कटाई शुरू कर दी है। पार्टी के प्रवक्ता और वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि आवश्यक वैधानिक अनुमति के बिना पेड़ों की कटाई की जा रही है तथा ग्रामीणों और बाहरी लोगों की आवाजाही पर पुलिस की मौजूदगी में रोक लगा दी गई है।
रमेश का कहना है कि यह कदम न सिर्फ पर्यावरण के लिए विनाशकारी है, बल्कि स्थानीय आदिवासी समुदायों को आजीविका और अस्तित्व के संकट की ओर धकेल देगा। वहीं राज्य सरकार कांग्रेस के इन आरोपों को पहले भी निराधार बता चुकी है।
जंगल कटाई, ग्राम सभा की अनदेखी और कानूनों के उल्लंघन के आरोप
जयराम रमेश ने कहा कि धीरौली में कोयला खदान के लिए वन कटाई के दौरान प्रक्रियाओं का उल्लंघन हुआ है। उनके अनुसार, भारी पुलिस बल की मौजूदगी में गांव के आसपास पेड़ों की कटाई शुरू की गई है और ग्रामीणों को अपने पारंपरिक जंगल क्षेत्र में प्रवेश तक नहीं करने दिया जा रहा। उन्होंने यह भी कहा कि आदिवासी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रामू टेकाम को इस विषय पर आवाज उठाने के कारण गिरफ्तार कर लिया गया।
कांग्रेस का आरोप है कि धीरौली क्षेत्र में वन अधिकार अधिनियम, 2006 तथा पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 का खुले तौर पर उल्लंघन हुआ है। यह क्षेत्र संविधान की पांचवीं अनुसूची के दायरे में आता है, जहां आदिवासी समुदायों को विशेष संरक्षण प्राप्त है और ग्राम सभा की अनुमति अनिवार्य मानी जाती है।
रमेश ने कहा कि ग्राम सभाओं से न तो परामर्श किया गया और न ही उनकी सहमति ली गई, जबकि सर्वोच्च न्यायालय भी ऐसे प्रकरणों में ग्राम सभा की मंजूरी को आवश्यक मानता है। उनका कहना है कि लगभग 3,500 एकड़ वनभूमि के उपयोग के लिए अंतिम अनुमति अभी तक प्राप्त नहीं हुई है, फिर भी वन कटाई की जा रही है, जो स्पष्ट रूप से कानून का उल्लंघन है।
उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि इस परियोजना के चलते आदिवासी समुदायों को मिलने वाला महुआ, तेंदू पत्ता, औषधीय पौधे, ईंधन के लिए लकड़ी तथा अन्य वन आधारित आजीविका साधन समाप्त हो जाएंगे। इससे आदिवासी परिवारों को दोहरी बेदखली का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि कई परिवार पहले भी अन्य परियोजनाओं के कारण अपने घरों से उजड़ चुके हैं। रमेश का कहना है कि वन संपदा केवल जीविका का आधार नहीं, बल्कि आदिवासी संस्कृति, आस्था और पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
राज्य सरकार और मंत्रालय का जवाब: सभी मंजूरियां विधिवत, आरोप भ्रामक
कांग्रेस के इन आरोपों पर राज्य सरकार का कहना है कि धीरौली परियोजना से संबंधित सभी वन और पर्यावरणीय मंजूरियां समय पर और नियमानुसार जारी की गई हैं। सरकार ने यह भी कहा कि कांग्रेस केवल भ्रम फैलाने का प्रयास कर रही है।
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भी पिछले सप्ताह स्पष्ट किया कि परियोजना को प्रथम और द्वितीय दोनों चरणों की अनुमति उचित प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही प्रदान की गई है। मंत्रालय ने कहा कि यह दावा गलत है कि खदान का क्षेत्र संविधान की पांचवीं अनुसूची के दायरे में आता है।
हालांकि कांग्रेस इन स्पष्टीकरणों से संतुष्ट नहीं है। जयराम रमेश का कहना है कि मंत्रालय का उत्तर तथ्यहीन है और वास्तविकता को छिपाने का प्रयास है। उन्होंने आरोप लगाया कि वर्ष 2019 में इस खदान का आवंटन “ऊपर से थोप कर” किया गया था और अब 2025 में बिना पूर्ण वैधानिक मंजूरी के इसकी प्रक्रिया तेज़ी से आगे बढ़ाई जा रही है।
धीरौली कोयला खदान को लेकर जारी इस विवाद ने न केवल राजनीतिक संघर्ष को उभारा है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन कैसे कायम रखा जाए। साथ ही, आदिवासी समुदायों के अधिकारों, सहभागिता और उनकी सांस्कृतिक पहचान की सुरक्षा को लेकर भी गंभीर चिंताएँ सामने आ रही हैं।
