हाल ही में चांदी के भाव में तेज उछाल आया था और कुछ समय के लिए यह सोने से भी अधिक रुझान दिखा। बाजार अब धीरे-धीरे सुस्त हुआ है, लेकिन जिन निवेशकों ने हर साल छोटी-छोटी मात्राओं में चांदी खरीदना शुरू किया था—मान लें 5 किलो प्रतिवर्ष—उनके लिए 20 साल में यह मात्रा बड़े स्तर की संपत्ति में बदल जाती है: कुल मिलाकर लगभग 100 किलो चांदी। यह सोचने की बात है कि इतनी बड़ी मात्रा घर पर रखने पर क्या कानून या टैक्स के नियम लागू होंगे।
सबसे पहले यह स्पष्ट कर दें: किसी भी नागरिक के पास चांदी रखने पर कोई सख्त मात्रात्मक प्रतिबंध नहीं है — यानी कानून सीधे तौर पर यह नहीं कहता कि आप कितनी चांदी रख सकते हैं। मुद्दा यह है कि जब संपत्ति बड़ी हो जाए, तो उसकी स्रोत-व्यवस्था (source of funds) और खरीद का दस्तावेजी सबूत होना जरूरी बन जाता है। अगर खरीद बिल, बैंक ट्रांजैक्शन या विरासत/उपहार के कागजात मौजूद हों तो आम तौर पर परेशानी नहीं होती। वहीं, टैक्स अधिकारियों को जब संदेह होगा तो वे स्रोत की व्याख्या मांग सकते हैं।
अगर आप बिना दस्तावेज़ बड़ी मात्रा में चांदी रखते हैं — जैसे कि नकद खरीद और रिकॉर्ड न रखना — तो इनकम-टैक्स प्राधिकरण उन वस्तुओं को “अघोषित” मान सकते हैं। खास प्रावधानों के तहत, जब किसी के पास असंबद्ध रूप से पैसा, बुलियन या कीमती सामान मिलता है और वो इसे पुस्तकों में नहीं दिखाते या संतोषजनक व्याख्या नहीं देते तो इसे आय मानकर टैक्स और पेनाल्टी लगाया जा सकता है (अनियमित संपत्ति से जुड़ी धाराएँ जैसे सेक्शन-69/69A से संबंधित प्रावधान लागू हो सकते हैं)। इसलिए बड़े आयतन की चांदी की खरीद-फरोख्त के रिकॉर्ड रखना अनिवार्य है।
टैक्स जब बिकवाली पर आता है तो चांदी को कैपिटल एसेट माना जाता है — यानी बेचने पर होने वाला मुनाफा कैपिटल-गेन के रूप में कर योग्य होगा। पारंपरिक रूप से भौतिक बुलियन/ज्वेलरी पर लॉन्ग-टर्म कैपिटल-गेन (LTCG) तब मान्यता पाता है जब होल्डिंग पीरियड 36 महीने (3 साल) से अधिक हो, और इसके पहले लागू पुरानी/नई टैक्स व्यवस्था के अनुसार अलग-अलग नियम होते रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में LTCG की दरों व इंडेक्सेशन के नियमों में परिवर्तन आया है — इसलिए हाल की तारीखों के अनुसार टैक्स की दरें और इंडेक्सेशन विकल्प बदल सकते हैं; सामान्य सलाह यही है कि बड़े डिस्पोजल (बिक्री) से पहले कर विशेषज्ञ से सलाह लें।
आम सलाह और सुरक्षा-नियम:
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हर खरीद का बिल/रसीद, बैंक/डीमैट ट्रांजैक्शन और इनवॉइस संभाल कर रखें।
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नकद बड़ी खरीद से बचें; बैंक ट्रांजैक्शन होने पर स्रोत साबित करना आसान होता है।
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अगर कभी कर विभाग पूछताछ करे तो खरीद-स्रोत और आय-विवरण स्पष्ट रखें—वरना सेक्शन 69/69A के तहत समस्या हो सकती है।
