नई दिल्ली । जेएनयू स्टूडेंट्स यूनियन (JNUSU) चुनावों में एक बार फिर लेफ्ट यूनिटी ने अपना परचम लहरा दिया है। विश्वविद्यालय के चारों शीर्ष पद- प्रेसिडेंट, वाइस प्रेसिडेंट, जनरल सेक्रेटरी और ज्वाइंट सेक्रेटरी- पर लेफ्ट संगठनों के उम्मीदवारों ने शानदार जीत दर्ज की है। इससे न केवल छात्र राजनीति में लेफ्ट का दबदबा और मजबूत हुआ है, बल्कि जेएनयू के कैंपस में प्रगतिशील राजनीति के नए दौर की शुरुआत भी मानी जा रही है।
इस बार अध्यक्ष पद की कमान AISA की उम्मीदवार अदिति मिश्रा के हाथ में आई है। उन्होंने ABVP के विकास पटेल को 414 वोटों के अंतर से पराजित किया। अदिति को 1,861 वोट मिले, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी को 1,447 वोट ही हासिल हुए। गंगा किनारे वाराणसी से निकलकर यमुना के तट तक पहुंचे अदिति के इस सफर ने उन्हें जेएनयू छात्र राजनीति की नई पहचान बना दिया है।
बनारस से जेएनयू तक का सफर
वाराणसी की रहने वाली अदिति मिश्रा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा यूपी में पूरी की। उनका छात्र राजनीति से नाता 2017 में बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU) में शुरू हुआ, जब उन्होंने हॉस्टल की छात्राओं पर थोपे गए कर्फ्यू टाइमिंग के खिलाफ आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाई। तभी से अदिति सामाजिक न्याय, जेंडर समानता और लोकतांत्रिक अधिकारों के मुद्दों पर मुखर रही हैं।
संघर्षों से बनी पहचान
2018 में पुडुचेरी यूनिवर्सिटी में दाखिले के दौरान उन्होंने विश्वविद्यालय में कथित भगवाकरण के विरोध में आंदोलन का नेतृत्व किया और वाइस चांसलर के दफ्तर का घेराव किया। इसके बाद 2019 में फीस बढ़ोतरी के खिलाफ छात्रों के साथ मिलकर एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक को बंद कराने का कदम उठाया, जिससे वे राष्ट्रीय स्तर पर पहचानी जाने लगीं। एंटी-सीएए आंदोलन के दौरान भी अदिति ने सक्रिय रूप से एकजुटता दिखाई, जिससे उनकी प्रगतिशील छवि और मजबूत हुई।
नेतृत्व और दृष्टि
जेएनयू में पीएचडी के दूसरे वर्ष में अदिति मिश्रा को विश्वविद्यालय की इंटरनल कमिटी का प्रतिनिधि चुना गया, जहाँ उन्होंने छात्रों के हितों की पैरवी करते हुए जवाबदेह और पारदर्शी व्यवस्था की मांग उठाई। इस सक्रियता ने उन्हें छात्र समुदाय के बीच लोकप्रिय बनाया और उन्हें अध्यक्ष पद तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई।
नए नेतृत्व का संकेत
अदिति मिश्रा की जीत को छात्र राजनीति में जेंडर जस्टिस, समानता और समावेशिता के लिए एक नई दिशा के रूप में देखा जा रहा है। उनकी विजय ने यह संदेश दिया है कि छात्र अब भी वैचारिक राजनीति, संवाद और संघर्ष को महत्व देते हैं।
कुल मिलाकर, जेएनयू में लेफ्ट यूनिटी की यह जीत और अदिति मिश्रा का उदय यह साबित करता है कि विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति अब भी विचार, संघर्ष और परिवर्तन के केंद्र में है। जहाँ से आने वाले समय की नई राजनीतिक धारा आकार लेती है।
