नई दिल्ली । गुजरात के अमरेली जिले के सावरकुंडला तालुका के जीरा गांव के किसानों के लिए 30 साल पुरानी पीड़ा का अंत हो गया है। 1995 में सेवा सहकारी मंडली के बंद होने के बाद करीब 300 किसान कर्ज के जाल में फंस गए थे। अब मंडली के पुनर्जीवित होने और एक उदार नागरिक की पहल से किसानों को फसल ऋण मिलने का रास्ता खुल गया है।
गांव के मूल निवासी और सूरत के प्रसिद्ध हीरा कारोबारी बाबूभाई चोडवाडिया उर्फ जीरावाला ने इस दिशा में सराहनीय कदम उठाया। उन्होंने अपनी मां की पुण्यतिथि पर उनकी अंतिम इच्छा के अनुरूप अपनी संपत्ति का उपयोग जनकल्याण के लिए करने का निर्णय लिया। बाबूभाई ने 290 किसानों के 30 साल पुराने कर्ज को चुकाने के लिए 89 लाख रुपये दान किए। यह राशि 1995 में किसानों के नाम पर लिए गए फर्जी ऋण का बोझ था।
इस पहल से जीरा गांव के किसानों को न केवल कर्जमुक्ति मिली, बल्कि उन्हें आर्थिक स्वतंत्रता और राहत की नई सांस भी मिली। गांव में आयोजित समारोह में अमरेली सांसद भरत सुतारिया, विधायक महेश कसवाला और बैंक अधिकारी उपस्थित रहे। इस अवसर पर किसानों को ‘अदेयता प्रमाण पत्र’ (Due Certificate) सौंपे गए, जिससे उनकी 30 साल पुरानी आर्थिक बेड़ियों से मुक्ति की पुष्टि हुई।
किसान नाथाभाई शिरोया और महेशभाई दुधात ने भावुक होते हुए कहा कि तीन दशकों में उनके “काले बाल सफेद हो गए”, लेकिन ऋण नहीं मिल सका। उन्होंने बाबूभाई को “भगवान के रूप में अवतरित” बताया और उनके परिवार के लिए खुशहाली की कामना की।
जीरा गांव की सरपंच दक्षाबेन चोडवाडिया ने कहा कि बाबूभाई ने 89 लाख रुपये का कर्ज चुकाकर उनके ससुर का अधूरा सपना पूरा किया। सांसद भरत सुतारिया ने इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि बाबूभाई का यह कार्य उन गांवों के लिए प्रेरणा है, जहां किसान आज भी ऐसे कर्जों से जूझ रहे हैं।
बाबूभाई जीरावाला की इस अनोखी पहल ने न केवल 300 किसानों को कर्जमुक्त किया, बल्कि उनके 7/12 कागज से दर्ज बोझ को भी हटाया। अब किसान आसानी से अन्य बैंकों से फसल ऋण प्राप्त कर सकते हैं, जिससे जीरा गांव में नई आर्थिक उम्मीद और खुशहाली का दौर शुरू हो गया है।
इस पहल से साबित होता है कि व्यक्तिगत उदारता और सामूहिक सोच मिलकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बड़ा बदलाव ला सकती है। जीरा गांव के किसानों के चेहरे पर मुस्कान और खेतों में उम्मीद की नई रोशनी ने यह संदेश दे दिया है कि कठिनाइयों के बावजूद बदलाव संभव है।
