नई दिल्ली । जेल से रिहाई के बाद समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री आजम खान ने एक बार फिर अखिलेश यादव से मुलाकात की है। यह उनकी दूसरी भेंट है, लेकिन इस बार इसका सियासी तापमान कुछ और ही है। लखनऊ में हुई इस मुलाकात ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में नई चर्चाओं और संभावनाओं को जन्म दे दिया है।
आजम खान ने अखिलेश यादव से मुलाकात के दौरान कहा कि उनके साथ अन्याय हुआ है और वे नहीं चाहते कि किसी और के साथ ऐसा हो। उन्होंने दो टूक कहा कि “मैं जानबूझकर रेल की पटरी पर सिर नहीं रखूंगा” — यह बयान उनके आत्मविश्वास और चेतावनी दोनों का प्रतीक माना जा रहा है। मुलाकात के बाद उन्होंने मीडिया से कहा कि उन्होंने अखिलेश यादव से सिर्फ न्याय और निष्पक्ष जांच की बात की है।
राजनीतिक विश्लेषक इस भेंट को समाजवादी खेमे में पुराने संबंधों की वापसी और संभावित पुनर्संयोजन के संकेत के रूप में देख रहे हैं। रामपुर से लेकर लखनऊ तक आजम खान का प्रभाव सपा की मुस्लिम राजनीति का अहम हिस्सा रहा है, और यह मुलाकात उसी कड़ी को फिर से मजबूत करने की कोशिश मानी जा रही है।
बिहार की राजनीति पर पूछे गए सवाल पर आजम खान ने नीतीश कुमार सरकार पर तीखा तंज कसा। उन्होंने कहा, “कहा जा रहा है कि बिहार में जंगलराज है, जहाँ लोग नहीं रहते। इसलिए मैं जानबूझकर रेल की पटरी पर सिर नहीं रखूंगा।” इस बयान को लेकर राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह की व्याख्याएँ की जा रही हैं।
आजम खान ने ओवैसी के नाम का सीधा उल्लेख किए बिना अपील की कि “मुझ पर रहम किया जाए, मुझे बर्बाद न किया जाए।” उन्होंने कहा कि बिहार का दूसरा चरण बचा है, उसमें कोई नुकसान नहीं होना चाहिए। उनका कहना था कि वे अब किसी ऐसे इलाके में नहीं जाएंगे जहाँ सुरक्षा सुनिश्चित न हो।
इस मुलाकात की अहमियत अखिलेश यादव की प्रतिक्रिया से भी झलकती है। उन्होंने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर आजम खान के साथ तस्वीरें साझा करते हुए लिखा- “जब आज वो हमारे घर आए, जानें कितनी यादें वे अपने साथ ले आए। यह मेल-मिलाप हमारी साझी विरासत है।”
राजनीतिक तौर पर यह भेंट कई संदेश दे रही है। एक ओर आजम खान अपने पुराने गिले-शिकवे मिटाते नजर आए, वहीं अखिलेश यादव ने रिश्तों की डोर को फिर से मजबूत करने की पहल दिखाई। सपा के भीतर यह नई नजदीकी पार्टी के लिए आने वाले चुनावी समीकरणों में अहम भूमिका निभा सकती है।
कुल मिलाकर, आजम–अखिलेश की यह मुलाकात सिर्फ भावनात्मक नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नई हलचल और संभावित गठजोड़ों का संकेत देती दिख रही है।
