नई दिल्ली । सफेदपोश आतंकवाद यानी व्हाइट कॉलर टेररिज्म देश की सुरक्षा एजेंसियों के लिए अब एक नई चुनौती बन गया है। हालिया लालकिले धमाके में जिस कश्मीर के एक डॉक्टर का नाम सामने आया, वहीं कानपुर की प्रोफेसर डॉ. शाहीन सिद्दीकी से भी कुछ कड़ियों को जोड़ा जा रहा है। यह घटनाएं संकेत दे रही हैं कि अब आतंकवादी संगठनों का निशाना केवल बेरोजगार या कम पढ़े-लिखे युवा नहीं बल्कि पढ़े-लिखे और पेशेवर लोग भी बन गए हैं।
पूर्व में कश्मीर में आतंकवादी संगठन हिज़बुल, लश्कर, जैश और अंसार गज़वा-तुल-हिंद ने मुख्य रूप से कम पढ़े-लिखे युवाओं को अपने जाल में फंसा कर आतंक की शिक्षा दी थी। अब उनका दायरा बढ़ गया है और डॉक्टर, प्रोफेसर और स्नातक, परास्नातक किए युवा इस जाल में फंस रहे हैं। यह नया मोड्यूल सुरक्षा एजेंसियों के लिए चुनौतीपूर्ण है।
पूर्व डीजीपी एसपी वैद के मुताबिक, कश्मीर में धार्मिक आड़ में युवाओं को बरगलाने की प्रवृत्ति 2019 के बाद सख्त सुरक्षा निगरानी और सोशल मीडिया पर नियंत्रण के बावजूद बढ़ती जा रही है। आतंकी संगठन नए-नए हथकंडे अपना रहे हैं और कभी-कभी उसमें सफल भी हो जाते हैं।
कई कश्मीर के पढ़े-लिखे और पेशेवर लोग आतंकवादी बन चुके हैं। इनमें शामिल हैं:
जाकिर राशिद भट्ट उर्फ मूसा- बीटेक, गजवत उल हिंद का चीफ।
खुर्शीद अहमद मलिक- इंजीनियरिंग स्नातक, पुलवामा का रहने वाला।
मोहम्मद रफी भट- कश्मीर विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर।
जुबैर अहमद वानी- एमफिल स्कॉलर।
मन्नान बशीर वानी- अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के रिसर्च स्कॉलर।
रियाज नायकू- गतिण के शिक्षक।
जुनैद अशरफ सेहरई – एमबीए किया और तहरीक-ए-हुर्रियत के नेता का बेटा।
विशेषज्ञों के अनुसार, दक्षिण कश्मीर कट्टरपंथ का गढ़ माना जाता है। जमात-ए-इस्लामी और आईएसआई जैसी संगठनों ने दक्षिण कश्मीर से ऐसे युवा चुने हैं, जिनका पहले कोई आतंकवादी रिकॉर्ड नहीं था। चार डॉक्टर इसी क्षेत्र से आतंकवादी मोड्यूल में पकड़े गए।
सुरक्षा एजेंसियों का कहना है कि यह नया व्हाइट कॉलर टेररिज्म मॉड्यूल देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है। पढ़े-लिखे युवाओं को बरगलाकर आतंकवाद में शामिल करना न केवल सामाजिक और पेशेवर तंत्र को प्रभावित करता है, बल्कि देश की सुरक्षा और सामूहिक शांति पर भी सटीक और दीर्घकालिक खतरा उत्पन्न करता है।
देशभर में आतंकी संगठनों की रणनीति में यह बदलाव दर्शाता है कि अब आतंकवाद केवल हिंसा का साधन नहीं बल्कि शिक्षित और पेशेवर वर्ग का इस्तेमाल भी अपनी ताकत बढ़ाने के लिए कर रहा है।
