नई दिल्ली/लखनऊ। बिहार में हाल ही में बीजेपी की जीत ने उत्तर प्रदेश में अगले विधानसभा चुनावों की राजनीति को नई दिशा दे दी है। पार्टी के लिए अब यूपी में तीसरी बार सरकार बनाने की तैयारी के बीच बिहार जैसी ऊर्जा और जोश भरना बड़ी चुनौती साबित हो सकती है। पिछले एक साल में संगठन और सरकार ने कार्यकर्ताओं में उत्साह बनाए रखने के लिए निगमों और आयोगों में मनोनयन नहीं दिए, जिससे कार्यकर्ताओं में उदासीनता बढ़ी है। ऐसे में नए प्रदेश अध्यक्ष के साथ नई कार्यकारिणी बनाना भी भाजपा के लिए अहम मुद्दा है।
विश्लेषकों का मानना है कि बिहार में जदयू और भाजपा के समन्वय, जंगलराज का विरोध और महिला सशक्तीकरण जीत के मुख्य कारण रहे। यूपी में भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की “बुलडोजर बाबा” की छवि, कानून-व्यवस्था सुधार और महिलाओं के कल्याणकारी कार्यक्रमों को मिशन-2027 का मुख्य एजेंडा बनाने की संभावना है। इसी रणनीति के बलबूते भाजपा ने वर्ष 2022 में लगातार दूसरी बार सत्ता हासिल की थी।
वहीं, समाजवादी पार्टी (सपा) के लिए 2024 में वोट प्रदर्शन बनाए रखना चुनौतीपूर्ण होगा। बिहार में राजद की हार, भाजपा के कानून-व्यवस्था, भ्रष्टाचार और जंगलराज विरोधी अभियानों के बावजूद, जातीय मुद्दे अपेक्षित असर नहीं ला पाए। यूपी में भी सपा को एम-वाई जातीय समीकरण और ओबीसी या पीडीए वोट बैंक जुटाने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है। विश्लेषकों का कहना है कि दलित वोट भाजपा से सपा की ओर आए थे, वहीं बसपा मुखिया मायावती की सक्रियता सपा के लिए चुनौती बन सकती है।
साथ ही, बिहार की जीत ने भाजपा के सहयोगी दलों के लिए भी राजनीतिक सबक दिया है। जदयू और भाजपा ने लगातार 20 साल के शासन के बाद भी सहयोग और समन्वय बनाए रखा। सुभासपा और अपना दल जैसे सहयोगी दलों के लिए यह उदाहरण है कि मतदाताओं को एकजुटता का संदेश देना कितना जरूरी है। समय-समय पर स्वार्थ सिद्ध करने या विवादों में फंसने से पार्टी को नुकसान हो सकता है।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यूपी में भाजपा की रणनीति मुख्य रूप से कानून-व्यवस्था, महिला सुरक्षा और विकास पर केंद्रित होगी। सपा के लिए चुनौती यह होगी कि वे जातीय समीकरण, पीडीए वोट और सहयोगी दलों की सक्रियता के बीच संतुलन बनाए रखें। बिहार चुनाव का अनुभव यूपी के लिए पार्टी संगठन और चुनावी रणनीति दोनों में महत्वपूर्ण सबक साबित होगा।
