नई दिल्ली । बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के रुझानों ने एनडीए के पक्ष में ऐतिहासिक जनादेश का संकेत दिया है। अब तक के आंकड़ों के मुताबिक 243 सीटों में से एनडीए 192 सीटों पर आगे चल रही है, जबकि महागठबंधन केवल 46 सीटों तक सीमित नजर आ रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह सिर्फ विपक्ष की असफलता नहीं, बल्कि एनडीए की मजबूत रणनीति, श्रेष्ठ उम्मीदवार और प्रभावशाली नेतृत्व का परिणाम है।
एनडीए की जीत के पीछे छह प्रमुख कारण सामने आए हैं। सबसे पहला और महत्वपूर्ण कारण मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का राजनीतिक अनुभव है। 74 वर्षीय नीतीश ने अपनी चतुराई और सामाजिक समन्वय की क्षमता से गठबंधन को मजबूती दी। ‘सुशासन बाबू’ की छवि ने उन्हें सभी वर्गों में लोकप्रिय बनाया, और ईबीसी से लेकर मुसलमानों तक उनके प्रति समर्थन बना रहा।
दूसरा बड़ा कारण चिराग पासवान की सक्रियता रही। रामविलास पासवान के पुत्र चिराग ने अपनी युवा ऊर्जा और पासवान वोट बैंक को एनडीए में जोड़कर गठबंधन को मजबूती दी। उनकी 100 से अधिक रैलियों और सोशल मीडिया गतिविधियों ने दलित और युवा वोटरों को एकजुट रखा। 2020 के अनुभवों से सीख लेकर इस बार उन्होंने वोटों का विभाजन रोकते हुए एनडीए को फायदा पहुँचाया।
तीसरा कारण एनडीए गठबंधन का आपसी समन्वय है। बीजेपी, जेडीयू, एलजेपी और हम के बीच सीटों के बंटवारे में कोई विवाद नहीं रहा, जबकि महागठबंधन अंतिम समय तक आपस में उलझा रहा।
चौथा कारण मुख्यमंत्री चेहरे पर बीजेपी की रणनीति रही। बीजेपी ने नीतीश को मुख्यमंत्री के रूप में बनाए रखने और विरोधियों को असमंजस में डालने की रणनीति अपनाई, जो सफल रही।
पाँचवां कारण सुशासन और विकास योजनाएं हैं। नीतीश के शासन में कानून-व्यवस्था, सड़कें, बिजली और शिक्षा में सुधार ने मध्यम वर्ग का समर्थन बढ़ाया। फेज्ड नौकरियों, स्मार्ट सिटी और एक्सप्रेसवे जैसी परियोजनाओं ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती दी।
छठा और अंतिम कारण जमीनी स्तर पर लागू योजनाओं का लाभ है। सात निश्चय योजना, पीएम आवास, उज्ज्वला और आयुष्मान जैसी योजनाओं ने ईबीसी, दलित और महिलाओं को लाभ पहुंचाया, जिससे एनडीए को स्थायी वोट बैंक मिला।
विशेषज्ञों का कहना है कि इन सभी कारकों ने मिलकर एनडीए को बिहार में ऐतिहासिक बढ़त दिलाई है और 2025 का यह चुनाव भारतीय राजनीति में यादगार बनेगा।
