रमेश शर्मा
(26 नवम्बर : संविधान दिवस पर विशेष)
भारतीय संविधान संसार में सबसे विशिष्ट और सबसे व्यापक है। यह अपने प्रावधानों के साथ अपने बाईस चित्रों से भी जाना जाता है। इन चित्रों में भारत राष्ट्र के ऐतिहासिक गौरव, साँस्कृतिक विशिष्टता और भविष्य के जीवन की प्रेरणा की झलक भी है।
संविधान सभा का गठन अंग्रेजीकाल में ही हो गया था। इसमें भारत की सभी रियासतों, राजनैतिक दलों, कुछ सामाजिक संगठनों, विषय विशेषज्ञों तथा सरकार के मनोनीत प्रतिनिधि शामिल किये गये थे। संविधान सभा के गठन की प्रक्रिया सितम्बर 1946 से आरंभ हुई और नवम्बर 1946 में पूरी होकर 6 दिसंबर 1946 को विधिवत घोषणा कर दी गईथी। संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई। इसके कुल सदस्य 389 थे। भारत विभाजन के बाद संविधान सभा के कुछ सदस्य पाकिस्तान चले गये। तब सदस्य संख्या घटकर 299 रह गई थी। संविधान सभा के गठन के साथ पहले डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को अस्थायी अध्यक्ष बनाया गया। बाद में डॉ. राजेंद्र प्रसाद स्थाई अध्यक्ष चुने गए। संविधान के प्रावधान निश्चित होने के बाद डॉ. भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में प्रारूप समिति बनी। इस समिति में कुल सात सदस्य थे। 26 नवम्बर 1949 को संविधान स्वीकार किया गया और 26 जनवरी 2950 से लागू हुआ। संविधान तैयार करने में कुल 2 वर्ष 11 महीने और 18 दिन लगे। भारतीय संविधान में संसार के विभिन्न देशों के सभी आदर्श प्रावधान शामिल किये गये हैं।
संविधान में चित्र और उनका संदेश
संविधान की मूल प्रति टाइपिंग या प्रिंटेड नहीं है। हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में हाथ से लिखी गई है। इसे प्रेम बिहारी रायजादा ने लिखा है। भारतीय संविधान कुल बाईस भागों में प्रस्तुत किया गया है। प्रत्येक भाग में एक विशिष्ट चित्र है। पृष्ठ के ऊपर पहले चित्र उकेरा गया फिर उसके नीचे प्रावधान लिखे गये। इस प्रकार संविधान के बाईस भागों में बाईस चित्र हैं। इन चित्रों में भारत का ऐतिहासिक गौरव, साँस्कृतिक विशिष्टता, कर्तव्य बोध, और प्रकृति की विविधता का चित्रण है। संविधान निर्माता संवैधानिक प्रावधानो के साथ इन चित्रों के माध्यम से शासन और समाज जीवन को आदर्श शैली का संदेश भी देना चाहते थे। इसी भाव की झलक इन चित्रों में है। इसीलिए भारतीय वाङ्मय के ऐसे प्रतीकों एवं नायकों के चित्रों का चयन किया जो आदर्श, कर्त्तव्य पारायणता और उच्चतम चरित्र के लिये कालजयी हैं। शौर्य, सामर्थ्य, दूरदृष्टि, संकल्पशीलता, समृद्धि आदर्श, विश्व शाँति, विश्व बंधुत्व का संदेश देने वाले हैं।
इन चित्रों का आरंभ संविधान के आवरण पृष्ठ से ही होता है।आवरण पृष्ठ पर एक राजचिन्ह और एक घोष वाक्य है। राजचिह्न के रूप में सम्राट अशोक के “सिंह स्तंभ” का चयन किया गया। इस “सिंह-स्तंभ” के ऊपर धर्मचक्र और नीचे घंटे के आकार का पद्म बना है। स्तंभ के ऊपर चित्र वल्लरी में हाथी, घोड़ा, सांड, और सिंह की मूर्तियां और मूर्तियों के बीच में चक्र है। राजचिन्ह के इस प्रतीक में हाथी विशालता का, सिंह शौर्य का, घोड़ा गति का और सांड सामर्थ्य का प्रतीक है। प्रगति के लिये विशालता, शौर्य, बल और गतिशीलता आवश्यक होती है। इस राज-चिन्ह के साथ घोष-वाक्य “सत्यमेव जयते” अंकित है। यह “मुंडकोपनिषद से लिया गया है। इस घोष वाक्य के चयन से दो संदेश मिलते हैं। एक उपनिषदों की महत्ता और दूसरा सत्य के प्रति निष्ठा का। वहीं व्यक्ति को सफलता की ऊँचाई पर पहुंच सकता है जो सत्य पर अडिग रहता हो। अंग्रेजी प्रति के आवरण को सुनहरे रंग के शतदल कमल और अन्य फूलों से सजाया गया है। यह अजंता की भित्ति चित्र शैली है।
इसके बाद संविधान के प्रत्येक भाग का आरंभ भी चित्र से ही होता है। संविधान के पहले भाग में सिंधु घाटी सभ्यता के चर्चित प्रतीक जेबू बैल का चित्र अंकित है। संविधान के इस भाग में भारतीय संघ का नाम और उसका राज्यक्षेत्र है। जेबू बैल मोहन-जोदड़ो और हड़प्पा संस्कृति का प्रतीक है। यह माना जाता है कि हड़प्पा काल में जेबू बैल सदैव सक्रिय रहता था और हिंसक प्राणियों से रक्षा करता है। प्रथम भाग पर जेबू बैल का चित्र देकर संविधान सभा ने एक ऐसे “राष्ट्र तंत्र” की कल्पना की है जो हिंसक और अपराधी प्रवृत्ति की शक्तियों से समाज को सुरक्षित रख सके।
संविधान के तृतीय भाग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी का चित्र अंकित हैं। संविधान के इस भाग में मौलिक अधिकार और कर्तव्य का प्रावधान है। रामजी के जीवन से कुटुम्ब बोध, कर्तव्यबोध, एवं संपूर्ण राष्ट्र और समाज को एक सूत्र में पिरोने की सीख मिलती है। चित्र में रामजी, सीताजी और लक्ष्मणजी पुष्पक विमान से अयोध्या लौट रहे हैं। रामजी की लंका पर विजय में शक्ति, वीरता, और युद्ध कौशल का अद्भुत संदेश है। इस चित्र में सफलता प्राप्त करके लौटने का संदेश है। स्वाधीनता संग्राम में जन जागरण के लिये रामराज्य की कल्पना की गई थी। स्वतंत्रता के बाद शासन व्यवस्था राम राज्य के आदर्शों के अनुरूप चले यही स्मरण कराने संभवतः संविधान सभा ने ये चित्र जोड़े। एक चित्र वैदिक काल के गुरुकुल का है। यह चित्र संविधान के भाग दो में है। इस भाग का नाम नागरिकता है। यह पेज नंबर तीन पर है। इसमें अग्नि, इंद्र और सूर्य का पूजन दिखाई दे रहा है। इसमें दोनों संदेश हैं श्रेष्ठतम नागरिक वही होगा जो शिक्षा और आदर्श सिद्धांतों का पालन करता है। विद्यार्थी जीवन में जो सरलता, संकल्पशीलता और एकाग्र चित्त्त से आगे बढ़ता है, वही श्रेष्ठतम नागरिक बनता है। संविधान निर्माताओं ने यदि सत्यमेव जयते घोष वाक्य लिया तो सत्य की रक्षा के लिये भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को उपदेश देते हुये चित्र भी उकेरा है। इस चित्र से स्पष्ट है, कि भले सत्य शाश्वत होता है लेकिन सत्य की रक्षा के लिये संघर्ष भी आवश्यक है। यदि सत्य की रक्षा के लिये संघर्ष नहीं किया जाय तो असत्य और आसुरी शक्तियाँ प्रभावी हो जाती हैं। सत्य की रक्षा के लिये शक्ति, शास्त्र, शौर्य और रणनीति का संतुलन आवश्यक होता है। यही संदेश भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवत गीता में दिया। अर्जुन को गीता का यह ज्ञान देते हुए भगवान श्रीकृष्ण संविधान के भाग चार में है। इस भाग में राज्य की नीति के निदेशक तत्व बताए गए हैं। अर्थात संविधान सभा ने राज्य के नीति निदेशक तत्वों को गीता के संदेश से जोड़ने का संकेत किया है। संविधान के भाग पांच में भगवान बुद्ध का चित्र है। इस भाग का नाम संघ है। यह पेज नंबर 20 पर है। इस चित्र में बुद्ध लोगों को ज्ञान देते दिख रहे हैं। भगवान बुद्ध की संपूर्ण शिक्षा में पूर्णता का संदेश है। यह पूर्णता किसी वाह्य साधन से नहीं अपितु स्वयं की केन्द्रीभूत चेतना से हो। यही संदेश भगवान बुद्ध के इस चित्र से है।
संविधान में राज्य को तीन अनुसूचियों में रखा गया है। एक “क” दूसरा “ख” और तीसरा “ग”। पहली अनुसूची “क” राज्यों को संविधान के भाग छह में रखा गया है। इस भाग में भगवान महावीर ध्यानस्थ मुद्रा में चित्रित किये गये हैं। जबकि दूसरी अनुसूची “ख” राज्यों के अधिकार एवं कर्त्तव्य संविधान के भाग सात में सम्राट अशोक का चित्र है। इसमें सम्राट अशोक भिक्षुओं के साथ बौद्ध धर्म का प्रसार करते दिखाई दे रहे हैं। संविधान के भाग आठ में हनुमानजी का चित्र है। इस भाग का नाम भी राज्य है। इसमें “ग” अनुसूची के राज्यों के स्वरूप का वर्णन है। चित्र में हनुमानजी माता सीता की खोज में लंका जा रहे हैं। जिस प्रकार भगवान बुद्ध ने अपनी अंर्तचेतना से जीवन के सत्य को समझा उसी प्रकार सम्राट अशोक के मन में भीतर से चेतना जागी। हनुमान जी ने स्वविवेक से मार्ग तराशकर लक्ष्य को प्राप्त किया। उसी प्रकार राज्यों को भी चाहिए कि वे आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बने। राज्य भाग के चित्रों में यह बहुत स्पष्ट संदेश है। संविधान में एक चित्र भागीरथ की तपस्या और गंगाजी का धरती पर अवतरण का है, यह चित्र संकल्पशीलता और जल संरक्षण का संदेश देता है। एक चित्र भगवान शिव की नटराज छवि का है। यह चित्र मोह रहित जीवन का संदेश देता है। मौर्य काल और गुप्त काल की कला कृतियाँ, विक्रमादित्य का दरबार, नालंदा विश्वविद्यालय, उड़िया मूर्तिकला, शिवाजी महाराज, गुरु गोविंद सिंह, रानी लक्ष्मीबाई, गांधीजी की दांडी यात्रा, नोआखली पीड़ितों के बीच गांधीजी, हिमालय का सुरम्य दृश्य, रेगिस्तान तथा महासागर के दृश्य हैं इनके अतिरिक्त बादशाह अकबर के दरबार का और टीपू सुल्तान के भी चित्र हैं।
संविधान के इन चित्रों में संपूर्ण भारत का भौगोलिक और ऐतिहासिक दोनों प्रकार का स्वरूप समाया है। एक आदर्श और सशक्त समृद्ध राष्ट्र जीवन का संदेश भी है। भारतीय संविधान में जितने चित्र हैं उतने संसार के किसी संविधान में नहीं। संविधान पर इन चित्रों को कलकत्ता स्थित शांति निकेतन की कला संकाय के विद्यार्थियों ने आचार्य नंदलाल बोस के मार्गदर्शन में उकेरा था। संविधान के यह सभी चित्र भारत राष्ट्र को सनातन परंपराओं के अनुरूप राष्ट्र जीवन का संदेश देते हैं। यह ठीक है कि समय के साथ संविधान में अब तक कुल 127 संशोधन हो चुके हैं। इसमें कुछ संशोधन तो ऐसे हुए जिनसे सनातन परंपरा की बजाय अन्य पंथ और परंपराएँ प्रभावित हुई लेकिन संविधान की मूल रचना उसके प्रावधान और उसके प्रेरक चित्रों की श्रृंखला एक सशक्त समृद्ध सनातनी राष्ट्र के स्वरूप का संदेश देती है।
