नई दिल्ली। बीएमसी चुनाव की तैयारियां चरम पर हैं और सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी रणनीति को अंतिम रूप देने में जुटे हैं। इसी बीच कांग्रेस ने एक अहम निर्णय लिया है, जिसने शहर की राजनीतिक हलचल को तेज कर दिया है। राजनीतिक विश्लेषक इसे आगामी चुनाव में माहौल बदलने वाला कदम मान रहे हैं।
कांग्रेस ने घोषणा की है कि वह बीएमसी चुनाव अकेले लड़ेगी और महाविकास आघाड़ी (MVA) का हिस्सा नहीं होगी। इस फैसले के बाद MVA के अन्य दलों की प्रतिक्रिया मिली-जुली रही, जिससे गठबंधन के अंदरूनी मतभेद और राजनीतिक खींचतान उजागर हो गई है।
कोर्ट के आदेश के अनुसार, बीएमसी चुनाव जनवरी 2026 तक होने हैं। इसी कड़ी में शनिवार (15 नवंबर) को कांग्रेस की मुंबई बैठक में पार्टी प्रभारी रमेश चेन्नथिला ने ऐलान किया कि पार्टी किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं होगी और चुनाव अकेले लड़ेगी। यह कदम राजनीतिक हलचल बढ़ाने वाला माना जा रहा है।
इस पर NCP (SP) सांसद सुप्रिया सुले ने शांत प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि यह कोई नई बात नहीं है, अक्सर पार्टियां चुनाव से पहले अपने फैसले बदलती रहती हैं। सुले ने यह भी कहा कि कांग्रेस से अभी तक कोई बातचीत नहीं हुई है, लेकिन चर्चा जरूर होगी।
वहीं, MVA में उद्धव ठाकरे गुट के प्रवक्ता आनंद दुबे ने कांग्रेस के अकेले चुनाव लड़ने के फैसले पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि ऐसा करने पर कांग्रेस का हाल बिहार जैसा हो सकता है। दुबे ने बताया कि MVA में कांग्रेस से दूरी बन गई है और केवल उनका गुट ही साथ दे रहा है, अन्यथा पार्टी को गंभीर नुकसान होगा।
बीजेपी नेता और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि विपक्ष पहले साथ और अब अलग लड़कर भी देख चुका है, लेकिन जनता ने मोदी और बीजेपी गठबंधन को ही समर्थन दिया। फडणवीस ने जोर देकर कहा कि उनके लिए किसी का साथ या गैरमौजूदगी कोई फर्क नहीं डालती।
कांग्रेस प्रवक्ता अतुल लोंढे ने पलटवार करते हुए सरकार और उद्धव गुट पर हमला बोला। उन्होंने कहा कि सरकार संस्थानों का दुरुपयोग कर रही है और अहंकार नहीं दिखाना चाहिए। लोंढे ने चुनौती दी कि अगर हिम्मत है तो चुनाव बैलेट पेपर के माध्यम से कराए जाएं।
कांग्रेस ने यह भी कहा कि वह केवल उन दलों के साथ गठबंधन करेगी जो अंबेडकर, शाहू और फुले की विचारधारा पर चलें। बीजेपी नेता आशीष शेलर ने इसे चुनौती मानते हुए कहा कि अकेले चुनाव लड़ने के लिए दम चाहिए, जो कांग्रेस में नहीं है, और उसके पास पर्याप्त कार्यकर्ता भी नहीं बचे हैं।
इस फैसले के बाद बीएमसी चुनाव की राजनीतिक जंग और भी तेज हो गई है, और अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस की अकेली चुनौती और MVA में बढ़ते मतभेद का चुनाव परिणाम पर क्या असर पड़ता है।
