कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने राजनाथ सिंह के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, “सिर्फ सिंध ही क्यों? पूरा पाकिस्तान ले लीजिए।” अल्वी का यह बयान इस तथ्य पर आधारित था कि संघ और भाजपा के नेताओं का यह दावा है कि बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान कभी भारत का हिस्सा थे। अल्वी ने यह भी कहा कि अगर संघ नेतृत्व इस तरह के दावे कर रहा है, तो फिर चर्चा केवल सिंध तक क्यों सीमित रहनी चाहिए? उन्होंने इस पर तंज कसते हुए कहा कि भारतीय सेना को आगे बढ़ाना चाहिए और पाकिस्तान, अफगानिस्तान, और बांग्लादेश को भारत में मिला लेना चाहिए।
राजनाथ सिंह का बयान लालकृष्ण आडवाणी के एक पुराने वक्तव्य से जुड़ा हुआ था, जिसमें आडवाणी ने कहा था कि सीमाएं बदल भी सकती हैं और कौन जानता है कि कल सिंध भारत में वापस आ सकता है। इस बयान को लेकर राजनाथ सिंह ने भारतीय सभ्यता में सिंध क्षेत्र की महत्ता को बताया और कहा कि यह क्षेत्र भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। उनका कहना था कि सिंध में रहने वाले मुसलमान भी मानते हैं कि सिंधु नदी का पानी मक्का के आब-ए-जमजम से कम पवित्र नहीं है।
सिंध प्रांत का ऐतिहासिक महत्व है, खासकर भारतीय उपमहाद्वीप की प्राचीन सभ्यता के दृष्टिकोण से। सिंधु घाटी सभ्यता का यह प्रमुख क्षेत्र था और आज भी भारत में सिंधी समाज की बड़ी आबादी है। राजनाथ सिंह ने यह भी कहा कि सिंध में एक समय ऐसा था जब यह क्षेत्र भारतीय सभ्यता का महत्वपूर्ण हिस्सा था, लेकिन 1947 के विभाजन के बाद यह पाकिस्तान का हिस्सा बन गया। उनका बयान उसी ऐतिहासिक संदर्भ में था, जिसे आडवाणी ने पहले साझा किया था।
राजनाथ सिंह का यह बयान आने के बाद कई विपक्षी दलों के नेताओं ने इसे भड़काऊ और देश के मौजूदा समस्याओं से ध्यान भटकाने वाला बताया है। उनका कहना है कि भाजपा और संघ के नेता जानबूझकर ऐसे विवादित बयान देते हैं ताकि आम जनता का ध्यान असल मुद्दों से हटा दिया जाए। आर्थिक समस्याएं, बेरोजगारी और महंगाई जैसे अहम मुद्दों पर चर्चा की बजाय ऐसे बयान उछाले जाते हैं ताकि जनता का ध्यान इन मुद्दों से हट सके और क्षेत्रीय स्तर पर अशांति पैदा की जा सके।
कांग्रेस के राशिद अल्वी ने कहा कि यह बयान सिर्फ एक भावनात्मक मुद्दा उठाने के लिए दिया गया है, ताकि असल मुद्दों से ध्यान भटकाया जा सके। उन्होंने यह भी कहा कि यह बयान क्षेत्रीय राजनीति को भड़काने का एक प्रयास हो सकता है, जो भारत की समरसता के लिए खतरे की घंटी हो सकती है।
राजनाथ सिंह के बयान ने सिंध प्रांत और भारत-पाकिस्तान के रिश्तों को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। उनके बयान ने यह भी संकेत दिया कि भारतीय राजनीति में ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विषयों को लेकर गहरे मतभेद हो सकते हैं। जहां एक तरफ यह बयान कुछ लोगों को देश की सभ्यता की महानता का प्रतीक लगता है, वहीं दूसरी ओर इसे कुछ नेता और दल विवादास्पद और संवेदनशील मानते हैं।
भारत और पाकिस्तान के बीच हमेशा से तनावपूर्ण रिश्ते रहे हैं, और ऐसे बयान उस तनाव को और बढ़ा सकते हैं। यह कहना आसान है कि एक दिन सिंध भारत का हिस्सा बनेगा, लेकिन इस तरह के बयानों के बाद यह सवाल उठता है कि क्या इस प्रकार के विवाद से क्षेत्रीय शांति और द्विपक्षीय संबंधों को नुकसान नहीं पहुंचेगा?
यह मामला केवल एक बयान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारतीय राजनीति, समाज और कूटनीति पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि राजनाथ सिंह के इस बयान पर विपक्ष और सरकार क्या प्रतिक्रियाएं देती हैं और यह मुद्दा भविष्य में कैसे आगे बढ़ता है।
