नई दिल्ली । जून 2025 में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर कदम रखकर इतिहास रचने वाले अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने हाल ही में अपनी यादगार यात्रा का अनुभव साझा किया। बुधवार को आयोजित एक कार्यक्रम में शुक्ला ने कक्षीय प्रयोगशाला में बिताए समय, लिफ्ट-ऑफ और स्प्लैशडाउन के दौरान जी-फोर्स का अनुभव, जीरो ग्रैविटी की अनोखी दुनिया और अंतरिक्ष यात्रा के बाद पृथ्वी पर जीवन में फिर से ढलने की प्रक्रिया के बारे में बातचीत की।
शुभांशु ने बताया कि ISS पर अपने 18 दिनों के प्रवास के दौरान उन्होंने माइक्रोग्रैविटी से जुड़े कई प्रयोग किए। इनमें से एक महत्वपूर्ण प्रयोग था सूक्ष्म शैवाल (microalgae) पर अध्ययन, जिसे इकट्ठा करने के लिए उन्हें लगभग तीन घंटे लगातार अपने चारों ओर घूमना पड़ा। शुक्ला ने कहा, “मेरा उद्देश्य है कि लोग मेरी इस यात्रा को महसूस करें और जानें कि अंतरिक्ष में काम करना कितनी चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया है।”
शुभांशु ने विस्तार से बताया कि किस तरह उन्होंने सिरिंज और थैली का इस्तेमाल करके नमूनों को इकट्ठा किया। उन्होंने कहा, “पृथ्वी पर, जब किसी सिरिंज में हवा का बुलबुला होता है, तो उसे आसानी से निकाल सकते हैं। लेकिन अंतरिक्ष में ऐसा नहीं होता। वहाँ हवा के बुलबुले अलग तरह से व्यवहार करते हैं। इसलिए मुझे खुद सेंट्रीफ्यूज की तरह घूमना पड़ा।”
शुभांशु ने आगे बताया कि प्रत्येक नमूने के लिए उन्हें लगभग चार-पांच चक्कर लगाकर कुल 36 नमूने इकट्ठा करने पड़े। उन्हें ये नमूने छोटे बॉक्स में भरकर फ्रीजर में रखना था ताकि उन्हें पृथ्वी पर वापस लाया जा सके। उन्होंने कहा, “नमूने निकालने और उन्हें सुरक्षित रखने के लिए मुझे लगातार तीन घंटे घुमते रहना पड़ा, ताकि हवा के बुलबुले काम न आएँ।”
ISS पर बिताए गए अनुभव के बारे में बात करते हुए शुक्ला ने कहा कि जीरो ग्रैविटी और माइक्रोग्रैविटी की दुनिया एकदम अलग थी। उन्होंने यह भी साझा किया कि अंतरिक्ष में समय, गति और गुरुत्वाकर्षण के अभाव में चीजों को संभालना कितना चुनौतीपूर्ण होता है।
शुभांशु शुक्ला का यह मिशन एक्सिओम-4 (Axiom-4) अंतरिक्ष उड़ान का हिस्सा था। उनके अनुभव ने न केवल अंतरिक्ष विज्ञान को आम लोगों के करीब लाया, बल्कि यह भी दिखाया कि कैसे अंतरिक्ष में वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए धैर्य, सतर्कता और शारीरिक समर्पण की आवश्यकता होती है।
