जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों की बर्खास्तगी के मामलों पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि किसी भी कर्मचारी की नौकरी से बर्खास्तगी का फैसला सिर्फ अदालत को करना चाहिए, न कि किसी प्रशासनिक या राजनीतिक इकाई को। उमर ने सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा करते हुए इसे “न्यायिक प्रक्रिया से परे” बताया।
“कानून से ऊपर कोई नहीं” – उमर अब्दुल्ला
उमर अब्दुल्ला ने शुक्रवार को एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा, “किसी भी नागरिक या सरकारी कर्मचारी के खिलाफ कार्रवाई तभी होनी चाहिए जब अदालत उसके खिलाफ ठोस सबूतों के आधार पर फैसला दे। सरकार या प्रशासन को किसी की रोजी-रोटी छीनने का अधिकार नहीं है जब तक कि अदालत इसकी अनुमति न दे।”
उन्होंने आगे कहा कि जम्मू-कश्मीर में कुछ मामलों में कर्मचारियों को बिना सुनवाई और जांच के बर्खास्त किया गया है, जो लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ है।
बिना सुनवाई के बर्खास्तगी पर उठाए सवाल
हाल ही में केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन द्वारा कई सरकारी कर्मचारियों को “राष्ट्रीय सुरक्षा और अनुशासन भंग करने” के आरोपों के तहत सेवा से बर्खास्त किया गया था। इनमें से कई कर्मचारियों ने दावा किया कि उन्हें अपना पक्ष रखने का मौका तक नहीं दिया गया।
उमर अब्दुल्ला ने कहा, “अगर किसी ने गलती की है तो अदालत में उसका मामला चलाइए, लेकिन बिना सुनवाई के किसी को नौकरी से निकाल देना अन्याय है। अदालतों का काम न्याय देना है और वही अंतिम निर्णय करे, न कि कोई अफसर या राजनीतिक नेता।”
संविधान और न्याय व्यवस्था की दुहाई
नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता ने कहा कि संविधान सभी नागरिकों को समान अधिकार देता है, और इसमें यह स्पष्ट रूप से लिखा है कि किसी को भी बिना कानूनी प्रक्रिया के सजा नहीं दी जा सकती। उन्होंने कहा, “हमारे संविधान में कानून की सर्वोच्चता है, और अगर हम इस मूल सिद्धांत को नजरअंदाज करने लगें तो लोकतंत्र कमजोर हो जाएगा।”
उमर ने यह भी कहा कि सरकारी सेवाओं में काम करने वाले लोग भी आम नागरिकों की तरह अपने अधिकार रखते हैं। “उनकी गलती का फैसला करने का अधिकार सिर्फ अदालत को है, सरकार को नहीं,” उन्होंने जोड़ा।
सरकार पर निशाना और राजनीतिक प्रतिक्रिया
उमर अब्दुल्ला ने केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन पर निशाना साधते हुए कहा कि बर्खास्तगी जैसे फैसले “भय और असुरक्षा का माहौल” पैदा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार को पारदर्शी जांच प्रक्रिया अपनानी चाहिए ताकि किसी निर्दोष को सजा न मिले।
उनकी इस टिप्पणी पर अन्य विपक्षी दलों ने भी सहमति जताई और कहा कि न्यायिक प्रक्रिया से परे कोई कदम लोकतंत्र के लिए खतरा है।
