विपक्ष के आरोप और चुनाव आयोग की सफाई
SIR की शुरुआत होते ही विपक्षी दलों ने आरोप लगाया था कि चुनाव आयोग इस प्रक्रिया के नाम पर उनके समर्थकों के नाम सूची से हटाने की कोशिश कर रहा है। इस पर आयोग ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि SIR पूरी तरह पारदर्शी प्रक्रिया है। आयोग ने विपक्ष से सबूत पेश करने की चुनौती तक दे दी। अब यह पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में है, जिससे इसकी गंभीरता का अंदाज़ लगाया जा सकता है।
इसके बावजूद, चुनाव आयोग ने बिहार में इस प्रक्रिया के बाद उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और कई अन्य राज्यों में भी SIR लागू करने का निर्णय लिया। इसी के साथ राजनीतिक सरगर्मी और बढ़ गई, खासकर बंगाल में। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने SIR को “संदिग्ध” और “पक्षपातपूर्ण” बताते हुए इस पर सवाल उठाए हैं। लेकिन दूसरी ओर, बंगाल में सामने आए कुछ मामलों ने इस प्रक्रिया को लेकर चल रही बहस को नई दिशा दे दी है।
बांग्लादेशियों की घुसपैठ और फर्जी वोटर कार्ड के चौंकाने वाले तरीके
SIR के दौरान अधिकारियों को बंगाल में ऐसे कई मामले मिले हैं जहाँ अवैध बांग्लादेशी नागरिक न केवल वर्षों से भारत में रह रहे थे, बल्कि पहचान पत्र हासिल कर मतदाता सूची में भी दर्ज हो गए थे। सबसे ताज़ा मामला हावड़ा जिले के उलूबेरिया ब्लॉक-2 के श्रीरामपुर क्षेत्र में सामने आया।
यहाँ दो बांग्लादेशी नागरिकों ने वोटर कार्ड बनवाने के लिए अपने ससुर का नाम “अब्बू” यानी पिता के रूप में दर्ज करवा दिया। इस “छल” का उद्देश्य था भारतीय नागरिक की पहचान का नकली रिकॉर्ड तैयार करना, ताकि वोटर सूची में नाम शामिल किया जा सके।
35 साल से भारत में छिपकर रह रहा था मोहम्मद खलील
अधिकारियों द्वारा पकड़े गए आरोपितों में मोहम्मद खलील मुल्ला प्रमुख है। उसने स्वीकार किया कि वह मूल रूप से बांग्लादेश का निवासी है और करीब 35 साल पहले भारत आया था। भारत आने के बाद उसने कई जगहों पर रहकर पहचान छिपाई और धीरे-धीरे श्रीरामपुर इलाके में बस गया। बाद में उसने एक स्थानीय महिला रहिला बेगम से निकाह कर लिया।
खलील ने 2023 में वोटर कार्ड बनवाते समय पिता के नाम की जगह अपने ससुर का नाम दर्ज कराया। उसकी पत्नी रहिला बेगम का कहना है कि उसे इस बात की जानकारी नहीं थी कि उसके पति ने पहचान छिपाने के लिए ऐसा किया। स्थानीय लोगों के अनुसार, एक अन्य व्यक्ति—शेख रिजाजुल मंडल—ने भी बिल्कुल ऐसा ही तरीका अपनाया था और वह भी बांग्लादेश का रहने वाला है।
इलाके में तनाव, प्रशासन से कड़ी कार्रवाई की मांग
इन खुलासों के बाद श्रीरामपुर और आसपास के क्षेत्रों में तनाव फैल गया है। स्थानीय निवासियों ने प्रशासन से तुरंत कार्रवाई करने, घुसपैठिए नागरिकों की पहचान करने और फर्जी दस्तावेज रद्द करने की मांग की है। लोग चिंतित हैं कि अगर इस तरह की अवैध घुसपैठ और वोटर पहचान में हेराफेरी लंबे समय से चल रही थी, तो इससे न केवल सुरक्षा पर असर पड़ा है बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था पर भी प्रश्न उठे हैं।
बहस के केंद्र में SIR की विश्वसनीयता
यह पूरा मामला SIR की आवश्यकता और प्रभावशीलता दोनों पर नए सिरे से ध्यान आकर्षित करता है। एक ओर विपक्ष इसे राजनीतिक हथियार बताए जा रहा है, वहीं दूसरी ओर SIR में उजागर हो रहे फर्जीवाड़े और घुसपैठ के मामले बताते हैं कि मतदाता सूची की सफाई और सत्यापन वास्तव में क्यों ज़रूरी है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में SIR अभियान और कितनी गहराई तक जाता है और इससे देशभर में मतदाता सूचियों की विश्वसनीयता पर क्या प्रभाव पड़ता है।
