नई दिल्ली। बांग्लादेश की राजनीति इन दिनों उथल पुथल के दौर से गुजर रही है और इस संकट का केंद्र बनी हैं पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना जिन्होंने भारत में अस्थायी शरण ले रखी है। इसी बीच ढाका से आया एक बड़ा फैसला नई दिल्ली पर दबाव बढ़ाने वाला साबित हो सकता है। इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल ने हसीना को अदालत की अवमानना के आरोप में छह महीने की सज़ा सुनाई है। यह फैसला राजनीतिक तनाव और प्रत्यर्पण की चल रही बहस के बीच बड़ा हथियार बन गया है।
आईसीटी के फैसले की वजह क्या है
तीन सदस्यीय पीठ ने इस सज़ा का आधार एक कथित ऑडियो क्लिप को बनाया जिसमें हसीना अपनी मुकदमों की संख्या का हवाला देते हुए बेहद विवादित टिप्पणी करती सुनी गईं। कहा गया कि मेरे खिलाफ 227 मुकदमे हैं इसलिए मुझे 227 लोगों को मारने की छूट मिल गई है।सीआईडी की फोरेंसिक टीम ने ऑडियो को जांचकर आवाज़ की प्रामाणिकता की पुष्टि की जिसके बाद अदालत का मानना था कि ऐसी टिप्पणियां न्याय व्यवस्था को प्रभावित कर सकती हैं और गवाहों अभियोजन पक्ष और न्यायाधीशों पर दबाव बना सकती हैं। इसी आधार पर कोर्ट ने अवमानना की सज़ा सुनाई जो तब लागू होगी जब हसीना खुद को गिरफ्तारी के लिए पेश करेंगी या ट्रिब्यूनल में सरेंडर करेंगी।
फैसले का राजनीतिक संदर्भ
डॉ मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली बांग्लादेश की अंतरिम सरकार पहले से ही हसीना के खिलाफ कानूनी कार्रवाई तेज कर चुकी है। अदालत का यह ताजा फैसला न सिर्फ कानूनी रूप से भारी है बल्कि राजनीतिक संदेश भी देता है कि नई सरकार कठोर रुख अपनाने के मूड में है।उसी मामले में छात्र लीग के नेता शकिल अकंद बुलबुल को भी दो महीने की सज़ा दी गई है जो बताता है कि ट्रिब्यूनल इस मुद्दे पर गंभीर है।
भारत पर बढ़ रहा प्रत्यर्पण दबाव
सबसे बड़ा सवाल यह है कि अब भारत क्या करेगा। बांग्लादेश लगातार हसीना के प्रत्यर्पण की मांग कर रहा है। दोनों देशों के बीच प्रत्यर्पण संधि मौजूद है और ढाका का कहना है कि भारत संविदात्मक रूप से बाध्य है।
लेकिन यही संधि भारत को बचाव का रास्ता भी देती है। इसके अनुच्छेद में साफ लिखा है कि राजनीतिक चरित्र के आरोपों में प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है। अनुच्छेद भी कहता है कि यदि अनुरोध निष्पक्ष न हो या न्याय हित में न हो तो उसे ठुकराया जा सकता है।
कई कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि मामला राजनीतिक प्रतिशोध के रंग में डूबा दिखाई देता है इसलिए भारत इन धाराओं का हवाला देकर हसीना को न सौंपने का फैसला कर सकता है।
कूटनीतिक समीकरण और जोखिम
यह सिर्फ कानूनी मामला नहीं बल्कि बेहद संवेदनशील कूटनीतिक स्थिति है। हसीना भारत की पुरानी और भरोसेमंद सहयोगी रहीं हैं। यदि भारत उन्हें प्रत्यर्पित करता है तो राजनीतिक रूप से यह बड़ा संदेश जाएगा वहीं यदि वह इनकार करता है तो बांग्लादेश भारत संबंधों में तनाव बढ़ सकता है।
इन्हीं वजहों से नई दिल्ली को हर कदम बहुत सतर्कता से उठाना होगा। अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी इस फैसले को बारीकी से परख रहा है कि यह न्यायिक निष्पक्षता है या राजनीतिक बदले की कार्रवाई।
आगे का रास्ता
हसीना की स्थिति फिलहाल अनिश्चितता से घिरी हुई है। जब तक वे स्वयं बांग्लादेश नहीं लौटतीं अदालत की सज़ा लागू नहीं होगी और प्रत्यर्पण की लड़ाई भी आगे नहीं बढ़ेगी।
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार अगले हफ्तों में दबाव बढ़ाने की तैयारी में है जबकि भारत राजनीतिक मित्रता और कानूनी संविदा के बीच संतुलन साधने की कोशिश करेगा।
जो साफ है वह यह कि यह मामला आने वाले वक्त में दक्षिण एशियाई राजनीति का सबसे बड़ा कूटनीतिक पेंच बनने जा रहा है और भारत की हर प्रतिक्रिया बेहद निर्णायक होगी।
