नई दिल्ली । जब दुनिया भर में एआई (Artificial Intelligence) की वजह से नौकरियों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं, तब ओपनएआई के सीईओ सैम ऑल्टमैन ने एक ऐसा बयान दिया है जिसने टेक जगत में हलचल मचा दी है। ऑल्टमैन ने कहा है कि भविष्य में वे अपनी जगह किसी एआई सिस्टम को सौंपना चाहेंगे। उनके शब्दों में, “अगर ओपनएआई पहली ऐसी कंपनी नहीं बनी जिसे एआई चला रहा हो, तो मुझे शर्म आनी चाहिए।”
यह बयान न केवल तकनीकी क्षेत्र में एक साहसिक घोषणा है, बल्कि नेतृत्व के स्वरूप को लेकर भी नए सवाल खड़े करता है। ऑल्टमैन का मानना है कि आने वाले 10 सालों से पहले ऐसा एआई विकसित हो जाएगा जो इंसानों की तरह सोचने, निर्णय लेने और संगठन चलाने की क्षमता रखेगा।
“अगर एआई ने मेरी जगह ली, तो मैं खेती करूंगा”
थोड़े मज़ाकिया लहजे में ऑल्टमैन ने कहा कि अगर कभी एआई वास्तव में उनकी भूमिका संभालने लगे, तो वे खुशी-खुशी खेती-किसानी करने लौट जाएंगे। हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा कि एआई का विकास तभी सार्थक होगा जब उसमें सुरक्षा और नैतिकता के मानकों का कड़ाई से पालन किया जाए।
टेक विशेषज्ञों की राय
विशेषज्ञों के मुताबिक, ऑल्टमैन का यह बयान किसी मज़ाक से ज्यादा, एक गंभीर दृष्टि की झलक है। उनका यह दृष्टिकोण इस ओर संकेत करता है कि भविष्य में कंपनियों के प्रबंधन और संचालन में एआई की सीधी भागीदारी संभव है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि कभी कोई कंपनी वास्तव में एआई द्वारा संचालित होती है, तो यह कॉर्पोरेट इतिहास में क्रांतिकारी परिवर्तन साबित होगा। जैसे औद्योगिक क्रांति के दौर में मशीनों ने उत्पादन का चेहरा बदला था।
अल्बानिया का एआई मंत्री “डिएला”
दिलचस्प बात यह है कि ऑल्टमैन का यह बयान ऐसे समय आया है जब अल्बानिया पहले ही एक एआई मंत्री नियुक्त कर इतिहास रच चुका है। प्रधानमंत्री एदी रामा ने राजधानी तिराना में वर्चुअल मंत्री “डिएला” को सार्वजनिक खरीद-फरोख्त का कार्यभार सौंपा है। यह क्षेत्र भ्रष्टाचार और अक्षमता के लिए बदनाम रहा है, लेकिन अब एक एआई सिस्टम को पूरी जिम्मेदारी दी गई है।
डिएला कोई प्रतीकात्मक चेहरा नहीं, बल्कि ई-अल्बानिया पोर्टल पर मौजूद एक वर्चुअल एआई अवतार है, जो नीतियों, फाइलों और डाटा की समीक्षा कर निर्णय लेने की प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभा रहा है।
नई दिशा की ओर कदम
सैम ऑल्टमैन और अल्बानिया की यह दो घटनाएँ मिलकर इस बात की ओर इशारा करती हैं कि एआई अब केवल सहायक तकनीक नहीं रहा वह नेतृत्व और शासन की संरचना में प्रत्यक्ष भागीदार बन रहा है।
भविष्य शायद ज्यादा दूर नहीं जब “सीईओ” या “मंत्री” जैसे पदों पर इंसान नहीं, बल्कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता निर्णय लेती दिखाई दे।
