यह मामला शुक्रवार शाम का है, जब सैनिक कालोनी निवासी विवेक शर्मा और छोटू जाटव के बीच मामूली सड़क हादसा हुआ। दोनों एक दूसरे से टकरा गए और गिर पड़े। इसके बाद विवेक शर्मा और उनके स्वजनों ने छोटू जाटव के साथ मारपीट की। इस घटना के बाद सड़क पर जाम लग गया और भीड़ जमा हो गई। पुलिस को सूचना मिली और सादी वर्दी में तैनात पुलिसकर्मी राहुल राजावत मौके पर पहुंचे। इसके बाद विवेक पक्ष के लोगों और पुलिस के बीच कहासुनी हो गई जिसमें पुलिस ने वीडियो बना रहे दीपक परमार का मोबाइल छीन लिया।
पुलिस ने विवाद को बढ़ाकर क्रॉस एफआइआर दर्ज कर दोनों पक्षों को थाने बुलाया और रात को विवेक शर्मा के घर पहुंचकर उसे और उसके परिवार के अन्य पांच लोगों को हिरासत में ले लिया। आरोप है कि महिलाओं और बच्चों को छोड़कर विवेक प्रमोद अभिषेक दीपक और सुरेश शर्मा को थाने ले जाया गया और वहां उन्हें बुरी तरह पीटा गया। यह मारपीट इतनी बर्बर थी कि प्रमोद और दीपक की हालत गंभीर हो गई और वे ठीक से चल भी नहीं पा रहे थे।
शनिवार को आरोपियों को कोर्ट में पेश किया गया। जब न्यायाधीश ने आरोपियों की हालत देखी तो उन्होंने पुलिस की मेडिकल रिपोर्ट को खारिज कर दिया क्योंकि उसमें आरोपियों की गंभीर चोटों को ठीक से दर्शाया नहीं गया था। जज ने आदेश दिया कि एक पैनल बोर्ड से फिर से मेडिकल परीक्षण कराया जाए। प्रमोद और दीपक की हालत इतनी खराब थी कि वे कोर्ट में पेश होने तक चलने में भी असमर्थ थे। प्रमोद ने कोर्ट में बताया कि पुलिस ने उन्हें रातभर लाठियों से मारा और उनकी पसलियां टूट गई हैं। प्रमोद के शरीर पर 11 गहरी चोटें दर्ज थीं, जो इस बात का प्रमाण हैं कि पुलिस ने अत्यधिक हिंसा का इस्तेमाल किया।
कोर्ट ने आरोपियों को तुरंत जमानत पर रिहा कर दिया और उनकी चिकित्सा जांच के लिए फिर से निर्देश दिए। इस दौरान प्रमोद ने अदालत के बाहर यह भी कहा अब चला नहीं जाता मेरी पसलियां टूट गई हैं। उनकी यह टिप्पणी पुलिस की बर्बरता और थाने में किए गए अत्याचारों को उजागर करती है।यह घटना फूप थाना पुलिस की बर्बरता को सामने लाती है और यह सवाल खड़ा करती है कि क्या पुलिसकर्मियों को अपनी जिम्मेदारी और अधिकारों का सही उपयोग करना आता है।
अब देखना यह है कि इस मामले में आगे क्या कार्रवाई की जाती है और क्या पुलिस कर्मियों के खिलाफ कोई सख्त कदम उठाए जाते हैं ताकि भविष्य में ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति न हो। पुलिस की इस बर्बरता ने समाज में एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या कानून और व्यवस्था की रक्षा करने वाले ही नागरिकों के साथ इस तरह की हिंसा कर सकते हैं
