भोपाल। मध्य प्रदेश में वन्यजीव संरक्षण को और अधिक प्रभावी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। कूनो नेशनल पार्क के चीतों और पन्ना टाइगर रिजर्व के बाघों को कैनाइन डिस्टेंपर वायरस सीडीवी संक्रमण से बचाने के लिए अब प्रदेशभर में बेसहारा और आवारा श्वानों का टीकाकरण किया जाएगा। वन विभाग ने यह निर्णय उस समय लिया, जब विशेषज्ञों ने आशंका जताई कि यदि श्वानों में मौजूद यह वायरस वन क्षेत्रों में पहुँच गया तो चीतों और बाघों जैसे दुर्लभ वन्य प्राणियों के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।
कूनो और पन्ना दोनों ही प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण संरक्षित क्षेत्र हैं। कूनो में दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से लाए गए चीतों की सुरक्षा प्राथमिकता है, वहीं पन्ना टाइगर रिजर्व देशभर में अपनी सफल बाघ पुनर्स्थापना परियोजना के लिए जाना जाता है। ऐसे में किसी भी वायरल संक्रमण का फैलाव वन विभाग के लिए चिंता का विषय बन गया है।
सीडीवी क्यों है खतरनाक
कैनाइन डिस्टेंपर वायरस एक गंभीर और अत्यधिक संक्रामक वायरल संक्रमण है, जो मुख्य रूप से कुत्तों सहित फेरेट्स, रैकून और लोमड़ी जैसे मांसाहारी जीवों को प्रभावित करता है। यह संक्रमण श्वसन तंत्र, जठरांत्र तंत्र और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। संक्रमित जानवर के शरीर से निकलने वाली छींक, खांसी की बूंदें, नाक का स्राव, मल-मूत्र अथवा दूषित भोजन-पानी के माध्यम से यह वायरस तेजी से फैलता है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि संक्रमित प्राणी में तेज बुखार, उल्टी-दस्त, आंख-नाक से चिपचिपा पीला स्राव, खांसी, दौरे पड़ना, सिर का एक ओर झुक जाना और लड़खड़ाकर चलना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। यह रोग प्राणियों में मृत्यु का कारण भी बन सकता है।
हालाँकि, यह वायरस मनुष्यों को प्रभावित नहीं करता, लेकिन वन्यजीवों के लिए अत्यंत घातक माना जाता है।
पूर्व में मिले संक्रमण के संकेत
वन विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार वर्ष 2015 में पन्ना टाइगर रिजर्व में मृत पाए गए एक बाघ के नमूने इंडियन वेटरनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट IVRI, बरेली भेजे गए थे, जहाँ उसकी रिपोर्ट में सीडीवी संक्रमण की पुष्टि हुई थी। यह घटना वन प्रबंधन के लिए एक महत्वपूर्ण चेतावनी थी।
उस समय भी स्थिति को देखते हुए 1200 से अधिक श्वानों का टीकाकरण किया गया था। इसके बाद वर्ष 2024 में छतरपुर जिले में एक बाघ और एक तेंदुए में भी सीडीवी के लक्षण पाए गए। साथ ही संजय टाइगर रिजर्व में भेजे गए एक बाघ में रैबीज़ वायरस की पुष्टि होने से वन विभाग की चिंताएँ और बढ़ गईं।
कूनो और पन्ना में बढ़ी सावधानी
कूनो नेशनल पार्क के बफर ज़ोन और उससे लगे ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी संख्या में बेसहारा श्वान घूमते रहते हैं। ये श्वान भोजन की तलाश में कई बार जंगलों में भी प्रवेश कर जाते हैं, जिससे वन्य जीवों के संपर्क में आने की आशंका बढ़ जाती है।
कूनो में अभी 20 से अधिक चीते संरक्षित हैं, जिनकी सुरक्षा को लेकर सरकार पहले से ही अत्यंत सतर्क है। वहीं पन्ना में बाघों की संख्या लगातार बढ़ रही है। ऐसे में सीडीवी संक्रमण का फैलाव इन दोनों स्थानों के लिए बड़ा खतरा हो सकता है।
इसी पृष्ठभूमि में वन विभाग ने फैसला किया है कि कूनो और पन्ना के बफर क्षेत्रों तथा आसपास के गाँवों में रहने वाले और बेसहारा घूमने वाले सभी श्वानों का चरणबद्ध टीकाकरण किया जाएगा। टीकाकरण टीमों में पशु चिकित्सकों और वनकर्मियों को शामिल किया जाएगा। पिछले वर्ष भी ऐसा अभियान चलाया गया था, लेकिन इस बार इसे और व्यापक स्तर पर किया जाएगा।
वन विभाग की तैयारी और रणनीति
मुख्य वन्यप्राणी अभिरक्षक सुभरंजन सेन ने कहा, चीतों और बाघों में सीडीवी संक्रमण न फैले, इसके लिए श्वानों का टीकाकरण अनिवार्य है। विभाग इसे मिशन मोड में करेगा।
वन विभाग ने स्थानीय निकायों, ग्राम पंचायतों और पशु चिकित्सा विभाग को साथ लेकर एक संयुक्त कार्ययोजना तैयार की है।
योजना के मुख्य बिंदु
– बफर और बाहरी क्षेत्रों में घूमने वाले प्रत्येक श्वान का टीकाकरण
-ग्रामीणों को जागरूक करना कि वे अपने पालतू कुत्तों का टीकाकरण अवश्य करवाएँ
-संक्रमित या बीमार श्वानों की पहचान कर अलग से चिकित्सा व्यवस्था
-टीकाकरण के बाद श्वानों की टैगिंग ताकि पुनः पहचान हो सके
-जंगल में प्रवेश करने वाले श्वानों पर नियंत्रण
-वन्यजीव संरक्षण में यह कदम क्यों महत्वपूर्ण
सीडीवी का वायरस अत्यंत तेजी से फैलता है और यदि यह कूनो के चीतों या पन्ना के बाघों तक पहुँच गया तो उनके जीवन को गंभीर खतरा हो सकता है। चीतों और बाघों की संख्या देश में पहले ही सीमित है।
कूनो के चीतों की परियोजना भारत के लिए अत्यंत महत्वाकांक्षी है, जहाँ अफ्रीकी चीते लाकर स्थापित किए गए हैं। ऐसे में उनका स्वास्थ्य किसी भी तरह के जोखिम में डालना बेहद खतरनाक होगा।वन विशेषज्ञों का मानना है कि यदि बफर और बाहरी क्षेत्रों में श्वानों का टीकाकरण सफलतापूर्वक हो जाता है, तो यह न केवल चीतों-बाघों बल्कि अन्य दुर्लभ वन्य जीवों के लिए भी सुरक्षा कवच साबित होगा।
