भोपाल (हिन्द संतरी)सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 एक मजाक बन गया है, लोक सूचना अधिकारी जानकारी देते नहीं, प्रथम अपीलीय अधिकारी के आदेश को मानते नहीं तब आखिरी न्याय की उम्मीद द्वितीय अपीलीय अधिकारी के रूप में मुख्य राज्य सूचना आयोग भी अपने कर्तव्यों का पालन न कर कानून की रक्षा की बजाय कानून का मजाक बना ले तो अंत में आवेदक/अपीलार्थी की हार हो इस कानून की हत्या ही कहलाएगी। राज्य सुचना आयोग रोज अधिकारीयों को संरक्षण देकर सरकार के हित में कितने ही अपीलाथिर्यों को जानकारी न उपलब्ध कराकर अन्याय करता है इसकी जानकारी इसलिए नही हो पाती, क्योकि अपीलार्थी आयोग के गलत निर्णय और दबाव की खिलाफत नहीं करते और जिन्हें जानकारी देना चाहिये वे जानकारी देने से बच जाते है। इधर सूचना के अधिकार अधिनियम कार्यकर्ताओं और भ्रष्टाचार मुक्त मध्यप्रदेश अभियान संगठन के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आज माननीय राज्यपाल के नाम ज्ञापन देकर मुख्य राज्य सूचना आयुक्त ओंकार नाथ को सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 17 के तहत उन्हें पद से हटाने की कार्यवाही करने का अनुरोध राज्यपाल से करते हुए ज्ञापन दिया है।
ज्ञापन के अनुसार अगर कोई अपीलार्थी किसी विभाग से चार-पांच बिन्दुओं की जानकारी की मांग करता है तब आयोग उनपर दबाव डालता है की केवल एक बिंदु की जानकारी ले, अगर अपीलार्थी सहमत नहीं होता है तो आयोग अपनी और से आधी अधूरी जानकारी तय कर निर्णय देकर मनमानी कर रहे है। यहाँ पादुरना निवासी अपीलार्थी तेजस सुरजुसे का आरोप है कि राज्य सूचना आयुक्त श्री ओंकार नाथ द्वारा ऐसे निर्णय पारित किए जा रहे हैं, जिससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। तेजस सुरजुसे ने वस्तुस्थिति से अवगत कराया कि कई बार द्वितीय अपीलों की सुनवाई तीन वर्ष से अधिक समय बाद होती है, जिससे अपीलकर्ताओं का समय व्यर्थ होता है। ऐसे मामलों में आयुक्त को पुराने समय को ध्यान में रखते हुए अपील में सुधार कर जानकारी देने का आदेश देना चाहिए, परंतु श्री ओंकार नाथ ऐसा नहीं करते।
अपीलकर्ता के अनुसार जब किसी निर्माण कार्य में करोड़ों रुपये खर्च होने के दस्तावेज मिलते हैं, तो मौके पर जाकर उसकी जांच करवाना आवश्यक है। लेकिन श्री ओंकार नाथ ऐसा करने से मना कर देते हैं। उनका कहना होता है कि दस्तावेज में दर्ज कार्य स्थल पर अवश्य हुआ होगा। तेजस सुरजुसे का कहना है कि “जब तक मौके पर जाकर जांच नहीं होती, तब तक प्राप्त दस्तावेज हमारे लिए बेकार हैं।” उन्होंने आयोग पर आरोप लगाया कि सूचना आयुक्त द्वारा पेनाल्टी की कार्यवाही उचित तरीके से नही की जाती है और अधिकांश विभागों में 10 रुपये की आरटीआई फीस की रसीद देने की व्यवस्था नहीं है तब जहाँ आवेदनकर्ताओं के समक्ष 10 रूपये का भारतीय पोस्टल आर्डर की कमी के रहते अनेक बार 20 रूपये या अधिक मूल्य चुकाकर आवेदन करना होता है। प्रथम अपीलीय अधिकारी भी लोक सुचना अधिकारी को अपीलार्थियों के समक्ष बुलाकर विधिवत आमने-सामने सुनवाई नहीं करते, और मुख्य आयुक्त इन सब पर कोई सख्त कार्यवाही नहीं करते। इसके विपरीत, वे विभागों के बचाव में अपीलार्थियों को अनिच्छा के बावजूद जानकारी लेने के लिए कहते हैं।
मुख्य राज्य सुचना आयोग के खिलाफ ज्ञापन सौपकर उन्हें हटाने की मांग करने वाले हाफिज खान, विपुल बाबने, दिनेश लाड़से, पंकज ठाकरे, ललित कलंबे, गजानन कोचे, नीलेश वानखेड़े, रामदास बावने, तुषार विरखरे, निलेश कलश्कर, उदय टोमपे, सागर भद्रे, ज्ञानेश्वर खुरसंगे, फैजल खान, निलेश सिरसाम, तोशिब सैय्यद, मनोज उमाठे, वसंता साम्बारे सहित अनेक कार्यकर्ता उपस्थित रहे।
