नर्मदापुरम, 28 अक्तूबर 2025 वन तथा राजस्व विभाग के अधिकारियों द्वारा सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान के इको सेंसटिव जोन की सीमाओं का निर्धारण कर मानचित्र तैयार करने की प्रक्रिया के चलते सोहागपुर विधायक विजयपाल सिंह ने मंत्रालय वल्लभ भवन भोपाल में मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव से मुलाकात का इस क्षेत्र में रहने वाले ग्रामीणों के दावे और आपत्तियो को सुना जाकर निर्णय किये जाने की मांग की इस अवसर पर उनके साथ पिपरिया विधायक ठाकुरदास नागवंशी, सलकनपुर ट्रस्ट अध्यक्ष महेश उपाध्याय सहित महेश शर्मा, कमल दूध, पवन झा, संदीप जैन आदि उपस्थित थे।
विधायक विजयपाल सिंह ने मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव को लिखित में अवगत कराया कि भारत सरकार द्वारा 9 अगस्त 2017 को सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान की परिधी में इको सेंसटिव जोन का गजट नोटिफिकेशन प्रकाशित किया गया था, किंतु प्रचार-प्रसार व मुनादी आदि न होने के कारण प्रभावित पक्षों द्वारा इस पर आपत्ति पेश नहीं की जा सकी थी। इसपर नक्शे के साथ प्रभावित पक्षों एवं ग्रामों से पुनः दावे, आपत्ति बुलाये जाने की आवश्यकता है। उनका कहना है कि 09 अगस्त 2017 के गजट नोटिफिकेशन में पेज क्र. 03 कंडिका (1) में स्पष्ट रूप से क्रिटिकल टायगर हेबीटेट, (कोर जोन) की सीमाओं से नगरीय तथा आबादी क्षेत्र में इसका विस्तार केवल 100 मीटर तक (ह्यूमन हेबीटेट) व अन्य क्षेत्र में इसका विस्तार 02 कि.मी तक रखा जाना उल्लेखित है, किंतु सतपुडा राष्ट्रीय उद्यान द्वारा प्रदत्त मानचित्र में संपूर्ण बफर के क्षेत्र को जिसमें राजस्व का क्षेत्र भी संलग्न है को इको सेंसटिव जोन का हिस्सा बताया जा रहा है, जो नोटिफिकेशन में वर्णित कंडिका (1) का व शासन के निर्देशों का स्पष्ट उल्लंघन है।
विजयपाल जी ने मुख्यमंत्री का ध्यानाकर्षण कराया कि . राष्ट्रीय उद्यान द्वारा प्रकाशित विभिन्न नक्शों में कोर तथा बफर के मानचित्र राजपत्र में प्रकाशित जो कि 03 जनवरी 2011 जो बफर क्षेत्र से संबंधित राजपत्र है और 24 दिसंबर 2007 जो कोर क्षेत्र से संबंधित राजपत्र में वर्णित सीमाओं से मिलान करने पर भिन्न प्रतीत हो रहे हैं। उक्त परिस्थिति में इको सेंसटिव जोन की सीमाओं को निर्धारित करने से पूर्व कोर क्षेत्र के नोटिफिकेशन एवं उपलब्ध मानचित्र का अवलोकन कर मिलान किया जाना आवश्यक है। वही 12 अगस्त 2013 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश के परिपालन में 22 दिसंबर 2017 में राजपत्र के माध्यम से 11 ग्रामों तथा एनक्लोजर्स ग्रामों को पचमढ़ी अभ्यारण्य बोरी अभ्यारण्य की सीमाओं से प्रतिधारित (पृथक) किया गया था जो उक्त क्षेत्र में वन्या प्राणी अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं होने का भी स्पष्ट उल्लेख है उक्त आदेश एवं राजपत्र के अस्तित्व में होने के कारण 24 दिसंबर 2007 को प्रकाशित कोर क्षेत्र का नोटिफिकेशन तथा 03 जनवरी 2011 को बफर क्षेत्र का नोटिफिकेशन के आधार पर इको सेंसटिव जोन की सीमाएं निर्धारित किया जाना न्यायसंगत नहीं है।
विधायक श्रीपाल ने बताया कि पचमढ़ी छावनी क्षेत्र जो भारत सरकार के स्वामित्व एवं नियंत्रण की भूमि है, इसके अतिरिक्त पचमढ़ी नजूल क्षेत्र जोकि राज्य शासन द्वारा अधिसूचित क्षेत्र है, जिसके अंतर्गत विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण दसकों से कार्यरत है। 24 दिसंबर 2007 में कोर क्षेत्र को घोषित करने हेतु प्रकाशित अधिसूचना में उक्त पूरे क्षेत्र को पृथक रखा गया है, इसके अतिरिक्त माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नजूल क्षेत्र एवं केन्ट क्षेत्र के लिए विभिन्न आदेश जारी किये है, किन्तु इन सभी तथ्यों को विना विचार में लिए इको संसटिव जोन के प्रस्तावित नक्शे में संपूर्ण शहरी क्षेत्र को ग्रामीण क्षेत्र मानकर इको सेंसटिव जोन के अंतर्गत रखा गया है जो विधि विरूद्ध है।
अपनी विधानसभा के निवासियों का पक्ष रखते विधायक ने जानकारी दी कि कोर क्षेत्र की सीमाओं से लगकर पचमढी नगर मढ़ई क्षेत्र के आसपास तथा गटकुली क्षेत्र के आसपास उक्त नोटिफिकेशन के पूर्व से ही विभिन्न पर्यटन गतिविधि चल रही है। प्रस्तावित नक्शे में उक्त सभी गतिविधियों को दर्शित किया जाना आवश्यक है। साथ ही इको सेंसटिव जोन के क्षेत्र निर्धारण एवं मानचित्र तैयार करने की प्रक्रिया में शहरी तथा ग्रामीण आबादी क्षेत्र में इसका विस्तार केवल 100 मीटर तक निर्धारित किया जाना सुनिश्चित किया जाए और क्षेत्र निर्धारण एवं नक्शे को संज्ञान में लिए बिना प्रकाशित न किए जाए।
