नई दिल्ली । दिवाली के त्योहार के बाद मनाया जाने वाला भाई दूज भाई-बहन के रिश्ते को और मजबूत करने वाला एक विशेष पर्व है। इस दिन बहनें अपने भाई की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और खुशहाली की कामना करती हैं, जबकि भाई उन्हें उपहार और आशीर्वाद देते हैं। यह पर्व केवल पारिवारिक प्रेम का प्रतीक ही नहीं, बल्कि धार्मिक और पौराणिक कथाओं से भी जुड़ा हुआ है।
भाई दूज का महत्व
भाई दूज भाई-बहन के स्नेह, विश्वास और सुरक्षा के भाव का प्रतीक है। इस दिन बहन अपने भाई के माथे पर तिलक लगाती है और उसके दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य की प्रार्थना करती है। भाई भी अपनी ओर से बहन को आशीर्वाद और उपहार देते हैं। यह पर्व भाई-बहन के बीच के मजबूत रिश्ते और पारिवारिक एकता को दर्शाता है।
धार्मिक महत्व
भाई दूज के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक दैत्य का संहार कर द्वारका लौटते समय अपनी बहन सुभद्रा से भेंट की थी। सुभद्रा ने उनके स्वागत में दीप जलाए, मिठाइयां और फूल अर्पित किए, और उनके माथे पर तिलक लगाकर उनके दीर्घायु होने की कामना की। तभी से यह दिन भाई और बहन के स्नेह और सुरक्षा का प्रतीक बन गया।
पौराणिक कहानी
पौराणिक कथा के अनुसार, इसी दिन यमराज अपनी बहन यमुना के घर मिलने आए थे। यम और यमुना सूर्यदेव के पुत्र-पुत्री थे। यमुना कई बार अपने भाई को आमंत्रित करती रहीं, लेकिन यमराज व्यस्त होने के कारण नहीं आ पाए। अंततः एक दिन वे बहन के घर पहुंचे।
यमुना ने स्नेहपूर्वक उनका स्वागत किया, भोजन कराया, तिलक लगाया और उनके सुख-समृद्धि की प्रार्थना की। प्रसन्न होकर यमराज ने यमुना से वर मांगा। यमुना ने इच्छा जताई कि हर वर्ष इसी दिन वे उनसे मिलने आएं, और जो बहन इस दिन अपने भाई का तिलक करेगी, उसे मृत्यु या यमराज का भय नहीं होगा। यमराज ने इसे स्वीकार कर आशीर्वाद दिया।
तब से यह पर्व ‘भाई दूज’ या ‘यम द्वितीया’ के रूप में मनाया जाने लगा।
भाई दूज न केवल पारिवारिक प्रेम और सम्मान का उत्सव है, बल्कि यह जीवन में भाई-बहन के बीच सुरक्षा, स्नेह और आशीर्वाद का भी प्रतीक बन गया है। हर वर्ष यह पर्व भाई-बहन के रिश्तों को मजबूत करने और परिवार में खुशहाली लाने का अवसर प्रदान करता है।
