कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को हर साल पूरे भक्ति भाव से गोपाष्टमी पर्व मनाया जाता है। इस दिन को गौमाता और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा के लिए अत्यंत शुभ माना गया है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने पहली बार गायों की सेवा और चरवाहे का कार्य संभाला था, इसलिए इस पर्व का विशेष महत्व है।
गोपाष्टमी का महत्व और पूजा परंपरा
गोपाष्टमी का उल्लेख पद्म पुराण और भागवत पुराण जैसे ग्रंथों में मिलता है। इस दिन गायों और बछड़ों की पूजा की जाती है, क्योंकि गौमाता को श्रीकृष्ण का प्रिय माना गया है। मुख्य रूप से मथुरा, वृंदावन और ब्रज क्षेत्र में यह पर्व बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। लोग इस दिन गोशालाओं में दान करते हैं और गायों की सेवा को सबसे बड़ा पुण्य मानते हैं।
गोपाष्टमी के दिन गायों को स्नान कराकर उन्हें फूलों की माला, हल्दी-कुमकुम और सुंदर वस्त्रों से सजाया जाता है। उन्हें गुड़, हरा चारा, गेहूं और फल खिलाकर कृतज्ञता व्यक्त की जाती है। ऐसा करने से गौमाता की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
पूजा विधि और शुभ संयोग
इस वर्ष गोपाष्टमी पर आडल योग का विशेष संयोग बन रहा है। द्रिक पंचांग के अनुसार, बुधवार को सूर्य तुला राशि में और चंद्रमा मकर राशि में रहेंगे। इस दिन अभिजीत मुहूर्त नहीं रहेगा, जबकि राहुकाल दोपहर 12:05 बजे से 1:28 बजे तक रहेगा।
पूजा की शुरुआत सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने से की जाती है। फिर पूजा स्थल को गोबर, दीपक, फूलों और रंगोली से सजाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण और गौमाता की प्रतिमा स्थापित कर उन्हें जल स्नान कराया जाता है। इसके बाद उनके सींगों पर हल्दी-कुमकुम लगाया जाता है और फूलों की माला पहनाई जाती है।
भोग में गुड़, चारा और फल अर्पित करने के बाद आरती और परिक्रमा की जाती है। भक्त इस अवसर पर “गोमाता की जय” और “गोपाल गोविंद जय जय” जैसे मंत्रों का जाप करते हैं।
भक्ति और सेवा का संदेश
गोपाष्टमी सिर्फ एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि गौसेवा और करुणा का प्रतीक है। इस दिन गोशाला में दान करना, गायों को भोजन देना और उनकी सेवा करना सबसे बड़ा पुण्य माना गया है। श्रीकृष्ण की कृपा पाने के लिए इस दिन श्रद्धा और सेवा भाव से पूजा करना हर भक्त के लिए अत्यंत फलदायी होता है।
