नई दिल्ली। 2025 सनातन धर्म में पौष मास को अत्यंत पवित्र और शुभ माना गया है। इस महीने में कई धार्मिक व्रत और उत्सव मनाए जाते हैं जिनमें पौष पुत्रदा एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है। यह तिथि भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित मानी जाती है और संतान प्राप्ति व वंश वृद्धि की कामना करने वाले दंपत्तियों के लिए अत्यंत कल्याणकारी मानी गई है। इस दिन किए गए उपाय और पूजा पारिवारिक सुख शांति और समृद्धि का मार्ग खोलते हैं।
पौष पुत्रदा एकादशी आखिर है क्या यह सवाल कई लोगों के मन में आता है। शास्त्रों के अनुसार पुत्रदा एकादशी हर वर्ष दो बार आती है। पहली बार सावन मास में और दूसरी बार पौष मास के शुक्ल पक्ष में। दोनों ही तिथियों को संतान की इच्छा रखने वाले दंपत्तियों के लिए अत्यंत शुभ बताया गया है। इस व्रत को रखने से विवाहित दंपत्तियों को योग्य स्वस्थ और दीर्घायु संतान का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसके साथ ही परिवार में आ रही बाधाएं दूर होती हैं और घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
इस दिन भक्तजन उपवास रखते हुए भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष पूजा करते हैं। मान्यता है कि एकादशी भगवान विष्णु की प्रिय तिथि है और इस दिन व्रत रखने से पापों का नाश होता है तथा पुण्य में वृद्धि होती है। श्रद्धालु पूरे दिन संयम और सात्त्विकता का पालन करते हैं और भगवान के समीप रहने का प्रयास करते हैं।
पंचांग के अनुसार पौष मास की यह पवित्र एकादशी 30 दिसंबर 2025 को सुबह सात बजकर पचास मिनट से आरंभ होगी और 31 दिसंबर 2025 को सुबह पांच बजे समाप्त होगी। परंपरा यह कहती है कि सामान्य गृहस्थ 30 दिसंबर को व्रत रखेंगे जबकि वैष्णव संप्रदाय के अनुयायी 31 दिसंबर को एकादशी का पालन करेंगे। व्रत का पारण भी उतना ही महत्वपूर्ण माना जाता है। 31 दिसंबर को दोपहर एक बजकर उनत्तीस मिनट से लेकर तीन बजकर तैंतीस मिनट तक पारण का शुभ मुहूर्त रहेगा। इसी अवधि में भगवान विष्णु को तुलसी तिल पंचामृत और फल अर्पित कर व्रत का समापन किया जाएगा।
अब बात करते हैं पौष पुत्रदा एकादशी की पूजा विधि की। व्रतधारी को सुबह स्नान कर साफ मन से संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद भगवान विष्णु का पूजन पीले चंदन रोली अक्षत पीले पुष्प ऋतुफल और मिष्ठान से करना उत्तम माना गया है। भगवान की आरती धूप दीप से की जाती है और दीपदान अवश्य किया जाता है क्योंकि इसे अत्यंत फलदायी बताया गया है। संतान की इच्छा रखने वाले दंपत्तियों के लिए सलाह दी जाती है कि वे पीले वस्त्र धारण कर भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप की पूजा करें। इसके बाद संतान गोपाल मंत्र का जाप करने से अत्यंत शुभ फल मिलता है।
इस दिन जाप का विशेष महत्व है। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करने से मन को शांति मिलती है और आध्यात्मिक पुण्य की प्राप्ति होती है। कई भक्त विष्णु सहस्रनाम का पाठ भी करते हैं जिससे एकाग्रता बढ़ती है और आंतरिक शुद्धि होती है। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करने से व्रत पूर्ण माना जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पौष पुत्रदा एकादशी व्रत न केवल संतान प्राप्ति में सहायक होता है बल्कि पारिवारिक जीवन में सौहार्द और सुख का मार्ग भी प्रशस्त करता है। कई दंपत्तियों के लिए यह व्रत जीवन में नई आशा और सकारात्मकता लेकर आता है।
