आत्माराम यादव पीव वरिष्ठ पत्रकार
चाहे हाथी हो, ऊँट हो , घोडा हो, बैल हो या गधा या कीट पतंग हो मक्खी मच्छर या चींटिया परमात्मा ने जगत में जितने भी जीव जंतु प्राणी और वनस्पति की रचना की है इन सबके पास अपना- अपना पेट है और इन सभी का पेट सिर्फ वही ग्रहण करता है जो उसके लिए प्रकृति ने तय किया है। दुनिया में अकेला आदमी है जो पेट के लिए अनेक प्रकार की गुलटैया खाता है, सैकड़ों झूठ बोलता है,अनुचित काम करता है उसके पेट में शाकाहारी भोजन के कारण उसे उसे ब्रम्ह की उपाधि मिली है पर वाह रे आदमी का पेट, पेट नही हुआ कबिस्तान बन गया है जिसमें सैकड़ों मरे हुए जीवों की लाशों को मसाले में तलकर-भुनकर वह दफनाये जा रहा है। आदमी के वेश में नेता- मंत्री और अधिकारी –ठेकेदार वो विचित्र प्रकार की जाति है जिसके पेट की महिमा अपरंपार है। न कहिए तौ भी यह तो मानना ही पड़ेगा कि इन सभी का पेट बहुत बड़ा है जिसमं अब सड़के-पुलों के आलावा अब बाँध के बाँध समाये हुए है, शेष कहना इनके पेट का अपमान करना होगा। अब इनके पेट को पेट नहीं उदर कहना ही ठीक होगा उदर इसलिए क्योकि अनेकानेक ग्रह्मांड ब्रह्मदेव के उदर में स्थान पाते हैं और इस युग में सृजनकर्ता ब्रम्हदेव के बाद शासन- प्रशासन को चलर रहे अधिकारी और शासन कर रहे विधायक –सांसद, मंत्री आदि तंत्र के सभी अंग है जिनका पेट अपने आप में ब्रम्हांड जिनका वर्णन भी बड़ी बात है।
जगत में जितने भी मान्य- सर्वमान्य व्यक्ति है धर्म की दृष्टि से देखें तो इन सब पर उनकी माता का सर्वोपरि अधिकार है, क्योंकि माताओं ने इन्हें -हमें नौ मास अपने पेट में रक्खा है। माताएं जब तक मनोवृत्ति में रसिकता को स्वीकारती नहीं मातृत्व का आदर नहीं पा पाती है इसलिए माताओं का पेट भगवान से लेकर कंस रावण जैसे असुरों को भी उपलब्ध है। अतएव पेट महत्वपूर्ण हो गया है जो प्रेम प्रतिष्ठा के पात्रों की ख्याति भी माँ के उदर से संबंध रखती है तो जनसामान्य का तो कहना ही क्या है। सब पेट से ही उत्पन्न होते हैं और यदि आवागमन का सिद्धांत ठीक हो तो अंत समय पेट ही में चले जाते हैं। माताओं की तरह धरती का भी पेट है और धरती का पेट सारे जगत की वैभवशाली सम्पदा से मालामाल किये हुए है। मांसाहारी पशु, पक्षी, कीट, पतंग के पेट भरने का काम भी यही धरती माता करती है जो इंसान के लिए रिकार्ड अनाज पैदा कर दोनों हाथ लुटाती है। प्रकृति वनजीवों के लिए पर्याप्त भोजन व्यवस्था कर उनके पेट भरती आ रही है वही इन्सान सम्पूर्ण धरती प्रकृति के सामंजस्य का लाभ लेकर पहाड़ों, जंगलों, नदियों, खेत खलियान सहित समुद्रों और गगन पर अपनी जय पताका फहराए हुए है अन्तरिक्ष भी उसकी जद में है जहाँ की सैर सपाटा –शोध के विषय हो गए है।
इस संसार को देखिये और संसार के लोगों को देखिये ये सभी पेट के लिए बालक, वृद्ध, मूर्ख बिद्वान, उच्च नीच, धनी दरिद्री और प्यारे नेतागण और अधिकारीगण व सभी छोटे बड़े कर्मचारी और पार्टियों के कार्यकर्तागण सभी दिन रात भांति-भांति के कर्तव्य, विशेषतः पेट की पूर्ति के कर अर्थोपार्जन कर रहे है। हम उनको धन्य कहेंगे जो अपने की चिंता न करके दूसरों के गलन में सलंग्न नही रहते हैं। पर ऐसे लोगों की संख्या हमेशा ही बहुत न्यूनतम होती है। इससे ऐसों को अदृश्य देवताओं की कोटि में रहने दीजिए और उन्हें भी नर्मदापुरम की रईसों में गिन लीजिए जो अपना पापी पेट पालने के लिए कभी भी कुछ नहीं करते . अजगर करें न चाकरी जैसा इनका जन्मजात स्वभाव है जिसपर इनके कहने से दूसरें सभी कुछ भी करने को तैयार रहते है, पापी पेट का सवाल जो ठहरा। “जनाब ! हिम्मत है तो पेट का सामना कीजिये । पेट जात-पांत नहीं बखान करता, खुबसूरत हो या बदसूरतम छोटे हो या बड़े, काले हो या कमीने हो पेट सभी का होता है और भूख सभी के सामने दिलेरी से खडी रहती है। भूख हमेशा पेट की नाक में दम करती है, जिनके भंडार भरे होते है सब बेखबर होते है, उन्हें पता होता है पेट के लिए स्वाद और जायका उनकी रसोई से सजधज कर थाली में विराजमान है, नाइंसाफ़ी तो उनके साथ होती है जो धन-साधन, रोजी रुजगार से वंचित रसोई के रीते बर्तनों के नृत्य के रहते भूखा रहने को विवश है। पेट का क्या कसूर है, भूख के डेरा डालते ही पेट भोजन का अल्टीमेटम दे देता है, की होशियार हो जाऊं भूख ने हमला किया है जैसे ही आप पेट भर लेंगे भूंख दबे पाँव लौट जायेगी। जीतेगा कौन पेट या भूख ? निर्णय आप कीजियेगा मुझे तो जोरों की भूख लगी है, मैं चला पेट भरने , दुनिया में सभी पेट भरने जो निकले है ?
दुनिया अब सिमिट कर बहुत छोटी हो गई है और पेट भरने के लिए कहिये या पेट को धोखा देने के लिए छोटा से छोटा आदमी या बड़ा आदमी सब अच्छा- बुरा काम समझने लगे है लेकिन जब योग्य पढ़े लिखे डिग्रीधारी बेरोजगार हो तो वे ज्यादा दी विचारशील नहीं रह सकते और पेट की आचं इतनी बड़ी और कठिन होती है की वे सहन नहीं कर सकते तब वे अनुचित-उचित का विचार किये बिना अनुचित- गैरकानूनी कामों को भी अपनी रोजी रोटी बना लेता है, अगर इससे उसका लोक परलोक बिगड़ता हो अधर्म होता हो तो वे बेबाकी से इसका दोष सरकार के माथे पर जड़ देते है। अब घर की बिगडती परिस्थितियों को ये पीढ़ी सहन करने को तैयार नहीं इसलिए वे खुद से विद्रोह कर अनुचित का रास्ता पकड़ लेते है। जिसने भूख देखी है, वह जानता है की भूख असल में नर्क है और इस नर्क का द्वार भी इसी पेट से होकर जाता है अगर उसके हाथ पैर सलामत होने के बाद वह यह नरक यातना झेलने को विवश हो तो यह विवशता को मिटा कर अनैतिक रूप से तन बेचने तक को खड़ा हो जाएगा, तन बेचने का ही परिणाम है की देश में एक तबका पेट के खातिर चौबीस घंटे नारकीय जीवन जीते वैश्यावृत्ति पर उतर आया है तो दूसरे दलाल है जो घर परिवार की बहन बेटियों को गुमराह कर उन्हें इन चकलाघरों की भट्टी में झौक रहे है ।
आज देश का पेट खाली है, प्रदेश का पेट खाली है। देश और प्रदेश का पेट राज्य-केंद्र सरकारों ने अपनी सरकार कैसे पांच साल तक चले, बस इसी उधेड़बुन में वे यहाँ का सारा संसाधन लुटा कर देश-प्रदेश को भूखा रखे है। देश और प्रदेशों का पेट कर्ज से भरने पर मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री आमादा है, फिर कौन चिंता करेगा की आज देश में करोडो लोग है जिनका पेट खाली है भूखे है, करोडो लोग आधे पेट है और करोडो पेट ओव्हरफ्लो है। जैसे देश की प्रदेश की सरकारे पटरी पर न होते हुए दौड़ रही है वैसे है पेट के मारे ये भूखे लोग भी अपने जीवन को आश्वासन की वैसाखी टेकते चलने को विवश है। पेट के मारे ये सभी का जीवन का चका जैसे- तैसे लुढ़कता पुढ़कता चला जा रहा है और लोग यातनाये झेल रहे है। लोग अब सरकार के भरोसे नहीं ईश्वर के भरोसे हो गए है श्रावण में लाखों कावड़ियों की भीड़ , गणेशचतुर्थी बेकाबू श्रद्धा और नवरात्री पर लाखों का गरबा करना ये सब भूख से लड़ रहे कुछ हजारों को रोजगार दे जाते है। इन तीज त्योहारों के जाते ही बाकी दिनों में भगवान ही कोई रास्ता, कोई रीति भेज देता है जिससे पेट यातनाओं से बच जाता है और जो बच नहीं पाते उन्हें जीते जी नर्क यातना भोगनी पड़ती है। जिनका पेट भरा है वे खाली पेट भूखों की और मसालेदार सांस की गैस और खट्टी डकार लेकर चिढ़ाते है। कुछ बेशरम कमीने टाइप के सक्षम पेटू भी होते है जिनका पेट किसी स्टेशन के प्लेटफार्म से कम नही होता वे अपने भरे पेटों से ‘मोरपेट हाहू, मैं ना देहों काहू’ की कांव-कांव करते है। किसी का पेट भूख की पीड़ा सहन न कर पाने से दुखी है तो किसी के पेट में अत्यधिक खाने से पीड़ा उठने पर उसे डाक्टरों की दवा से पीड़ा दूर करता है। जो लोग करोड़ों रूपये जोड़कर भी कंजूस है उनका पेट दर्द पर पेट के लिए न कुछ खाने से ही वे पेट को आई मीन खुद को बचा सके है।
देश के प्रत्येक व्यक्ति जिस दिन आत्मीयता से एक दुसरे को सगे भाई मानकर यह समझ ले की पेट तो आखिर पेट है वह किसी का भी हो, हर स्थिति में पेट भरना चाहिए। पेट मखमल सा चिकना, मक्खन सा मुलायम या कद्दू सा कठोर हो सकता है। पेट आकर प्रकार में फिट, डीलडौल वाला हांड़ी या मटके सा गोलमटोल हो, या जैसा व्यक्ति है वैसा ही उसका पेट हो , हर पेट के लिए चार रोटिया दाल भात आदि रोज दोनों समय मिलना चाहिए। भोजन बाद प्रत्येक का कर्मशील रहकर अपनी विधा में अपनी प्रतिभा साबित करना चाहिए, अगर साबित की आवश्यकता न भी समझे तो स्वावलंबी अवश्य होना चाहिए। जिन्हें परमात्मा ने सामर्थवान बनाया है और देवयोग से वे अपने पेट को अर्पित करने वाले निवाले को पचाने की क्षमता खो चुके है वे अगर इसी निबाले को दूसरों के पेट भरने देने लगे तो भी वे कल्याण को उपलब्ध होंगे। देश के युवाओं को प्रण करना चाहिए की भले अपनी ताकत के दम पर पेट में पत्थर बांधकर श्रम करना पड़े पीछे नहीं हटेंगे पर पेट के लिए किसी के आगे हाथ नही पसारेंगे और मुफ्त की कोई भी वस्तु या पैसा जिसे भले ही सरकार अपनी वोट की खातिर देना चाहे, लेने से इंकार कर देंगे और अपने ही श्रम से खुद और परिवार की पेटाग्नि बुझाने का दायित्व पूरा करेंगे। याद रखना होगा कि भगवान श्रीकृष्णचन्द्र ने अपना नाम दामोदर रखवा कर यह सन्देश दिया है कि पेट ही वह रस्सी है जिसमें बंधे बिना कोई बच नहीं सकता इसलिए पेट से तब तक बंधिये जब भूख अलविदा न हो जाए, लेकिन ऐसा भी पेट से न बंधिये की पेट तम्बू बन जाए और आप फिर पेट की ही सेवा में अपना जीवन खपाने के लिए लाचार न हो जाए।
