नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई पर जूता फेंकने का मामला देशभर में चर्चा का विषय बना हुआ है। इस मामले में हाल ही में अहम जानकारी सामने आई है, जिसने घटना और इसके कानूनी पहलुओं पर नई रोशनी डाली है।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि जूता फेंकने वाले वकील राकेश किशोर के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई नहीं की जाएगी। अदालत ने बताया कि प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई ने स्वयं भी इस मामले में कोई कार्रवाई करने से इंकार किया है। इस कारण अब कोर्ट इस दिशा में कोई कदम उठाने की इच्छुक नहीं है।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि अदालत में नारे लगाना और जूते फेंकना स्पष्ट रूप से अवमानना का मामला है, लेकिन कानून के तहत इस पर कार्रवाई करना पूरी तरह संबंधित न्यायाधीश के विवेक पर निर्भर करता है। पीठ ने यह भी कहा कि अवमानना नोटिस जारी करने से वकील को अनुचित महत्व मिलेगा और घटना का असर बढ़ सकता है। इसलिए, अदालत ने इस मामले को समय के साथ स्वाभाविक रूप से शांत होने देना उचित ठहराया।
यह सुनवाई सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा दायर याचिका पर हुई थी, जिसमें 71 वर्षीय अधिवक्ता राकेश किशोर के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी। किशोर ने 6 अक्टूबर को अदालत की कार्यवाही के दौरान मुख्य न्यायाधीश की ओर जूता फेंका था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए दिशा-निर्देश बनाने पर विचार किया जाएगा। अदालत ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को विभिन्न अदालतों में जूता फेंकने जैसी घटनाओं का विवरण एकत्र करने का आदेश भी दिया है।
16 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि अभिव्यक्ति के अधिकार का प्रयोग दूसरों की गरिमा और निष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं किया जा सकता। अदालत ने सोशल मीडिया पर बेलगाम गतिविधियों के खतरों की ओर भी आगाह करते हुए बताया कि मुख्य न्यायाधीश पर जूता फेंकने जैसी घटनाएं केवल ध्यान आकर्षित करने या लाभ कमाने की चाल होती हैं।
6 अक्टूबर की घटना के दौरान किशोर ने सुरक्षा व्यवस्था का उल्लंघन करते हुए न्यायालय कक्ष में जूता फेंका। इसके तुरंत बाद बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने उनका लाइसेंस निलंबित कर दिया। हालांकि मुख्य न्यायाधीश ने शांतिपूर्ण रवैया अपनाते हुए वकील को केवल चेतावनी देकर छोड़ने का निर्देश दिया। इस घटना की समाज के विभिन्न वर्गों ने तीव्र निंदा की, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मामले पर मुख्य न्यायाधीश से चर्चा की।
इस मामले से यह स्पष्ट हुआ कि सुप्रीम कोर्ट न्यायिक विवेक और शांति बनाए रखने को प्राथमिकता दे रहा है, जबकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए दिशा-निर्देशों पर विचार किया जाएगा।
