नई दिल्ली । कर्नाटक के राज्य पिछड़ा आयोग ने बहुचर्चित जाति सर्वेक्षण को लेकर कुछ आंकड़े जारी किए हैं। आयोग ने बताया कि कर्नाटक राज्य की अनुमानित जनसंख्या करीब 6.86 करोड़ है, जबकि 31 अक्तूबर तक इस सामाजिक और शैक्षिक सर्वेक्षण में राज्य के करीब 6.13 करोड़ लोग शामिल हुए हैं। वहीं, इस सर्वेक्षण में हिस्सा लेने से करीब 4.22 लाख परिवारों ने इनकार कर दिया है, दूसरी तरफ करीब 34.49 लाख घर खाली मिले हैं।
कर्नाटक की कांग्रेस सरकार के निर्देश पर 22 सितंबर से शुरू हुए इस सर्वेक्षण को 7 अक्तूबर को समाप्त होना था। हालांकि, तय समय सीमा के भीतर काम पूरा न हो पाने की स्थिति में सरकार ने इसे 10 दिन के लिए और बढ़ा दिया था। बाद में 18 अक्तूबर को इसे 31 अक्तूबर तक के लिए कर दिया गया था।
फिलहाल आयोग अभी भी अपने काम को पूरा नहीं कर पाया है। इसलिए उसने अपनी बेवसाइट के माध्यम से स्व-भागीदारी के जरिए इस प्रयास को 10 नवंबर तक बढ़ाने का निर्णय लिया है। विभाग ने कहा कि हम एक बार फिर से लोगों को इस सर्वेक्षण में शामिल होने का मौका दे रहे हैं, जिन्होंने पहले इसमें शामिल होने से इनकार कर दिया था। या फिर सर्वेक्षण के समय अपने घरों में उपलब्ध नहीं थे, वह अब ऑनलाइन प्लेटफार्म का उपयोग करके अपनी जानकारी दर्ज कर सकते हैं। विभाग ने अपने बयान में लोगों से अनुरोध करते हुए कहा कि इन आंकड़ों का उपयोग सरकार अपनी नीतियों और योजनाओं को बनाने के लिए करेगी। इसलिए सभी नागरिकों को इसमें भाग लेना चाहिए।
गौरलतब है कि कर्नाटक सरकार की तरफ से कराए जा रहे इस जाति सर्वेक्षण पर शुरुआत से ही विवाद हो रहा है। हाल ही में इन्फोसिस के संस्थापक नारायम मूर्ति की पत्नी सुधा मूर्ति ने भी परिवार समेत इस सर्वेक्षण में शामिल होने से इनकार कर दिया था, जिसे लेकर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने भी अपना बयान जारी किया था। राज्य सरकार इस सर्वेक्षण को अपनी कार्य कुशलता बढ़ाने का माध्यम मानती है, जबकि विपक्ष इसे कांग्रेस सरकार की चुनावी रणनीति का हिस्सा बता रहा है।
