नई दिल्ली। शनिदेव को प्रसन्न करने और जीवन से दुःख तथा आर्थिक तंगी को दूर करने के लिए शनिवार का व्रत अत्यंत शुभ माना जाता है। विशेष रूप से उन लोगों के लिए जिन्हें शनि की पीड़ा या साढ़ेसाती का प्रभाव महसूस होता है। शनिवार का व्रत जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और कल्याण लाने में मदद करता है। इसे शुरू करने का सर्वोत्तम समय निर्दोष शनिवार होता है लेकिन यदि कोई व्यक्ति पहले व्रत करना चाहे तो शुक्ल पक्ष के उस प्रथम शनिवार से आरंभ करना चाहिए जब वह शनिवार का वार हो।
व्रत प्रारंभ करने से पहले पंचांग का अवलोकन करना या किसी विद्वान ज्योतिषाचार्य से परामर्श लेना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसमें जन्म राशि और गोचरीय चंद्रमा की स्थिति को देखा जाना चाहिए। ध्यान रहे कि चंद्रमा चौथे आठवें या बारहवें घर में न हो। व्रत की सफलता के लिए इसे निर्दोष वार और शुभ मुहूर्त में ही प्रारंभ करना चाहिए। यदि कोई शनिवार का व्रत शनि प्रदोष के समय आरंभ करे तो यह भी लाभकारी माना जाता है। सही समय और विधि से किया गया शनिवार व्रत शनिदेव की कृपा प्राप्त करने और जीवन में सुख समृद्धि लाने का साधन बनता है।
शनिवार व्रत आरंभ करने के लिए प्रातःकाल स्नानादि करना आवश्यक है। व्रती को अपने इष्टदेव गुरु और माता पिता का आशीर्वाद लेना चाहिए। इसके बाद व्रत का संकल्प लें और विघ्न विनाशक श्री गणेश जी का स्मरण तथा पूजन करें। नवग्रहों का नमस्कार करें और पीपल या शमी के वृक्ष के नीचे लोहे या मिट्टी का कलश रखें। इसमें सरसों का तेल भरें और कलश पर शनिदेव की लोहे की मूर्ति स्थापित करें। मूर्ति को काले वस्त्र पहनाएं और कलश को काले कम्बल से ढक दें।
इसके बाद मूर्ति का स्नान करें चंदन रोली अक्षत पुष्प धूप दीप और नैवेद्य से पूजन करें। इसी प्रकार पीपल या शमी के वृक्ष का भी पूजन करें। किसी पात्र में लौंग काली इलायची लोहे की कील काला तिल कच्चा दूध और गंगाजल डालकर पश्चिम की ओर मुंह करके वृक्ष की जड़ में अर्पित करें। फिर वृक्ष के तने पर तीन तार का सूत आठ बार लपेटते हुए उसकी परिक्रमा करें। अंत में शनि मंत्र का रुद्राक्ष माला से जप करके व्रत पूर्ण करें।
व्रत करने के बाद शनि कथा का पाठ करना चाहिए। इसके पश्चात काले कुत्ते को उड़द की पीठी मिष्ठान्न और तेल में तले पकवान खिलाना शुभ माना जाता है। यदि कुत्ता उपलब्ध न हो तो दान किसी दीन ब्राह्मण या शनिवार को तेल मांगने वाले को दिया जा सकता है। पूजा विधि संपन्न करने के बाद शनिदेव के मंत्र का यथाशक्ति जप करें और दिनभर निराहार रहें। शाम को सूर्यास्त से पहले व्रत खोलें। व्रत पारण में तिल और तेल से बनी वस्तुएं शामिल होना आवश्यक है।
प्रथम व्रत संपन्न करने के बाद आने वाले प्रत्येक शनिवार को प्रातःकाल स्नानादि के बाद धूप बत्ती लगाकर कम से कम 108 बार ॐ शं शनैश्चराय नमः मंत्र का जप करें। सायंकाल में एक बार भोजन करें और यदि संभव हो तो श्री हनुमान जी के मंदिर में दर्शन करें।
शनिवार व्रत करने वाले साधक को प्रतिदिन शनिदेव के दस नामों का स्मरण करना चाहिए इनमें कोणस्थ पिंगलो बभ्रु कृष्ण रौद्रान्तक यम सौरि शनैश्चर मंद पिप्पला शामिल हैं। इन नामों से शनिदेव का स्मरण और नमस्कार करना चाहिए। शनिवार व्रत करने से शनिदेव जनित बाधाओं शनि की ढैय्या साढ़ेसाती के दुष्प्रभाव और गोचरीय अशुभ परिणामों से मुक्ति और सुरक्षा मिलती है और जीवन में सुख समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है।
