मोहम्मद पैगम्बर ने जब इस्लाम धर्म की स्थापना की थी तब उन्होंने भी नही सोचा होगा एक दिन आगे चलकर इस्लाम धर्म आतंक का पर्याय बन जायेगा।अभी हाल में दिल्ली में जो बम ब्लास्ट हुआ जिसमें15 मासूम लोगों की जान चली गई ये आतंकवादी हमला था और जिसे भारत में रह रहे पढ़े लिखे डॉक्टरों की टीम ने अंजाम दिया।ये वही डॉक्टर्स हैं जो इस भारत की पावन धरती पर जन्म लिया और यहीं उनकी परवरिश हुई और यहीं डॉक्टरी की तालीम लेकर डॉक्टर बने।डॉक्टर को हमारे समाज में ईश्वर का दूसरा रूप समझा जाता है लेकिन उन्हीं लोगों ने बेगुनाहों का खून बहा दिया।ये पूरे डॉक्टर कौम को शर्मसार करने वाली घटना थी।इन आतंकवादियों के तार कहाँ से कहाँ तक जुड़े हैं ये जाँच का विषय हो सकता है लेकिन अपने ही देश के नागरिकों का वेवजह कत्ल करना ये बहुत बड़ा गुनाह है।जिस देश का खाते हो उससे ही गद्दारी करना ये इंसानियत के नाम पर एक कलंक है।दरअसल ये आतंकवादी जेहनी तौर पर इस्लाम के मूल भावना को कभी समझते ही नही हैं या ये इस्लाम को शाब्दिक तौर पर ही समझते हैं।ये कटु सत्य है कि इस्लाम में जब आप इबादत करते हैं तो आप केवल अल्लाह को ही सर्वोपरि मान लेते हैं और बाकी धर्म के श्रेष्ठता को मानने से इंकार करते हैं।
माना कि आपके अल्लाह सर्वश्रेष्ठ हैं लेकिन बाकी धर्म के मानने वालों का भी ईश्वर या जीसस क्राइस्ट या गुरुनानक देव भी श्रेष्ठ हो सकते हैं।इस्लाम के मानने वाले दूसरे धर्म के मानने वालों को काफ़िर कहते हैं और फिर उन काफिरों का खात्मा करना उनका अधिकार हो जाता है और इसी अधिकार जब जुनून में तब्दील होता है तब वही से आतंकवाद का जन्म होता है।क्योंकि आप इस धरती पर केवल इस्लाम के मानने वालों को ही देखना चाहते हैं।आज पूरे विश्व में मानवता का खतरा इसी आतंकवादी मानसिकता की वजह से हो रहा है।इस्लामिक आतंकवाद की शुरुआत इमाम हुसैन की शहादत से ही शुरू हो गई थी।शिया और सुन्नियों के बीच का झगड़ा तब से चला आ रहा है।इस्लाम के स्थापना के बाद से ही उसमें कट्टरता समाहित हो गई।मानवतावाद शुरू से ही नगण्य हो गया।तुम मेरे धर्म को नही मानोगे तो तुम्हारा वजूद ही मिटा देंगें ये कैसा धर्म है।धर्म तो ऐसा होना चाहिए कि जब आप अल्लाह की इबादत करें तो आपके अंदर दया या करुणा का भाव उत्पन्न हो।इधर आप अल्लाह के लिए नमाज अदा करते हैं और उसी पल आपके अंदर किसी के मारने का भाव उत्पन्न हो जाता है।ये कैसी इबादत है भाई।मोहम्मद पैगम्बर साहब ने दुनिया के लिए इस्लाम धर्म के रूप में नायाब तोहफ़ा दिया था लेकिन उनके अनुयायियों ने उसको कट्टरता के रास्ते पर ले आये।बड़े से बड़ा दानिशमंद इस्लाम की व्याख्या करता है तो वह इस्लाम अच्छे पहलुओं को छोड़कर ऐसी बातों पर जोर देता है जो इस्लाम में अपवाद के तौर पर है।जैसे पैगम्बर साहब ने चार विवाह की बात इसलिये कही थी कि उस समय कबीलों में आपसी लड़ाइयां होते रहती थी जिसमें बहुत सी औरतें विधवा हो जाती थीं इसलिए पैगम्बर साहब ये चाहते थे कि उन विधवाओं से जो उस कबीले में मर्द बच जाते थे वे उनसे निकाह करके उनको आसरा दे दें।लेकिन वे बातें गौण हो गई और इस्लाम के मानने वाले ये समझने लगे कि वे चार शादी कर सकते हैं।और इस बात का खंडन किसी ने नही किया कि उस समय की परिस्थिति कुछ और थी और आज की स्थिति कुछ और है।
आज तो ये स्थिति है कि बीस पच्चीस साल के लड़कों को वियाग्रा लेना पड़ रहा है।चार शादी क्या खाक करेगें।जब इस्लाम का उदय हुआ उस दौर में समाज में जाहिलपन था।लोगों में शिक्षा का अभाव था।एक बुद्धिमान व्यक्ति हजारों लोगों को वेवकूफ बनाने की क्षमता रखता था।ये सुनने में जरूर आता है कि वे बहुत बडे इस्लामिक ज्ञाता हैं लेकिन जब आप उनकी बात सुनेगें तो हैरान हो जाएंगे, वही घिसी पिटी बातें जिसका कोई वैज्ञानिक तथ्य नही।वे और दकियानूसी बातें करेंगे।वे अभी भी पृथ्वी को गोल मानने के बजाए चपटा ही मानेगें।अभी भी उनके दिमाग में72हूरें का ख्वाब सजा रहता है।और उन्हीं 72 हूरों का ख्वाब दिखाकर युवाओं को गुमराह करके आत्मघाती फिदायीन तैयार करते हैं।अगर आप इस्लामिक ज्ञाता हैं तो ये आपकी जिम्मेदारी है कि भटके हुए मुसलमान युवकों सही रास्ते पर लेकर आएं।
आज सारी दुनिया इस्लाम के जानने वालों से ये अपेक्षा रखती है कि इस्लाम को आतंकवाद से अलग करें।आतंकवाद से कुछ हासिल नही होने वाला है।तमाम मुस्लिम देश मिलकर भी इजरायल के कुछ नही बिगाड़ पा रहे हैं अगर सौ करोड़ हिन्दू जब यहूदियों की तरह हो जायें तो विश्व का नक्शा ही बदल जायेगा।मुठ्ठी भर आतकंवादियों से कौन सा इस्लामीकरण हो जाएगा।ये चंद सिरफिरे लोग हैं जो समाज में समय समय पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहते हैं लेकिन इनका अंजाम सिर्फ कालकोठरी तक ही है।इस्लाम धर्म के मानने वाले जब दूसरे धर्म का सम्मान करना सीखेंगें तभी आतंकवाद से छुटकारा मिल सकता है।केवल ख़ुद का धर्म बेहतर और बाकी धर्म की कोई अहमियत नही तो ऐसे मानने वाले समाज में विकृति ही पैदा करेगें।वो दिन दूर नही जब इस्लाम और आतंकवाद एक दूसरे के पर्याय बनकर रह जाएंगे।पाकिस्तान से आतंकी आते हैं और भविष्य में भी आते रहेंगे और उनको उनके अंजाम तक भी पहुंचाया जाएगा।लेकिन दिल्ली हमले से भारत में रहने वाले हर मुसलमान पर से ऐतबार मिट गया है।अब हर मुसलमान को शक की नजरों से देखा जाने लगा है।हिंदुस्तान में रहने वाले सभी मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू रहे हैं इसमें किसी को कोई संदेह नही होना चाहिए।भारत में रहनेवाले सभी मुसलमान हमारे ही अंश हैं।केवल जालीदार टोपी पहन लेने से वो सदियों का भाईचारा खत्म नही हो सकता।लेकिन दुर्भाग्यवश आज के युवा पीढ़ी के मुसलमान उन मूल्यों को नजरअंदाज करते जा रहे हैं और आज उसका ही परिणाम है कि दिल्ली जैसी घटना घटित हो रही है।दिल्ली की घटना का जैसे जैसे पर्दाफाश हो रहा है उसको स्वीकार करना बहुत कठिन है।
अपनी मातृभूमि से गद्दारी करने वालों को दोज़ख में भी जगह नही मिल सकती है।इस देश के सभी मुस्लिम विश्वविद्यालय या मदरसों को बंद करने की जरूरत है।ये आतंकवादी इन्हीं मदरसों या विश्वविद्यालय में पढ़कर पनपते हैं।दरअसल हिन्दुस्तान या पाकिस्तान दोनों जगह के मदरसों में पढ़ने वाले ज्यादातर लोगों की मानसिकता ही जेहादी हो जाती है।अगर मुसलमानों के बच्चे अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ें तो उनकी जेहनी सोच में तब्दीली बरबस आ जाती है।लेकिन दिल्ली की घटना ने इस बात को भी धत्ता बता दिया।डॉक्टर की डिग्री लेने वाले आतंकवाद के रास्ते पर चले जायेंगे वे कोई कल्पना भी नही कर सकता है।वैसे ओसामा बिन लादेन भी खुद पढ़ा लिखा था लेकिन फिर भी आतंकवादी बन गया था।शायद शिक्षा पर धार्मिक जुनून भारी पड़ गया।शायद इसीलिए काल मार्क्स धर्म को अफ़ीम की संज्ञा दी ।वे एकदम सही थे।धर्म से मनुष्य में सोचने समझने की क्षमता खत्म होने की गुंजाइश बन जाती है।मनुष्य अंधविश्वासी हो जाता है और उसके विवेक पर पर्दा पड़ जाता है।शायद आतंकवादियों के साथ यही स्थिति रह रही होगी।लोगों को अब सतर्क रहने की जरूरत है कौन जाने आपके आस पास भी सादे लिबास में भेड़िये घूम रहे होंगे।सरकार अपना काम कर रही है लेकिन हमें भी जागरूक रहना चाहिए।
डॉ संजय श्रीवास्तव
महू मध्यप्रदेश
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