महू । महू स्थित आर्मी वार कॉलेज में आयोजित दो दिवसीय 27वें डाक्ट्रिन एंड स्ट्रैटेजी सेमिनार का सफल समापन हुआ। फ्यूचर रेडी कल के युद्धकला के लिए भारतीय सेना की क्षमता को सुदृढ़ बनाना विषय पर आधारित इस सेमिनार में भारतीय सेना के वरिष्ठ अधिकारियों, पूर्व सैन्य दिग्गजों, रणनीतिक विशेषज्ञों, शिक्षाविदों तथा रक्षा उद्योग से जुड़े प्रतिनिधियों ने भाग लिया। कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य वर्ष 2035 के संभावित युद्ध परिचालन वातावरण को समझते हुए भविष्य की युद्ध चुनौतियों का आकलन करना और आधुनिक युद्धक्षेत्र की आवश्यकताओं के अनुरूप भारतीय सेना की तैयारी सुनिश्चित करना था।
सेमिनार के दूसरे दिन सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी वर्चुअल माध्यम से जुड़े और उन्होंने महत्वपूर्ण विचार साझा किए। जनरल द्विवेदी ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा परिदृश्य तेजी से बदल रहा है और ऐसे समय में यह सेमिनार सेना की भविष्य दृष्टि को मजबूत करने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारतीय सेना एक फ्यूचर रेडी फोर्स बनने की दिशा में निरंतर रूपांतरण कर रही है ताकि देश की रक्षा-सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ राष्ट्रीय मूल्यों की रक्षा भी पूरी दृढ़ता से की जा सके। 2035 का युद्ध परिस्थिति पर विस्तृत चर्चा सेमिनार को तीन प्रमुख विषयों में विभाजित किया गया फ्यूचर बैटलफील्ड मिलीयू 2035, तकनीकी तैयारी टेक्नोलॉजिकल रेडीनेस , भविष्य की दिशा और रणनीतिक प्राथमिकताएँ ।
इन सत्रों में विशेषज्ञों ने आने वाले दशकों के संभावित युद्ध प्रारूपों का विश्लेषण किया। चर्चा के केंद्र में प्रॉक्सी वार ग्रे जोन कॉम्पिटीशन बहु डोमेन युद्ध खतरे स्पेस तथा साइबर सुरक्षा इंटीग्रेटेड अर्ली-वार्निंग नेटवर्क और कॉग्निटिव वारफेयर जैसे आधुनिक युद्ध तत्व रहे। विशेषज्ञों ने बताया कि 2035 तक युद्ध केवल जमीन, हवा और समुद्र तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि स्पेस साइबर और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध भी उतने ही प्रभावशाली होंगे। इसलिए सेना की क्षमताओं का बहुआयामी विस्तार समय की आवश्यकता है।
ड्रोन एआई और रोबोटिक्स से जुड़े परिवर्तनकारी आयाम
तकनीकी तैयारी से संबंधित सत्रों में आधुनिक तकनीक के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से समझाया गया। इनमें
ड्रोन और काउंटर ड्रोन सिस्टम एआई आधारित निर्णय सहायता प्रणाली स्वायत्त रोबोटिक्स क्वांटम सिक्योर कम्युनिकेशन नियर स्पेस ISR इंटेलिजेंस सर्विलांस और रिकोनिसेंस प्लेटफॉर्म जैसे उभरते हुए क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया गया। विशेषज्ञों ने जोर देकर कहा कि आने वाले समय में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम डॉमिनेंस किसी भी देश की युद्ध क्षमता का निर्णायक तत्व होगा। इसलिए इस क्षेत्र में भारत को तेज गति से नवाचार और निवेश बढ़ाने की आवश्यकता है।
सेमिनार में उद्योग जगत के प्रतिनिधियों द्वारा भी स्वदेशी रक्षा तकनीकों और नवाचारों का प्रदर्शन किया गया। इससे यह स्पष्ट हुआ कि रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उद्योग सेना और शोध संस्थानों के बीच सहयोग को और मजबूत करने की जरूरत है। इन नवाचारों ने क्षमता वृद्धि के साथ-साथ स्केल-अप के अवसरों की दिशा भी उजागर की।
सेना प्रमुख का संदेश परिवर्तन ही भविष्य की कुंजी
अपने संबोधन में जनरल द्विवेदी ने कहा कि बदलते वैश्विक हालातों के अनुसार भारतीय सेना ने अपने ढांचे रणनीतियों और युद्धक क्षमताओं में निरंतर सुधार व अनुकूलन किया है। उन्होंने कहा कि परिवर्तन केवल विकल्प नहीं बल्कि आवश्यकता है भारतीय सेना ऐसे सभी तकनीकी एवं रणनीतिक सुधारों को अपनाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है जो उसे भविष्य के युद्धक्षेत्र में अधिक सक्षम बना सके। सेना प्रमुख ने सभी रणनीतिक विशेषज्ञों अधिकारियों और उद्योग प्रतिनिधियों को इस विचार-मंथन में सार्थक योगदान देने के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि इस प्रकार के सेमिनार सेना की दीर्घकालीन योजना, तकनीकी उन्नयन और भविष्य की युद्ध जरूरतों को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान करते हैं। यह सेमिनार इस बात का स्पष्ट संकेत है कि भारतीय सेना आने वाली चुनौतियों को न केवल समझ रही है बल्कि तकनीक संचालित आत्मनिर्भर और भविष्य दृष्टि वाली शक्ति के रूप में उभरने के लिए पूरी तरह समर्पित है।
